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कहाँ से शह पाते हैं ऐसे ज़हरीले लोग?

Where do such poisonous people get their encouragement from? - Ambala News in Hindi

क बार फिर ज़हर उगलने में अग्रिम स्थान बनाने की प्रतिस्पर्धा में जुटे गाज़ियाबाद के डासना देवी मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद का एक बेहद विषैला,अभद्र व आपत्तिजनक वीडिओ वायरल हुआ। क़ुरआन,मुहम्मद,मुसलमानों को खुलकर अपमानित करने वाले इस व्यक्ति ने तो अब हिन्दू महिलाओं को भी नागिन कह डाला। ग़ौरतलब है कि यह व्यक्ति पहली बार मार्च 2021 में उस समय सुर्ख़ियों में आया था जब 14 वर्ष के एक ग़रीब मुस्लिम बालक ने अपनी प्यास बुझाने के लिये इसी मंदिर परिसर के बाहर लगे नल से पानी पी लिया था। उसके बाद इस डासना मंदिर में रहने वाले एक व्यक्ति ने बालक से उसका नाम व उसका धर्म पूछकर उसे बड़ी बेरहमी से मारा था। आसिफ़ को पीटने का यह वीडियो ख़ूब वायरल हुआ था। उस समय यति नरसिंहानंद आसिफ़ को पीटने वालों के समर्थन में खुलकर आये थे और उस बालक की पिटाई जायज़ ठहराई थी। इस व्यक्ति ने मंदिर के मुख्य द्वारा पर साफ़तौर से बोर्ड पर लिखवा रखा है कि यहां कोई मुसलमान अंदर नहीं आ सकता। यही यति नरसिंहानंद शायद नफ़रत के बल पर अर्जित शोहरत पाने के बाद इसी तरह की बकवासबाज़ी करने का आदी हो चुका है।
अब तो यह व्यक्ति धर्म अध्यात्म संबंधी सकारात्मक बातें तो करता ही नहीं बल्कि सिर्फ़ ज़हर ही उगलता फिरता है। पिछले दिनों वायरल हुये वीडीओ में बुलंद शहर में सामने बैठी कुछ महिलाओं को संबोधित करते हुए उसने कहा कि 'अगर हिंदू महिलाओं ने ज़्यादा बच्चे पैदा नहीं किए तो एक दिन मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदू बहन, बेटियों का बलात्कार करेंगे और उन्हें बाज़ार में बेचेंगे।
उस ने हिंदू समुदाय में मुसलमानों के प्रति ख़ौफ़ पैदा करने के मक़सद से उन महिलाओं से कहा कि ज़्यादा से ज़्यादा बच्चा पैदा करो, वरना एक दिन मुस्लिम समुदाय के लोग आपको मारकर आपके घरों पर क़ब्ज़ा कर लेंगे। उसने आगे कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदू बहन, बेटियों को मंडियों में बेचेंगे और उनका बलात्कार करेंगे। उसने यह भी कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदू बहन, बेटियों को रखैल बनाकर रखेंगे। इसी संदर्भ में इसने महिलाओं को लेकर बेहद आपत्तिजनक बयान भी दिया है।
नरसिंहानंद ने स्पष्ट रूप से कहा कि "एक बेटा पैदा करने वाली हिंदू महिलाएं नागिन जैसी होती हैं"। उस ने हिन्दू महिलाओं को परिवार बढ़ाने की नसीहत देते हुए उनमें भय पैदा करने के लहजे में कहा कि "परिवार को बड़ा करो वरना दो-दो रुपये में बिकोगी"। यह व्यक्ति पहले भी कई बार मुसलमानों को बलात्कारी बता चुका है साथ ही अनेक बार हिंदू महिलाओं के लिए भी अपमानजनक व विवादित टिप्पणी कर चुका है। हालांकि यति नरसिंहानंद के खिलाफ कई बार कार्रवाई हो चुकी है। वह अपने विवादित बयानों की वजह से जेल और कोर्ट का चक्कर भी लगा चुका है।
