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ग्लोबल वार्मिंग-जलवायु परिवर्तन : असंभव है इन्हें रोक पाना

Global warming-climate change: It is impossible to stop them - Ambala News in Hindi

स समय पूरी पृथ्वी ग्लोबल वार्मिंग के संकट से बुरी तरह जूझ रही है। विश्व के किसी न किसी कोने से मानव जीवन को संकट में डालने वाले आये दिन कोई न कोई ऐसे समाचार सुनाई देते हैं जो पर्यावरण पर नज़रें रखने वालों को चौंकाने वाले होते हैं। मानव जनित इस समस्या के चलते इसी पृथ्वी के किसी न किसी भूभाग से कोई न कोई दिल दहलाने वाली ख़बरें अक्सर आती रहती हैं। कहीं ग्लेशियर पिघल रहे हैं तो कहीं समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। कहीं जंगलों में आग लग रही है तो कहीं पहाड़ धंस रहे हैं। कहीं जंगलों में आग लगने के समाचार आते हैं तो कहीं वनक्षेत्र ख़ासकर वर्षा वनों के कम होने की ख़बरें सुनाई देती हैं। कहीं पहाड़, शुष्क रेगिस्तान की तरह होते जा रहे हैं तो कहीं रेगिस्तान में बारिश होने लगी है। कहीं नदियाँ सूख रही हैं तो कहीं बाढ़ तबाही मचाये रहती है। कहीं पहाड़ों की ऊंचाई कम हो रही है तो कहीं करोड़ों वर्षों से बर्फ़ के आवरण से ढके पहाड़ों से बर्फ़ की सफ़ेद चादर हट चुकी है।
ज़ाहिर है दुनिया में बढ़ता जा रहा वायु प्रदूषण ही जलवायु परिवर्तन व व ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारक है। और यही ग्लोबल वार्मिंग और इसके कारण होने वाला जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के सबसे बुद्धिमान समझे जाने वाले मानव रुपी प्राणी की ही देन है। इन समस्याओं से जूझने के लिये स्वयं को विश्व के ज़िम्मेदार समझने वाले नेता व शासकगण वातनुकूलित वातावरण में दुनिया में कहीं न कहीं इकठ्ठा होते रहते हैं और पृथ्वी के इन दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हालात पर चिंता व्यक्त करने की औपचारिकता पूरी करते दिखाई देते हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने तो 53 वर्ष पूर्व यानी वर्ष 1972 में ही पूरे विश्व में पर्यावरण की सुरक्षा,संरक्षण तथा वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के प्रति राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु प्रत्येक वर्ष 5 जून को 'विश्व पर्यावरण दिवस' मनाने की घोषणा भी कर दी थी। तभी से दुनिया के देश इस विषय पर किसी न किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चिंता करते नज़र आते हैं। इसके लिए विश्व स्तर पर कई सम्मेलन और समझौते भी हो चुके हैं और भविष्य में भी प्रस्तावित हैं। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन एक ऐसा ही प्रमुख मंच है जहां विश्व के नेता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए क़दम उठाने पर सहमत होने की औपचारिकता पूरी करते दिखाई देते हैं।
प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाला यह सम्मेलन दुनिया के देशों को जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने के लिए एक साथ लाने का प्रयास करते भी नज़र आता है। इस सम्मेलन में शामिल देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने की कोशिश करते भी दिखाई देते हैं। उदाहरण के तौर पर संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के तहत हुआ पेरिस समझौता एक ऐसा महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो विश्व को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक साथ लाने की कोशिश करता है। इस समझौते का उद्देश्य वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है। इसी तरह पृथ्वी शिखर सम्मेलन है जोकि पर्यावरण और विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
