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हिट-एंड-रन मामलों के नए कानून के खिलाफ क्यों खड़े हैं ट्रक-बस-टैंकर चालक?

Why are truck-bus-tanker drivers standing against the new law in hit-and-run cases? - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली। ट्रक ड्राइवरों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल मंगलवार को दूसरे दिन भी जारी है, देश ईंधन संकट से जूझ रहा है, जिससे बड़े पैमाने पर दहशत फैल रही है और समर्थन करने वाले विपक्षी नेताओं की भी आलोचना हो रही है। ट्रांसपोर्टर हाल ही में लागू भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के हिस्‍से हिट-एंड-रन कानून में बदलाव का विरोध कर रहे हैं, जिसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह ले ली है। क्या कहता है नया कानून...
नया हिट-एंड-रन कानून दुर्घटनास्थल से भागने वाले ड्राइवरों पर सख्त जुर्माने का प्रवाधान है। कानून के मुताबिक, दुर्घटना के बाद मौके से भागने वाले ड्राइवर को 10 साल तक की जेल या 7 लाख रुपये का जुर्माना होगा। यह कानून निजी वाहन मालिकों पर भी लागू होता है। पहले आईपीसी की धारा 304ए के तहत अधिकतम जेल की सजा दो साल की थी।
ट्रक, बस और तेल टैंकर चालक इस कानून का विरोध क्यों कर रहे हैं?
उनका तर्क है कि ये कठोर कदम उनकी आजीविका को ख़तरे में डाल देंगे, ड्राइवरों को हतोत्साहित करेंगे और संभावित रूप से घायलों को ले जाते समय उन्हें भीड़ की हिंसा का शिकार होना पड़ेगा। इन प्रावधानों को निरस्त करने की उनकी मांग के कारण देशव्यापी हड़ताल हुई है।

वकील का नजरिया...

आईएएनएस से बात करते हुए वकील शशांक दीवान ने कहा, “सजा विशेष रूप से तेज गति और लापरवाही से गाड़ी चलाने के मामलों के लिए निर्धारित की गई है। इस विशिष्ट खंड को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है। अभियोजन पक्ष को अंततः नशा, तेज गति या तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने जैसे कारकों को साबित करना होगा।
उन्होंने कहा कि हिट-एंड-रन का खतरा काफी अधिक रहता है, नए कानून से ड्राइवरों में जिम्मेदारी की भावना पैदा होगी।
दीवान ने यह भी कहा, "दुर्घटनाएं तेज गति या लापरवाही से गाड़ी चलाने के बिना भी हो सकती हैं।"
प्रदर्शनकारियों के यह कहने पर कि वाहन के मालिक को जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए, दीवान ने कहा कि जिम्मेदारी चालक की है।
उन्होंने कहा, “ऐसे परिदृश्य पर विचार करें, जहां एक ड्राइवर, शायद शराब के नशे में 140 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ी चलाता है और दुर्घटना का कारण बनता है। वाहन मालिक के लिए प्रत्येक चालक की व्यक्तिगत रूप से निगरानी करना संभव नहीं है। ऐसे मामलों में जहां लापरवाही से गाड़ी चलाने पर ध्यान नहीं दिया जाता है, जैसे पैदल यात्री बिना सावधानी के राजमार्ग पार कर रहा है, तो अभियोजन की जरूरत नहीं हो सकती है। हालांकि, इस परिप्रेक्ष्य को स्वीकार करना आदर्शवादी लग सकता है।”
“अभियोजन पक्ष की चुनौतियों से निपटना एक मौजूदा मुद्दा है, जिसमें लापरवाही और लापरवाही से गाड़ी चलाने की अस्पष्ट परिभाषाएं हैं। आम सहमति की कमी है, कुछ लोगों का तर्क है कि अकेले तेज गति से गाड़ी चलाना लापरवाही से गाड़ी चलाना नहीं है। तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने के मानदंड मनमाने और अस्पष्ट बने हुए हैं।''
दीवान ने कहा, मुद्दे तब उठते हैं, जब ओवर-स्पीडिंग जैसे आरोपों को साबित करने की कोशिश में अधिकारी अक्सर व्यक्तिपरक दावों पर भरोसा करते हैं।
उन्होंने कहा, "कुछ निर्णय साक्ष्य के रूप में स्किड मार्क्स की जरूरत का सुझाव देते हैं, लेकिन यह अकेले तेज और लापरवाही से ड्राइविंग को परिभाषित नहीं कर सकता।"
दीवान ने यह भी कहा कि इन चुनौतियों के बावजूद बदलाव की जरूरत है, खासकर नशे में गाड़ी चलाने जैसे मुद्दों के समाधान में।
दीवान ने कहा, "कुछ ड्राइविंग व्यवहारों से जुड़े बड़े खतरे और जोखिमों को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है।"
इस बीच, ऑल इंडिया मोटर एंड गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर ने दिल्ली में ड्राइवरों और वाहन मालिकों से कहा है कि भले ही वह हिट-एंड-रन मामलों में हिरासत की अवधि और जुर्माने की राशि के संबंध में निर्णय लेने से सहमत हों। कुछ खामियां हैं, मसले का हल बातचीत से ही निकल सकता है।
उन्‍होंने कहा, “समाधान खोजना संभव है और इसके लिए हमारे संगठन के सभी अधिकारी लगन से काम कर रहे हैं। समाधान जरूर निकलेगा और जल्द ही सरकार कानून में संशोधन के लिए तैयार होगी।''
कपूर ने परिवहन कारोबार से जुड़े अपने सहयोगियों से भी अनुरोध किया है कि वे धैर्य रखें, क्योंकि कानून एक अप्रैल से ही लागू होगा।
उन्होंने कहा, "इसलिए शांति बनाए रखें... हमें ईश्‍वर पर पूरा भरोसा रखते हुए शांति से काम करना है।"
विरोध का असर...

आंदोलन का प्रभाव स्पष्ट है, पश्चिमी और उत्तरी भारत में लगभग 2,000 पेट्रोल पंपों पर ईंधन का स्टॉक ख़त्म हो गया है।
चंडीगढ़ जैसे शहर सीमित ईंधन आपूर्ति के प्रबंधन के लिए उपाय लागू कर रहे हैं, जिसमें दोपहिया और चार पहिया वाहनों के लिए पेट्रोल और डीजल की बिक्री पर अस्थायी प्रतिबंध भी शामिल है।
अगर हड़ताल जारी रहती है या बड़े पैमाने पर अखिल भारतीय आंदोलन में तब्दील हो जाती है तो स्थिति सब्जियों, फलों और दूध जैसी आवश्यक आपूर्ति में संभावित व्यवधान को लेकर चिंता पैदा करती है।
--आईएएनएस

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