नई दिल्ली। पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में, फिर बिहार के मुजफ्फरपुर में और अब राजस्थान के कोटा में सैकड़ों बच्चों की असामयिक मौत हुई है। इन सभी घटनाओं में देश के बाल मृत्यु दर के आंकड़े बच्चों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों के इरादों पर गंभीर सवाल उठाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोटा में जेके लोन अस्पताल अच्छी तरह से इनक्यूबेटरों जैसी आवश्यक सुविधाओं से लैस नहीं है और कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
नेता इस पूरे मामले में बेतुकी बयानबाजी कर पल्ला झाडऩे की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है? इस सवाल का जवाब ढूढऩे की आईएएनएस ने कोशिश की है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने कोटा जैसी घटनाओं पर बात की। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. शांतनु सेन इस प्रकार की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हैं।
उन्होंने शुक्रवार को आईएएनएस से कहा कि कम बजटीय आवंटन, सरकार की भर्ती नीतियों का अनुचित कार्यान्वयन और गलत स्वास्थ्य योजनाएं इस प्रकार की दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण हैं। उन्होंने कहा, प्रत्येक भारतीय का स्वास्थ्य संवैधानिक और जन्म सिद्ध अधिकार है। यह स्टेट का विषय है। लेकिन दुर्भाग्य से इसके लिए ज्यादा बजटीय आवंटन नहीं किया जाता है।
130 करोड़ जनसंख्या वाले देश के लिए पूरे जीडीपी का चार से पांच प्रतिशत स्वास्थ पर खर्च किया जाना चाहिए, जबकि यहां सिर्फ 1.1 प्रतिशत होता है। उन्होंने आगे कहा कि इतने कम बजट में आप कैसे पूरे देश में बुनियादी ढांचे का विकास करने की उम्मीद कर सकते हैं। जब तक बुनियादी ढांचा मौलिक रूप से विकसित नहीं हो जाता इस प्रकार की घटनाएं होती रहेंगी।
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