- प्रदीप द्विवेदी -
नईदिल्ली। कोई माने या नहीं माने वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बगैर किसी अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि के मीडिया के दम पर जो कर दिखाया है, उसके मुकाबले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ही नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह आदि कोई भी पूर्व प्रधानमंत्री 70 साल में कुछ खास नहीं कर पाए हैं?
जी हां, आज तक का- देश का मिजाज बेशर्म सर्वे तो यही कहता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
आजादी के 75 वर्ष में देश के महान प्रधानमंत्रियों को अपमानित करने वाला यह सर्वे बताता है कि कौन अब तक देश का बेहतरीन प्रधानमंत्री है?
सवाल के जवाब में 52 प्रतिशत समर्थन के साथ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे आगे पहले नंबर पर हैं।
बगैर किसी अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि के सर्वे में अव्वल आने वाले और बगैर निमंत्रण पाकिस्तान जाने वाले नरेंद्र मोदी के मुकाबले दुनिया की परवाह किए बगैर परमाणु परीक्षण करवाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी 12 प्रतिशत समर्थन के साथ दूसरे नंबर पर हैं, तो पाकिस्तान के दो टूकड़े करवाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 10 प्रतिशत समर्थन के साथ तीसरे नंबर पर पहुंच गई हैं। जबकि देश को अर्थ संकट में डालने वाले नरेंद्र मोदी के मुकाबले अर्थ संकट से उबारने वाले मनमोहन सिंह 12 प्रतिशत के साथ अटल बिहारी के साथ दूसरे नंबर पर हैं?
दुनिया के इतिहास में नाम दर्ज करने वाले जवाहरलाल नेहरू मात्र 5 प्रतिशत के साथ चौथे नंबर पर हैं? इस बेशर्म सर्वे की हद यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी, मनमोहन सिंह और जवाहरलाल नेहरू, इन चारों का प्रतिशत जोड़ लें तब भी... नरेंद्र मोदी से आगे नहीं निकल सकते हैं? मतलब- ये चारों मिलकर भी मोदीजी की बराबरी नहीं कर सकते हैं।
सबसे मजेदार बात यह है कि यही नरेंद्र मोदी जब तीन लाख से ज्यादा वोट से जीते तब 47 प्रतिशत लोकप्रिय थे, लेकिन.... इस बार मात्र डेढ़ लाख वोट से जीत कर 52 प्रतिशत लोकप्रिय हो गए हैं?
खैर, इतने वर्षों बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह को 12 प्रतिशत समर्थन तो प्राप्त है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री नहीं रहने के कुछ वर्षों बाद नरेंद्र मोदी ऐसे सर्वे में किस नंबर पर रहते हैं?
https://x.com/aajtak/status/1826632359946391758 न्यूयॉर्क टाइम्स-
बीजेपी ने एक हद तक दबाव डालने के साथ ही सरकारी विज्ञापन रोकने की धमकियों से पारंपरिक मीडिया को एक हद तक अपने रुख़ को स्वीकार करने के लिए तैयार कर लिया है!
https://www.bbc.com/hindi/india-64183120
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