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नफ़रत की ये आग कब बुझेगी?

When will this fire of hatred be extinguished? - Ambala News in Hindi

म्मू और कश्मीर में पहलगाम से लगभग पांच किलोमीटर दूर प्राकृतिक आकर्षण का केंद्र रहे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बैसरन घाटी में गत 22 अप्रैल को पांच-छः सशस्त्र आतंकवादियों द्वारा निहत्थे व बेगुनाह पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी की गयी जिसमें 27 लोगों की जानें चली गयीं जबकि 20 से अधिक लोग घायल हो गए। प्राप्त समाचारों के अनुसार इस दुर्दांत आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के ही एक छाया संगठन द रेज़िस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ़) ने स्वीकार की है। पाकिस्तान में पनाह पाने वाले विभिन्न आतंकी संगठन गत तीन दशकों से भी लंबे समय से भारत में आतंकी हमले करते रहे हैं। पाकिस्तान में अनेक आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं। इनमें कई संगठनों के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रतिबंध भी लगाए गये हैं।
इन आतंकियों द्वारा जहां घाटी में सैनिकों व आम नागरिकों को निशाना बनाया जाता रहा है वहीँ इन्होंने कश्मीर के बाहर भी 26/11 जैसा बड़ा हमला अंजाम दिया। इतना ही नहीं बल्कि अक्षर धाम,जम्मू,वाराणसी,अयोध्या जैसे देश के कई प्रमुख मंदिरों को भी इन आतताइयों ने नहीं बख़्शा। मंदिरों पर इनके हमले का उद्देश्य हमेशा से स्पष्ट रहा है कि यह अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देकर भारत में साम्प्रदायिक विभाजन कराना चाहते थे। परन्तु पूर्व की सरकारों ने सूझवान भारतीय जनता के सहयोग से पाकिस्तानी आतंकियों के ऐसे नापाक मंसूबे कभी कामयाब नहीं होने दिए।
निश्चित रूप से 22 अप्रैल के पहलगाम के बैसरन घाटी के हमले का भी मक़सद भारत में साम्प्रदायिक उबाल पैदा करना था। तभी आतंकियों ने 2008 के मुंबई हमलों के बाद इस तरह की सबसे घातक घटना को अंजाम दिया। परन्तु इस हमले के दौरान और इसके फ़ौरन बाद से ही घाटी के स्थानीय लोगों द्वारा इस हमले का जिस स्तर पर विरोध किया गया और पर्यटकों की जिसतरह सहायता की गयी उससे आतंकियों के इरादों पर एक बार फिर पानी फिर गया। इनमें एक नाम जो सबसे अधिक सुर्ख़ियों में रहा वह था पहलगाम के नज़ाकत अहमद शाह का, जिन्होंने अपनी बहादुरी और सूझबूझ से 11 पर्यटकों की जान बचाई।
नज़ाकत अहमद शाह ने छत्तीसगढ़ के 11 लोगों के जीवन को बचा लिया। जिनकी जान नज़ाकत अली उर्फ़ नज़ाकत अहमद शाह ने बचाई उनमें मुख्यतः छत्तीसगढ़ के चार परिवार के लोग शामिल हैं। इसमें बीजेपी युवा मोर्चा के नेता अरविंद अग्रवाल, कुलदीप स्थापक, बीजेपी पार्षद पूर्वा स्थापक, पूर्व पार्षद शिवांश जैन और हैप्पी बाधवान का परिवार तथा कई बच्चे शामिल है। स्वयं भाजपा नेता अरविंद अग्रवाल ने नज़ाकत अली के साथ अपनी फ़ोटो पोस्ट सोशल मीडिया साइट एक्स पर साझा कर उनकी मदद की तारीफ़ करते हुये लिखा कि -'आपने अपनी जान दांव पर लगा कर हमारी जान बचाई। हम नज़ाकत भाई का एहसान कभी नहीं चुका पाएंगे।
अरविंद अग्रवाल ने यह भी लिखा कि 'जब मेरी पत्नी के कपड़े फट गए तो कश्मीरी मुस्लिम ने अपना कुर्ता दे दिया था'। इसी तरह पहलगाम की एक पर्यटक शिवांशी जैन ने बताया कि जब गोली चलने लगी तो उनके साथ कश्मीर के व्यवसायी नज़ाकत अली ने सामने आकर सभी को बाहर निकाला। जब आतंकी गोलियां बरसा रहे थे उस समय नज़ाकत सभी पर्यटकों को सुरक्षित स्थान पर ले गए। नज़ाकत अली ने जो मानवता और कश्मीरियत की मिसाल पेश की है उससे चिरमिरी (छत्तीसगढ़) वासी गदगद हैं।
