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कुलपति विहीन विश्वविद्यालय: हरियाणा की उच्च शिक्षा का ठहरा भविष्य

Universities without vice chancellors: Haryana higher educations future is stagnant - Bhiwani News in Hindi

रियाणा राज्य, जिसे कभी शिक्षा के क्षेत्र में उभरते केंद्र के रूप में देखा जा रहा था, आज उच्च शिक्षा के बुनियादी ढांचे और नेतृत्व में गंभीर संकट से जूझ रहा है। राज्य के सात से अधिक विश्वविद्यालयों में लंबे समय से कुलपति (Vice Chancellor) की नियुक्ति नहीं हो सकी है। यह न केवल प्रशासनिक अस्थिरता को जन्म दे रहा है, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP) के प्रभावी क्रियान्वयन में भी बाधा बन रहा है। जब विश्वविद्यालयों को उच्च गुणवत्ता वाला अनुसंधान, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है, ऐसे समय में नेतृत्व की रिक्तता हरियाणा की शिक्षा व्यवस्था को पीछे धकेल रही है। चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय (CDLU), भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय, इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, डॉ. बी.आर. अंबेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, गुरुग्राम विश्वविद्यालय और महार्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय—ये सात प्रमुख विश्वविद्यालय मार्च 2025 तक बिना स्थायी कुलपति के कार्य कर रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा मार्च 2025 में कुलपति पदों के लिए आवेदन मांगे गए थे, परन्तु अंतिम तिथि बीत जाने के बावजूद चयन प्रक्रिया की स्थिति स्पष्ट नहीं है। इस रिक्तता के कारण इन संस्थानों में शैक्षणिक और प्रशासनिक निर्णयों में देरी हो रही है। बजट आवंटन, फैकल्टी नियुक्तियाँ, अकादमिक पाठ्यक्रमों की समीक्षा, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य बिना स्थायी नेतृत्व के अधर में लटके हुए हैं। इसका सीधा असर छात्रों की शिक्षा गुणवत्ता और भविष्य की संभावनाओं पर पड़ रहा है।
सिरसा स्थित CDLU और अन्य विश्वविद्यालयों में छात्रों ने कुलपति नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग को लेकर आवाज़ उठाई है। छात्रों का कहना है कि चयन प्रक्रिया में योग्यता, अनुभव और नैतिकता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वे यह भी आरोप लगाते हैं कि सरकार राजनीतिक रूप से अनुकूल उम्मीदवारों को नियुक्त करने की तैयारी में है, जिससे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर प्रश्नचिह्न लगता है। अधिकारियों और फैकल्टी सदस्यों का भी कहना है कि लगातार कार्यवाहक कुलपतियों के अधीन काम करना अकादमिक योजना और नवाचार को बाधित करता है। विश्वविद्यालयों को दीर्घकालिक रणनीतियों की आवश्यकता होती है, जो केवल स्थायी और सक्षम नेतृत्व ही सुनिश्चित कर सकता है।
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में कुलपति की पुनर्नियुक्ति को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि नियुक्ति में UGC (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) के मानकों का पालन नहीं किया गया। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह नियुक्ति पारदर्शिता और योग्यता के सिद्धांतों के खिलाफ है, और इससे विश्वविद्यालय की गरिमा पर आँच आती है। यह मामला पूरे राज्य के विश्वविद्यालय प्रणाली में व्याप्त नीतिगत भ्रम और पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है। राज्य और केंद्र सरकार की नीतियों के बीच तालमेल की कमी, और विश्वविद्यालयों को स्वायत्त रखने के वादे के बावजूद हस्तक्षेप की प्रवृत्ति, शिक्षा व्यवस्था की जड़ों को खोखला कर रही है।
NEP 2020 भारत को एक वैश्विक ज्ञान केंद्र बनाने का लक्ष्य रखती है। इसमें बहुविषयी शिक्षा, कौशल विकास, अनुसंधान संवर्धन और डिजिटल लर्निंग पर बल दिया गया है। परन्तु इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक विश्वविद्यालय में सक्षम और दूरदर्शी नेतृत्व आवश्यक है। हरियाणा के विश्वविद्यालयों में कुलपति पदों की रिक्तता NEP के इन लक्ष्यों को बाधित कर रही है। डिजिटल और अकादमिक अवसंरचना के विस्तार, रिसर्च ग्रांट्स की अनुशंसा, और अकादमिक फ्रीडम के लिए एक स्पष्ट और स्थिर नीति-निर्देशक की भूमिका आवश्यक है, जो फिलहाल अधूरी है।
हरियाणा में कुलपति नियुक्तियों को लेकर एक और विवाद यह है कि UGC की नई नीतियों का इंतजार कर राज्य सरकार नियुक्तियों को टाल रही है। 2023 में UGC ने कुलपति नियुक्तियों के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनमें केंद्रीय हस्तक्षेप की गुंजाइश बढ़ी है। इससे राज्य विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर खतरा मंडराने लगा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राज्य सरकारें अब कुलपति जैसे पदों को भी 'वफादारी के इनाम' के रूप में देखने लगी हैं। इससे शिक्षा की गुणवत्ता, शोध की गंभीरता, और अकादमिक स्वतंत्रता पर गहरा असर पड़ता है।
कुलपति चयन के लिए एक स्वतंत्र और पारदर्शी चयन समिति होनी चाहिए, जिसमें शिक्षाविद, प्रशासनिक अधिकारी और विशेषज्ञ शामिल हों। चयन प्रक्रिया को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। शिक्षा को राजनीतिक एजेंडे से अलग रखा जाए। योग्यताओं के आधार पर नियुक्तियाँ सुनिश्चित की जाएं, न कि राजनीतिक निकटता के आधार पर। कार्यवाहक कुलपतियों की जगह स्थायी नियुक्तियों को प्राथमिकता दी जाए ताकि दीर्घकालिक योजनाओं का कार्यान्वयन हो सके। UGC की नीतियों और राज्य सरकार की योजनाओं में बेहतर तालमेल हो, जिससे नीतिगत भ्रम की स्थिति समाप्त हो सके। छात्र और फैकल्टी की भागीदारी: विश्वविद्यालय प्रशासन में छात्रों और शिक्षकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए ताकि निर्णय जनहित और अकादमिक हितों को ध्यान में रखकर लिए जाएं।
हरियाणा जैसे राज्य, जो औद्योगिक और सामाजिक दृष्टि से अग्रणी बनने की दिशा में बढ़ रहा है, वहां विश्वविद्यालयों में नेतृत्व की रिक्तता बेहद चिंताजनक है। जब तक विश्वविद्यालयों को सक्षम, दूरदर्शी और स्वतंत्र नेतृत्व नहीं मिलेगा, तब तक उच्च शिक्षा में सुधार केवल दस्तावेज़ों और घोषणाओं तक सीमित रहेगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन, वैश्विक प्रतिस्पर्धा की तैयारी, और विद्यार्थियों को नवाचार की दिशा में प्रेरित करने के लिए हरियाणा को अपने विश्वविद्यालयों में योग्य कुलपतियों की नियुक्ति तत्काल करनी चाहिए। शिक्षा का भविष्य नेतृत्व पर निर्भर करता है, और नेतृत्व के बिना कोई भी सुधार असंभव है। हरियाणा को अब निर्णय लेना होगा—क्या वह शिक्षा को राजनैतिक औज़ार बनाएगा या सामाजिक परिवर्तन और ज्ञान की नींव? जवाब स्पष्ट है: विश्वविद्यालयों में कुलपति हों, तभी उच्च शिक्षा सुधरेगी।

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