कुछ समय पूर्व ही इसी व्यक्ति ने भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने और भारत को मुस्लिम, मदरसा और मस्जिदों से मुक्त कराने जैसी ग़ैर संवैधानिक मांग भी की थी। गोया यह व्यक्ति हर वक़्त देश में नफ़रत फैलाने वाले बयान देता रहता है। आश्चर्य यह भी है कि यह व्यक्ति कथित रूप से उस जूना अखाड़े से संबद्ध महामंडलेश्वर है जिससे एक से बढ़कर एक महान संत महात्मा व अध्यात्मवादी साधु जुड़े रहे हैं। इतने प्रतिष्ठित अखाड़े ने इतने ज़हरीले व्यक्ति को आख़िर इसकी किस योग्यता के आधार पर महामंडलेश्वर जैसे धार्मिक पद पर बिठा दिया?
महान संत कबीर दास जी तो कहते हैं कि "जाति पांति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होय"। इन पंक्तियों का यही अर्थ है कि ईश्वर किसी व्यक्ति की जाति या पंथ नहीं पूछता। समाज में जातिवाद के होते हुए भी, ईश्वर की दृष्टि में सभी बराबर हैं। जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और निष्ठा से ईश्वर की भक्ति करता है, वह ईश्वर का प्रिय बन जाता है। ईश्वर उसी को अपनाता है, चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग से हो।
कबीर दास ने अपने इन दोहों के माध्यम से जाति विभाजन का विरोध करते हुये सभी मनुष्यों को एक समान बताया। उन्होंने भक्ति को जातिवाद से ऊपर रखा, यह दर्शाते हुए कि ईश्वर केवल आंतरिक भावनाओं और श्रद्धा को देखता है। कबीर का यह दोहा सामाजिक समरसता और समानता का संदेश है, जहाँ व्यक्ति की पहचान उसकी भक्ति से होती है, न कि उसके जन्म से। यह पंक्ति ईश्वर की सार्वभौमिकता और सभी के लिए समान प्रेम पर ज़ोर देती है, जो किसी भी जाति या सामाजिक स्थिति से ऊपर है।
सवाल यह है कि क्या यति नरसिंहानंद या इन जैसे और अनेक संत वेशधारी लोग जो पूरे पूरे देश में घूम घूम कर सरे आम अपनी ज़ुबान से इसी तरह का ज़हर उगलते फिर रहे हैं ये संत कबीर की उक्त संतवाणी की श्रेणी में आते हैं? यदि नहीं तो इनके संतों की वेशभूषा धारण करने से समाज को सिवाय अपमान के और क्या हासिल है ? कोई हिन्दू या किसी भी धर्म की महिला यदि एक बच्चा पैदा करती है तो यह उसके परिवार का निजी निर्णय या उसके आर्थिक व पारिवारिक हालात हो सकते हैं। किसी स्वयंभू संत को क्या अधिकार है कि वह एक बच्चा पैदा करने वाली किसी महिला की तुलना नागिन से करे?
निश्चित रूप से ऐसे स्वयंभू संत चूँकि अपने किसी गुण और ज्ञान से समाज का मार्गदर्शन नहीं कर सकते क्योंकि गुण ज्ञान तो इनके पास है ही नहीं? लिहाज़ा नफ़रत फैलाकर विद्वेष की बातें कर मीडिया में सुर्ख़ियां बटोर कर अपनी दुकानदारी चलाते हैं। दूसरा सवाल यह कि बार बार ऐसे ही आरोपों में जेल की हवा खाने के बावजूद इनकी बदज़ुबानियों पर लगाम न लगना भी यह सवाल खड़े करता है कि इन्हें संरक्षण कहाँ से मिल रहा है? इनकी ज़हरीली बयानबाज़ियों का राजनैतिक लाभ किसे मिल रहा है? आख़िर ऐसे ज़हरीले लोग कहाँ से शह पाते हैं?

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