भारत और पाकिस्तान में बढ़ते तनाव के बीच दोनों देशों में 'तत्काल और पूर्ण संघर्षविराम' अर्थात फ़ायरिंग और सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति बन गई है।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से 'भारत और पाकिस्तान के बीच तत्काल और पूर्ण संघर्षविराम पर सहमति बनने' की जानकारी दी गई थी।डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि "भारत और पाकिस्तान पूर्ण और तत्काल सीज़फ़ायर पर सहमति जताई है।
"ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट में कहा, "अमेरिका की मध्यस्थता में हुई एक लंबी बातचीत के बाद, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान ने पूर्ण और तत्काल सीजफ़ायर पर सहमति जताई है। " अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा कि भारत और पाकिस्तान व्यापक मुद्दों पर बातचीत शुरू करने पर राज़ी हो गए हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि "हम शांति का मार्ग चुनने में प्रधानमंत्री मोदी और शरीफ़ की बुद्धिमत्ता, विवेक और कूटनीति की सराहना करते हैं।“ ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
यह युद्ध विराम ऐसे समय हुआ है जबकि भारत पाकिस्तान के मध्य तनाव बढ़ता ही जा रहा थे और दोनों और से एक दुसरे पर हमले व जवाबी हमलों के दावे किये जाने लगे थे। बहरहाल बुद्ध के देश से युद्ध विराम पर सहमति तो जता दी गयी परन्तु इसमें भी कोई शक नहीं कि पहलगाम नरसंहार के बाद भारत ने जिसतरह पाक व पाक अधिकृत कश्मीर स्थित आतंक के गढ़ पर आक्रमण किया उससे न केवल पाकिस्तान बल्कि पूरी दुनिया को सन्देश चला गया है कि भारत आतंकवाद के विरुद्ध किसी पंचायत में फ़रियाद लेकर जाने वाला नहीं बल्कि स्वयं आतंक का मुंह तोड़ जवाब देने वाला देश है।
परन्तु पहलगाम आतंकी हमले से लेकर ऑप्रेशन संदूर तक व उसके बाद युद्ध विराम की घोषणा होने तक भारतीय मीडिया ने जिस ग़ैर ज़िम्मेदारी का प्रदर्शन किया है उसकी जितनी भर्तस्ना की जाये वह कम है। ग़ैर ज़िम्मेदाराना प्रसारण के लिये इसी भारतीय मीडिया को देश की उच्च न्यायलय व सर्वोच्च न्यायलय द्वारा अनेक बार झिड़कियां सुननी पड़ीं हैं। कई बार ऐसे कई अनियंत्रित व भड़काऊ मीडिया चैनल्स को मुआफ़ी भी मांगनी पड़ चुकी है,अनेक बार पुलिस व प्रशासन की ओर से ऐसी बेबुनियाद व झूठी ख़बरों का खंडन किया जा चुका है।
हद तो यह है कि इसी तरह के बदनाम शुदा टी वी चैनल्स के रिपोर्टर्स को उनके झूठ फैलाने के चलते ही कई बार भीड़ के आक्रोश का सामना करना पड़ चुका है। ख़ुद उन्हें अपने ही चैनल में अपने ही द्वारा बुलाये गये मेहमानों से ही लाईव कार्यक्रमों में भरपूर बेइज़्ज़ती उठानी पड़ चुकी है। कई कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार पत्रकार ऐसे चैनल्स को छोड़ अपने यू ट्यूब चैनल चलाकर अपनी लोकप्रियता व वास्तविक पत्रकारिता का प्रमाण दे रहे हैं।
इन सब का नतीजा यह है कि ऐसे सभी 'गोदी चैनल्स ' की टी आर पी काफ़ी गिर चुकी है। परन्तु इतना अपमान व ज़लालत सहने के बावजूद ऐसे चैनल्स व उनके पत्रकारों में कोई परिवर्तन आना तो दूर की बात उल्टे उनका स्तर और भी गिरता ही जा रहा है। यहाँ तक कि भारत पाक के बीच चल रहे तनावपूर्ण माहौल के बीच भी सरकार को ऐसे चैनल्स को नियंत्रित रहने की सलाह देनी पड़ी।
पाक प्रायोजित पहलगाम आतंकी हमले व जवाब में भारतीय सेना द्वारा किये गये ऑपरेशन सिंदूर के बाद, भारत सरकार के सूचना मंत्रालय ने मीडिया को ज़िम्मेदाराना व संवेदनशील रिपोर्टिंग करने की हिदायत भी जारी की थी। मीडिया को सलाह दी गयी थी कि वह संयमित रहकर ज़िम्मेदाराना रिपोर्टिंग करे ताकि अफ़वाहें और ग़लत सूचनाएं न फैलें। रक्षा मंत्रालय ने भी 1 मई 2025 को मीडिया से फ़र्ज़ी व भ्रामक ख़बरों से दूर रहने की सलाह दी थी। क्योंकि ऐसी कवरेज दुश्मन को फ़ायदा पहुंचा सकती है और सुरक्षाकर्मियों के लिए ख़तरा पैदा कर सकती है।
