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हरियाणा : सत्ता विरोधी लहर के साथ भीतरी कलह से भी जूझ रही भाजपा

Haryana: BJP is facing internal strife along with anti-incumbency wave - Ambala News in Hindi

5 अक्टूबर को होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए विभिन्न राजनैतिक दलों का प्रचार अभियान अपने चरम पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,गृह मंत्री अमित शाह के अतिरिक्त भाजपा के और भी कई स्टार प्रचारक जहाँ अपनी पूरी ताक़त झोंके हुए हैं वहीं नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी व पार्टी के अन्य कई केंद्रीय नेता भी कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में जनसभायें व रैलियां कर रहे हैं। दस वर्षों बाद सत्ता में वापसी की पूरी आस लगाये बैठी कांग्रेस को पिछले दिनों पार्टी की भीतरी कलह के बीच उस समय एक संजीवनी मिली जबकि राहुल गाँधी हरियाणा के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और वीरेंद्र सिंह को एक साथ एक मंच पर लाने व पार्टी में एकजुटता का सन्देश देने में सफल रहे। ऐसे में कांग्रेस को जहाँ भाजपा के दस वर्षों के शासनकाल में उपजी सत्ता विरोधी लहर का फ़ायदा मिलने की संभावना है वहीं उम्मीद है कि पार्टी में गुटबाज़ी के बावजूद नेताओं की एकजुटता का सन्देश भी कार्यकर्ताओं को उत्साहित करेगा।
दूसरी तरफ़ भारतीय जनता पार्टी की ओर से पिछले दिनों चुनाव प्रचार के दौरान ही कई ऐसे संकेत मिले जो पार्टी नेताओं के मतभेदों को स्पष्ट रूप से उजागर करने वाले हैं। उदाहरण के तौर पर गत 14 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुरुक्षेत्र की जनसभा में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की जमकर तारीफ़ की।
मोदी ने कहा कि हमारे मुख्यमंत्री 24 घंटे हरियाणा के विकास के लिए समर्पित हैं। हरियाणा का जो भी व्यक्ति मिलेगा वह कहता है कि हमारे मुख्यमंत्री विनम्रता के संबंध में हमारे हरियाणा का गौरव बढ़ाते हैं। उनका व्यक्तित्व सहज है व उनमें बहुत सहजता है। भाजपा के कार्यकर्ता के नाते मुझे हरियाणा में बहुत वर्षों तक काम करने का अवसर मिला है। जब मुख्यमंत्री की तारीफ़ करता हूं तो मन गर्व से भर जाता है। इनका विजन और इनकी लग्न बड़े बड़ों से भी बेहतर है।
इसी रैली के अगले ही दिन अम्बाला छावनी से छः बार विधायक रहे राज्य के पूर्व गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि, आज तक मैंने अपनी पार्टी से कुछ नहीं मांगा। मैं छह बार का विधायक हूं। अपनी वरिष्ठता की वजह से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश करता हूं। उन्होंने कहा कि फ़ैसला आलाकमान को करना है। उन्होंने कहा कि यदि मुझे इस बार मुख्यमंत्री बना दिया तो मैं हरियाणा की तक़दीर बदल दूंगा, तस्वीर बदल दूंगा।
विज का यह भी दावा है कि उन्होंने अपने छः बार के विधायकी के कार्यकाल में अंबाला छावनी के विकास के लिए जितने काम किए हैं उतने देश के किसी भी विधानसभा क्षेत्र में नहीं किए गए। दरअसल पार्टी का सबसे वरिष्ठ विधायक होने के नाते 2014 में ही राज्य के लोग अनिल विज को मुख्यमंत्री पद के सबसे मज़बूत दावेदार के रूप में देख रहे थे। परन्तु उन्हें नज़रअंदाज़ कर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने आर एस एस के मित्र व सहयोगी मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बना दिया। जबकि उस समय तक प्रदेश में खट्टर को कोई जानता भी नहीं था। इसके बाद 2019 में भी पार्टी ने मुख्यमंत्री पद हेतु पुनः खट्टर को ही चुना।
