नई दिल्ली। कोचिंग हब के रूप में मशहूर राजस्थान का कोटा एक बार फिर सवालों के घेरे में है। यहां बच्चों के भविष्य की तैयारियों की बजाय आत्महत्या की खबरें सुर्खियों में हैं। साल 2024 में अब तक 14 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं, जो सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि टूटते भरोसे और शिक्षा व्यवस्था की खामियों का खौफनाक सच है। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 17 मई को हुई सुनवाई में राजस्थान सरकार को जमकर फटकार लगाई।
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सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने तल्ख लहजे में पूछा, “एक राज्य के रूप में आप क्या कर रहे हैं? स्टूडेंट्स कोटा में ही क्यों जान दे रहे हैं? आपने इस पर कोई विचार किया भी है?”
इस तीखी टिप्पणी ने सीधे तौर पर राज्य सरकार की उदासीनता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कोर्ट का कहना है कि राजस्थान सरकार छात्र आत्महत्याओं को गंभीरता से नहीं ले रही और न ही संवेदनशीलता के साथ इन मामलों में कोई ठोस कार्रवाई की गई है।
दो आत्महत्याएं और सुप्रीम कोर्ट का स्वतः संज्ञान
कोर्ट की यह सख्ती 4 मई को दो आत्महत्या मामलों के बाद सामने आई है। पहला मामला कोटा में 17 वर्षीय NEET की छात्रा की खुदकुशी से जुड़ा है, जिसका शव परीक्षा से कुछ घंटे पहले हॉस्टल में मिला। दूसरा केस IIT खड़गपुर के छात्र का है, जिसने हॉस्टल में फांसी लगाकर जान दे दी।
इन दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को स्वतः संज्ञान (Suo Motu) लिया और तुरंत जवाब तलब किया। कोटा के केस में कोर्ट ने यह भी पूछा कि FIR दर्ज क्यों नहीं की गई?
कोर्ट रूम में सवाल-जवाब : जब वकील जवाब नहीं दे पाए
सुप्रीम कोर्ट : "आपने FIR क्यों नहीं दर्ज की?"
राजस्थान सरकार के वकील : SIT का गठन किया गया है। जांच जारी है।
सुप्रीम कोर्ट : "यह जस्टिस की अवमानना है। छात्रा कोचिंग इंस्टिट्यूट द्वारा दिए गए हॉस्टल में नहीं रह रही थी, फिर भी पुलिस को FIR दर्ज करनी थी। पुलिस अफसरों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।"
टास्क फोर्स, पैसा और असंवेदनशीलता
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मानसिक स्वास्थ्य और सुसाइड प्रिवेंशन के लिए केंद्र सरकार को एक नेशनल टास्क फोर्स (NTF) बनाने का आदेश दिया गया था। लेकिन यह काम भी अधूरा है। कोर्ट ने केंद्र से कहा कि NTF के लिए 20 लाख रुपए दो दिन में जमा कराएं।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता वाजिब है
यह सिर्फ कानून की बात नहीं, बल्कि मानवता का सवाल है। जब एक छात्र आत्महत्या करता है, तो उसके साथ उसका परिवार, उसकी उम्मीदें, उसके सपने सब कुछ खत्म हो जाते हैं। और जब ऐसा एक ही जगह – कोटा – में बार-बार हो, तो सवाल बनता है:
क्या हमारी कोचिंग सिस्टम में मानवीय संवेदना की कोई जगह नहीं?
क्या प्रतियोगी परीक्षाएं बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को निगल रही हैं?
क्या राज्य प्रशासन इन मामलों को सिर्फ आंकड़े मान रहा है?
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से 14 जुलाई तक जवाब तलब किया है। लेकिन यह मामला सिर्फ कोर्ट की फाइलों या सरकारी रिपोर्टों तक सीमित नहीं रह सकता। देश को एक व्यापक मानसिक स्वास्थ्य नीति, कोचिंग संस्थानों के लिए गाइडलाइन और संवेदनशील पुलिसिंग व्यवस्था की ज़रूरत है।
कोटा अब सिर्फ एक शहर नहीं, एक चेतावनी है
जहां कभी कोटा को "इंजीनियर और डॉक्टर फैक्ट्री" कहा जाता था, आज वही शहर आत्महत्याओं की त्रासदी का केंद्र बन चुका है। बच्चों पर पढ़ाई का दबाव, अभिभावकों की अपेक्षाएं, संस्थानों की लापरवाही और प्रशासन की चुप्पी—इन सबने मिलकर कोटा को कब्रगाह बना दिया है।
अब समय आ गया है कि हम सिर्फ परिणाम नहीं, प्रक्रिया को इंसानी बनाएँ। वरना अगली बार किसी और छात्र की जान जाएगी, और अखबार की हेडलाइन होगी — “एक और छात्र ने की आत्महत्या”।
यह खबर नहीं, एक सवाल है — क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के मानसिक स्वास्थ्य को बचा पाएंगे?
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