रियो डी जनेरियो में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र फ़्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज की स्थापना की गयी थी। इसी तरह कभी दुनिया के प्रमुख विकसित और विकासशील देशों का एक समूह जी 20 शिखर सम्मेलन भी जलवायु परिवर्तन पर चर्चा का मंच बन जाता है। निकट भविष्य में भी ब्राज़ील के ऐमेज़ॉन क्षेत्र में स्थित बेलेम शहर में 10-21 नवंबर 2025 तक संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक जलवायु सम्मेलन आयोजित होने वाला है।
इसी तरह मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए एक संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन सऊदी अरब के रियाद,में आयोजित किया जाएगा। परन्तु इन सभी वैश्विक प्रयासों के बावजूद सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि 50 वर्षों से भी अधिक समय से ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी को बचाने व जलवायु संरक्षण के नाम पर होने वाले वैश्विक प्रयासों का आख़िर अब तक नतीजा क्या निकला है ? सिवाय इसके कि स्वयं को विकसित कहने वाले देश विकास के नाम पर स्वयं को तो ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा ज़िम्मेदार बनने से रोक नहीं पा रहे जबकि अन्य विकाशील व ग़रीब देशों को फ़ंड देकर उनसे यह उम्मीद करते हैं कि वही देश इसपर नियंत्रण करें?
विकासशील देशों से वृक्षारोपण अभियान चलाने की उम्मीद की जाती है जबकि विकसित देश हथियारों की होड़ व गगनचुम्बी इमारतों को बनाने की प्रतिस्पर्धा में जुटे रहते हैं। विकासशील देश नित नये उद्योग,वाहन व यातायात के अन्य प्रदूषण फैलाने वाले वाहन बनाने में मशग़ूल रहते हैं जबकि अन्य देशों को प्रवचन देते हैं कि ईंधन की खपत करने वाले 10-15 वर्ष पुराने वाहनों को चलन से बाहर करने के क़ानून बनायें?
आम लोगों को सलाह दी जाती है कि वे हवाई यात्रा कम से कम करें, कारों का इस्तेमाल न करें या इलेक्ट्रिक वाहन का प्रयोग करें, मांस व डेयरी प्रोडक्ट का इस्तेमाल कम से कम करें, घरेलू व औद्योगिक ज़रूरतों में ऊर्जा खपत में कटौती करें, कम से कम ऊर्जा ख़पत वाले उपकरण ख़रीदें, अपने घरों को तापावरोधी बनायें तथा गैस सिस्टम से इलेक्ट्रिक हीट पंपों पर स्विच करें, आदि आदि। यानी जलवायु सम्मेलनों के नाम पर इकठ्ठा होने वाले देशों में भी 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे ' वाली कहावत चरितार्थ होते दिखाई देती है। अन्यथा यदि जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग के असल ज़िम्मेदार देश विकास के नाम पर बनाई जाने वाली अपनी नीतियों में ईमानदाराना परिवर्तन करते तो 50 वर्षों के प्रयास के बावजूद आज पृथ्वी की स्थिति इस तरह दिन प्रतिदिन बद से बदतर न हो रही होती।
आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस ब्राज़ील के ऐमेज़ॉन क्षेत्र में नवंबर 2025 में संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक जलवायु सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है और जिस ऐमेज़ॉन क्षेत्र के वर्षावन पृथ्वी को लगभग बीस प्रतिशत ऑक्सीजन प्रदान करते थे उसी ऐमेज़ॉन क्षेत्र के सैकड़ों किलोमीटर के जंगल कुछ वर्ष पूर्व ही विकास की भेंट चढ़ गये ? हिमालय पर्वत की चोटियां जो हमेशा बर्फ़ की सफ़ेद चादर ओढ़े रहती थीं अब उनकी बर्फ़ पिघलने लगी है। अंटार्टिका के ध्रुवीय ग्लेशियर लगातार पिघलते जा रहे हैं। परमाणु युद्ध की दस्तस्क आये दिन सुनाई देती है।
अमेरिका,रूस व इस्राईल जैसे देश जब देखो तब कहीं न कहीं युद्ध के नाम पर ख़तरनाक बारूदी प्रदूषण फैलाते रहते हैं। और यही देश नेपाल जैसे छोटे देश तक का प्रदूषण स्तर नापते रहते हैं। शायद यही वजह है कि जलवायु सम्मेलन, नेताओं की तफ़रीह व सैर सपाटे की जगह तो बन जाते हैं परन्तु इन समस्याओं का स्थाई तो दूर अस्थाई समाधान भी निकाल नहीं पाते। इन परिस्थितियों को देखते हुये यह कहना ग़लत नहीं होगा कि ग्लोबल वार्मिंग व इसके कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन को रोक पाना लगभग असंभव सा प्रतीत होता।

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Web Title-Global warming-climate change: It is impossible to stop them
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