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चंडीगढ़। 'हरियाणा में वित्त मंत्री रहते चौधरी खुर्शीद अहमद ने मेवात कैनाल प्रोजेक्ट मंजूर करवाया था, लेकिन यह प्रोजेक्ट आज भी सिरे नहीं चढ़ पाया है। उनकी दिली इच्छा थी कि यह प्रोजेक्ट पूरा होना चाहिए। मेवात क्षेत्र के लिए यह एक बड़ी महत्वकांक्षी परियोजना थी। अगर कभी मुझे मौका मिला तो मैं इस प्रोजेक्ट को पूरा करवाने की कोशिश करुंगा।' यह कहना है कांग्रेस विधायक दल के उप नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री आफताब अहमद का। उन्होंने कहा कि मौका मिलने पर मैं प्राथमिकता के आधार पर मेवात कैनाल प्रोजेक्ट को सिरे चढ़ाना चाहूंगा। मेवात क्षेत्र के लिए यह परियोजना जरूरी है। इस प्रोजेक्ट पर बातें तो लगातार होती हैं, लेकिन इसे पूरा करने की दिशा में भाजपा सरकार ने कभी गंभीरता से कदम नहीं उठाये।
मेवात क्षेत्र के दिग्गज नेता रहे पूर्व मंत्री और पूर्व सांसद खुर्शीद अहमद अब इस दुनिया में नहीं हैं। 86 वर्षीय खुर्शीद अहमद का पिछले कुछ निधन हो गया था। संयुक्त पंजाब में विधायक रहे खुर्शीद अहमद हरियाणा बनने के बाद 1968, 1977, 1987 और 1996 में भी विधायक बने, 1988 में वे सांसद भी चुने गए थे। अपने राजनीतिक सफर के दौरान खुर्शीद अहमद दो बार हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे।
हुड्डा सरकार में परिवहन मंत्री रह चुके आफ़ताब अहमद इस समय मेवात में नूंह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण, आफ़ताब के पिता खुर्शीद अहमद की ही देन है। प्राइवेट कॉलोनाइजर को हरियाणा में पहला लाइसेंस भी उन्होंने ही दिया था। विकास के मामले में गुरुग्राम का आज जो रूप आपको दिखाई दे रहा है, उनके कार्यकाल के दौरान ही इसकी शुरुआत हुई थी।
मेवात क्षेत्र को खुर्शीद की देन के बारे में पूछे जाने पर आफ़ताब ने कहा कि नूंह में हरियाणा की पहली जेबीटी उन्होंने ही खोली थी। वर्ष 1968 में उन्होंने नगीना में कॉलेज खोला था, जो करीब बारह साल बाद राज्य सरकार को दे दिया। उन्होंने आईटीआई खोला और सिंचाई के लिए नहरों-ड्रेनों का जाल बिछाया। उनका मानना था कि बच्चे शिक्षित और किसान खुशहाल होगा तो ही समाज तरक्की करेगा। इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि नूंह में खुली एक जेबीटी ने इस क्षेत्र को पांच हजार से ज्यादा शिक्षक दिए हैं।
आज के राजनीतिक माहौल पर आफ़ताब ने कहा कि मेरे पिता जिंदगी भर समाज को तोड़ने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे। उन्होंने समाज को हमेशा एक आंख से देखा। वे संबंधों को संजो कर रखने के हिमायती थे। समाज में सबको साथ लेकर चलने के पक्षधर थे. कांग्रेस पार्टी छोड़ने के सवाल पर आफ़ताब ने कहा कि मेरे पिता जनता की भावनाओं के मुताबिक फैसले लेते थे। एक बार उन्होंने तब कांग्रेस छोड़ी थी, जब नसबंदी को लेकर लोगों में नाराजगी थी। दूसरी बार बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद कांग्रेस छोड़ी थी। उन्होंने सत्ता के लिए नहीं, बल्कि लोगों के हितों के मद्देनजर पार्टी छोड़ी थी।
आफ़ताब जब एक बार विधानसभा का चुनाव हार गए थे, तो उनके पिता ने कहा था कि जब पहलवान गिरता है, हारता है, तब फिर से उठता है, तैयारी करता है, इससे सीखता है और जीतता भी है। उन्होंने समझाया था कि हमेशा आम लोगों के बीच में रहो, लालच मत करो, किसी के सामने हाथ नहीं फैलाओ, जितना हो सके, लोगों के काम आओ, हमेशा इस बात को याद रखो कि जनता से बड़ा कोई नहीं है और मैं उनके दिखाए रस्ते पर ही चलने की कोशिश कर रहा हूं।
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