वर्तमान चुनाव में खट्टर को मोदी-शाह का क़रीबी होने के नाते केंद्रीय मंत्री तो ज़रूर बना दिया गया है परन्तु हरियाणा में जिस तरह खट्टर का विरोध हो रहा है उसकी वजह से प्रधानमंत्री की चुनाव सभा सहित कई प्रमुख जनसभाओं से उन्हें दूर भी रखा जा रहा है। क्योंकि किसान आंदोलन के समय खटटर ने मुख्यमंत्री रहते किसानों के विरुद्ध कई ऐसे हिंसा भड़काने वाले बयान दिए थे जोकि किसी मुख्यमंत्री पर शोभा नहीं देते।
बहरहाल, बाद में 2024 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मुख्यमंत्री पद से खट्टर का इस्तीफ़ा लेकर उनके लोकसभा चुनाव लड़ने का रास्ता प्रशस्त किया गया। और इस बार भी अनिल विज को मुख्यमंत्री बनाने के बजाए खट्टर के ही क़रीबी नायब सिंह सैनी को हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी गयी। उस समय भी अनिल विज की नाराज़गी सामने आई थी। मुख्यमंत्री सैनी स्वयं उनकी नाराज़गी दूर करने अनिल विज के निवास अंबाला छावनी आए थे।
परन्तु वर्तमान चुनाव प्रचार के बीच एक ओर अनिल विज का मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी ठोकना और साथ ही उसके जवाब में मोदी व अमित शाह जैसे भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं द्वारा तीसरी बार सरकार बनने की स्थिति में नायब सिंह सैनी को ही बार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताना इस बात का सुबूत है कि पार्टी के भीतर सब ठीक ठाक नहीं है। पार्टी के इन्हीं मतभेदों को उस समय और बल मिला जबकि अम्बाला ज़िले के अंतर्गत मुलाना विधानसभा क्षेत्र के बराड़ा क़स्बे में गत 27 सितम्बर को गृहमंत्री अमित शाह की एक रैली हुई।
इस रैली में मुलाना की भाजपा प्रत्याशी संतोष सारवान, अंबाला शहर के असीम गोयल तथा नारायणगढ़ के पवन सैनी तो मंच पर मौजूद रहे। उपस्थित लोगों से इन तीनों प्रत्याशियों का परिचय कराकर अमित शाह ने इनके लिए वोट भी मांगे। परन्तु अंबाला छावनी के प्रत्याशी अनिल विज यहाँ भी नदारद रहे। अम्बाला छावनी के क़रीब ही अमित शाह की सभा में अनिल विज की ग़ैर हाज़िरी कोई मामूली बात नहीं।
माना जा रहा है कि अनिल विज, मोदी शाह की नज़रों में तभी खटकने लगे थे जब दो वर्ष पूर्व फ़रीदाबाद के सूरजकुंड में विभिन्न राज्यों के गृह मंत्रियों के 2 दिवसीय चिंतन शिविर में हरियाणा के गृहमंत्री के रुप में अपनी उपलब्धियों का बयान कर रहे थे। अभी विज ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी तभी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जो कि इस बैठक की अध्यक्षता भी कर रहे थे, ने विज को अपनी बात समाप्त करने के लिए कई बार बीच में ही टोका। परन्तु विज उनके बार बार टोकने के बावजूद अपनी बात पूरी करके ही रुके। हालांकि बाद में इस सम्बन्ध में जब अनिल विज से पूछा गया तो उनका कहना था कि - किसी भी कार्यक्रम अध्यक्ष के लिए वक्ताओं को टोकना सही है, वह मेरे नेता हैं और उन्हीं से सीखकर बड़ा हुआ हूँ।
वैसे भी जो लोग अनिल विज को क़रीब से जानते हैं उन्हें मालूम है कि अनिल विज हरियाणा में मंगल सेन के बाद राज्य में भाजपा को मज़बूत करने वाले सबसे बड़े नेता हैं। इसके अतिरिक्त अनिल विज अपना समय हाईकमान या दूसरे वरिष्ठ पार्टी नेताओं को ख़ुश करने में व्यर्थ गंवाने के बजाय आम जनता से मिलने व उनकी समस्याओं को सुनने व सुलझाने में व्यतीत करना ज़्यादा पसंद करते हैं।
यही वजह है कि भाजपा छोड़ने के बाद स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में लड़ने पर भी उन्होंने चुनाव में इसी अंबाला छावनी से जीत हासिल की है। जबकि मोदी-शाह की ओर से सत्ता मिलने पर तीसरी कार्यकाल में पुनः जिन नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाने की बात की जा रही है। उन्हें इस बार अपनी नारायणगढ़ विधानसभा सीट असुरक्षित महसूस हुई तभी उन्हें लाडवा चुनाव क्षेत्र का रुख़ करना पड़ा। इसलिए कहना ग़लत नहीं होगा कि भाजपा राज्य में सत्ता विरोधी लहर के साथ साथ भीतरी कलह से भी जूझ रही है।

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