ग़ौरतलब है कि भारतीय सेना की प्रवक्ता के रूप में कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी द्वारा ऑपरेशन सिन्दूर के बारे में यह बताया गया था कि 'ऑपरेशन सिन्दूर पहलगाम में हुए आतंकी हमले के पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय दिलाने के लिए शुरू किया गया था। ऑप्रेशन के लक्ष्य के विषय में बताते हुये उन्होंने कहा था कि भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मी में 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, जिनमें 4 पाकिस्तान और 5 PoK में थे।
उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी निर्दोष नागरिक को निशाना नहीं बनाया गया। ऑपरेशन का उद्देश्य आतंकवादी ढांचे को नष्ट करना और पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देना था कि भारत आतंकवाद को सहन नहीं कर सकता।
भारतीय सेना की कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी को प्रवक्ता के रूप में पेशकरने के साथ साथ यह भी कहा गया कि पूरा देश, पाकिस्तान के विरुद्ध भारत द्वारा उठाये जा रहे हर फ़ैसले के साथ एकजुट है।
मगर इस अति संवेदनशील घड़ी में भी भारतीय मीडिया सरकारी निर्देशों की गोया धज्जियाँ उड़ाने पर आमादा नज़र आया। गोदी मीडिया अपने चैनल्स पर भरपूर अफ़वाहें,ग़लत सूचनाएं और फ़र्ज़ी व भ्रामक ख़बरें प्रसारित करता रहा। युद्धोन्माद भड़काने के लिये इनके ऐंकर्स टी वी पर बन्दर की तरह उछलते व अभद्र शब्दावलियों का प्रयोग करते भी देखे गये। तनाव के दौरान एक ओर भारतीय सेना अपने रक्षात्मक पक्षों को सामने रख रही थी तो भारत का एक चैनल दावा कर रहा था कि पाकिस्तान के पांच शहर तबाह हो गए जबकि एक दूसरा चैनल पाकिस्तान के 25 शहर तबाह बता रहा था।
एक एंकर ने उछल उछल कर बताया कि पाकिस्तान के पांच शहर नक़्शे से मिट गये। कोई बता रहा है कि पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद पर क़ब्ज़ा हो गया ,कोई बता रहा है कि कराची पर क़ब्ज़ा हो गया। यूक्रेन-रूस युद्ध के वीडियो भारत-पाक के बताकर चला दिए गए। किसी ने शाहबाज़ शरीफ़ को बंकर में छुपा हुआ देख लिया तो कोई बता रहा था कि वह भागते हुए दिखाई दिये। किसी चैनल ने लाहौर इस्लामाबाद और सियालकोट पर आईएनएस विक्रांत द्वारा ज़बरदस्त हमले और कराची बंदरगाह के तबाह होने की ख़बर चला दी । तो किसी ने ब्रेकिंग न्यूज़ दी कि -'सुबह-सुबह पाकिस्तान के 6 शहर पर टूट पड़ी भारतीय सेना'।
आश्चर्य की बात तो यह कि यह सभी "जानकारियां' गोदी मीडिया के पास ही थीं भारतीय सेना या सरकार के पास नहीं।
मीडिया द्वारा देश की एकजुटता को बढ़ावा देने के बजाये नफ़रत परोसने का एक उदाहरण जम्मू-कश्मीर की एक ख़बर के प्रसारण में भी देखने को मिला। यहाँ पुंछ में एक 46 वर्षीय क़ारी मोहम्मद इक़बाल, जोकि स्थानीय मदरसा ज़िया -उल-उलूम में शिक्षक थे तथा एक स्थानीय सम्मानित व धार्मिक व्यक्ति थे, की पाकिस्तानी की ओर से सीमा पार से हुई गोलाबारी में मौत हो गयी।
वे आतंकवाद विरोधी तथा राष्ट्रवादी व्यक्ति थे।
पुलिस ने स्वयं उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा की है। परन्तु इन दलाल चैनल्स द्वारा यह प्रसारित किया गया कि “इक़बाल एक आतंकवादी था” और उसे भारतीय सेना ने मार गिराया। ज़रा सोचिये ऐसी झूठ बेबुनियाद भ्रामक व ख़बर फैलाकर मीडिया क्या सन्देश देना चाहता है ? इस ख़बर का कश्मीर के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? क्या वजह है कि इतने संवेदनशील माहौल में भी गोदी 'मीडिया' द्वारा झूठ व अफ़वाह फैलाकर उन्माद को हवा दी गयी ?
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