नई दिल्ली। एक शोध में यह बात सामने आई है कि एक तरह की बीमारियों में महिला मरीजों की तुलना में पुरुषों को ज्यादा दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं। हिब्रू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शोहम चोशेन हिलेल और मिका गुज़िकेविट्स के नेतृत्व में किए गए शोध से पता चला है कि आपातकालीन कक्षों में दर्द के इलाज में महिलाओं और पुरुषों को दी जाने वाली दर्द निवारक दवाओं में अंतर होता है।
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शोध से पता चला है कि दर्द के स्तर, आयु, चिकित्सा इतिहास और शिकायतों पर विचार करने के बाद भी महिला रोगियों को पुरुष रोगियों की तुलना में कम दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं।
यह शोध कहता है कि महिलाओं के दर्द को पुरुषों के दर्द की तरह गंभीरता से नहीं लिया जाता।
अमेरिकी और इजरायली स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड का विश्लेषण कर शोधकर्ताओं ने पाया कि आपातकालीन विभाग से छुट्टी पाने वाली महिला मरीजों को पुरुष मरीजों की तुलना में दर्द की शिकायतों के लिए उपचार मिलने की संभावना कम होती है।
विशेष रूप से आपातकालीन विभागों से प्राप्त डिस्चार्ज नोटों के डेटासेट से पता चला है कि महिला मरीजों को पुरुष मरीजों की तुलना में ओपिओइड और गैर-ओपिओइड सहित किसी भी प्रकार की दर्द निवारक दवा के लिए प्रिस्क्रिप्शन मिलने की भी संभावना कम है।
इसके अतिरिक्त महिला मरीजों को आपातकालीन विभाग में अतिरिक्त 30 मिनट तक रुकना पड़ता है और उनके दर्द का स्कोर नर्सों द्वारा दर्ज किए जाने की संभावना 10 प्रतिशत कम होती है।
प्रो. चोशेन-हिलेल ने कहा, "हमारे शोध से पता चलता है कि आपातकालीन देखभाल में महिलाओं के दर्द को कैसे माना जाता है और उसका इलाज कैसे किया जाता है, इस बारे में एक परेशान करने वाला पूर्वाग्रह है।"
उन्होंने कहा, ''महिला रोगियों के दर्द का इस तरह से कम उपचार किए जाने से महिलाओं के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे संभावित रूप से ठीक होने में अधिक समय लग सकता है। इससे कई जटिलताएं उत्पन्न उत्पन्न हो सकती हैं।''
--आईएएनएस
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