ग़ौरतलब है कि कश्मीर के नज़ाकत प्रत्येक वर्ष सर्दियों में कश्मीरी शॉल और गर्म कपड़े बेचने हेतु चिरमिरी आते रहे हैं। उनका पूर्व पार्षद शिवांश जैन से घनिष्ठ संबंध बना हुआ है। इसी नाते जब चिरमिरी के 11 लोग पहलगाम पहुंचे थे तो नज़ाकत अली ने ही उन्हें वादियों की सैर कराने की ज़िम्मेदारी ली थी। और आतंकी हमला होने पर नज़ाकत अली ने ही अपनी बहादुरी से छत्तीसगढ़ के इन मेहमान पर्यटकों की जान बचाई। बहादुरी की मिसाल पेश करने वाले ऐसे ही एक और कश्मीरी युवक का नाम था सैयद आदिल हुसैन शाह। आदिल एक पेशेवर स्थानीय घुड़सवार था जो पर्यटकों को कार पार्किंग क्षेत्र से पहलगाम के बैसरन घास के मैदान तक ले जाया करता था।
आतंकी हमले के दौरान आदिल ने असाधारण वीरता व साहस का परिचय दिया। जब आतंकी हमला शुरू हुआ, तो सैयद आदिल अपने साथ लाये गये पर्यटकों की जान बचाने के मक़सद से एक हमलावर की बंदूक़ के सामने पर्यटक की ढाल बनकर खड़े हो गये। आदिल के इसी साहसी प्रयास में आतंकियों ने उसे गोली मार दी। और आदिल मौक़े पर ही मारा गया। पूरी घाटी में ही नहीं बल्कि पूरे देश में सैयद आदिल हुसैन शाह की बहादुरी व उसकी शहादत व कर्तव्य की चर्चा हो रही है।
इस तरह की और भी अनेक घटनाएं जो बैसरन घाटी हमले के बाद सामने आईं जिनसे पता चलता है कि किसतरह अनेक स्थानीय लोगों ने देश के विभिन्न इलाक़ों से आने वाले पर्यटकों को अपने घरों में सुरक्षित पनाह दी। उन्हें सभी ज़रूरी चीज़ें मुफ़्त मुहैय्या कराईं। और निश्चित रूप से यह घाटी के स्थानीय लोगों का पर्यटकों के प्रति प्रेम व विश्वास ही था जिसके चलते इतनी बड़ी आतंकी घटना के बावजूद घाटी विशेषकर पहलगाम का पर्यटन इतनी जल्दी काफ़ी हद तक पुनः पटरी पर आ सका। आतंकवादियों ने अपनी तरफ़ से भारतीय समाज में नफ़रत फैलाने में हालांकि कोई कसर नहीं छोड़ी परन्तु यह भी सच है कि यह पाक प्रायोजित आतंकवाद की पहली ऐसी बड़ी घटना थी जिसने कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। कश्मीर घाटी में जगह जगह आतंकवाद विरोधी प्रदर्शन हुए। पूरे देश की मस्जिदों में पहलगाम हमले पर अफ़सोस जताया गया तथा इस अमानवीय कृत्य को शैतानी व राक्षसी कृत्य बताया गया। हर तरफ़ से एक स्वर में हमले में मारे गये लोगों के साथ एकजुटता का प्रदर्शन किया गया।
सोशल मीडिया पर हज़ारों ऐसी पोस्ट डाली गयीं जिससे देश में भाईचारे क़ायम रह सके। विपक्ष ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के भी कई ज़िम्मेदार नेताओं ने इस संकटकालीन घड़ी में देश में एकजुटता बनाये रखने की अपील की। परन्तु इन सब के बावजूद देश में कई स्थानों पर ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं भी हुईं जो निःसंदेह आतंकियों के घिनौने मक़सद को पूरा करने वाली थीं। कई जगह उपद्रवियों द्वारा कहीं अल्पसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति पर हमला किया गया तो कहीं उनके व्यवसायिक ठिकाने को आग लगा दी गयी।
कहीं बाज़ारों में रेहड़ी पटरी दुकानदारों को उनका धर्म देखकर दुकान नहीं लगाने दी गयी तो कहीं ऐसी ठिकानों की पहचान कर वहां तोड़ फोड़ की गयी। हद तो यह है कई जगह छात्रावास में रह रहे कश्मीरी छात्रों को मारा पीटा गया व उन्हें अपमानित किया गया। ऐसी शर्मनाक घटनाओं की भी जितनी निंदा की जाये वह कम है। यह देश के अमन पसंद लोगों को सुनिश्चित करना होगा कि आख़िर नफ़रत की ये आग कब बुझेगी?

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