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कोरोना काल में चरमराई अर्थव्यवस्था, कैसे उबरा जाए?

The peaking economy in the Corona era, how to recover - Delhi News in Hindi

बीजिंग, 6 जून (आईएएनएस)| जब से कोरोना महामारी फैली है, तब से अनेक देशों की इकॉनोमी यानी अर्थव्यवस्था बिगड़ गई है। कोरोना वायरस के कारण पूरे विश्व को आर्थिक कीमत भी चुकानी पड़ी है। इसके कारण उद्योग-धंधों पर भी काफी हद तक ब्रेक लग गया है। इसको देखते हुए वैश्विक जीडीपी में भी कमी की संभावना जताई गई है। कोरोना महमारी पर लगाम लगाने के लिए कई देशों में लॉकडाउन लगाया गया। दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश हो, जिसने लॉकडाउन का दौर ना देखा हो।

भारत में 25 मार्च से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का ऐलान हुआ था और उसी के असर की वजह से देश की आखिरी तिमाही में आर्थिक विकास दर कुछ कम हुई है। लेकिन अप्रैल और मई में भारत में सभी उद्योग-धंधे और कामकाज पूरी तरह से बंद रहे, इसलिए आने वाली तिमाही में विकास दर और कम रहने का अनुमान है। माना जा रहा है कि इस साल भारत की जीडीपी में 4 से 5 फीसदी की गिरावट आएगी।

अगर चीन की जीडीपी की बात करें जो भारत की जीडीपी से 5 गुना ज्यादा है, इस साल के शुरूआती तीन महीनों में चीन की जीडीपी भी 6.8 प्रतिशत तक घट गई, जो अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है, जब से चीन ने 1992 से जीडीपी के आंकड़े जारी करना शुरू किया था।

इस साल की पहली तिमाही में जर्मनी की अर्थव्यवस्था भी 2.2 प्रतिशत तक सिकुड़ गई है, फ्रांस की जीडीपी विकास दर भी 5.8 प्रतिशत तक कम हो गई, स्पेन की जीडीपी की विकास दर में 5.2 प्रतिशत की कमी आयी है, यानी की कोरोना काल में दुनिया के ज्यादातर देशों की आर्थिक विकास दर में भारी कमी आयी है।

यह तो साफ है कि इस साल भारत की जीडीपी में गिरावट रहेगी और यह गिरावट 4 से 5 फीसदी तक हो सकती है। इस गिरावट का विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग असर हो सकता है। इस कोरोना संकट से भारत के तमाम अनौपचारिक क्षेत्र और लघु व मझौले उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। लोगों की आमदनी पर भी बुरा असर पड़ रहा है। कई लोगों की नौकरी भी चली गई है। बेरोजगारी दर में वृद्धि बनी हुई है। जहां जनवरी में बेरोजगारी दर करीब 7 फीसदी तक थी, वहां मई में यह दर 27 फीसदी तक पहुंच गई है।

इस कोरोना काल में भारत के अनेक उद्योग विशेषकर सत्कार उद्योग जैसे पर्यटन, विमानन, होटल आदि पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। लेकिन कृषि क्षेत्र पर उतना खास फर्क देखने को नहीं मिल रहा, परंतु भारत का विनिर्माण क्षेत्र बुरी तरह से चरमरा गया है।

अगर देखा जाए तो इस समय भारत की जीडीपी का करीब आधा हिस्सा रेड जोन से आता है और लॉकडाउन की वजह से कामकाज पूरी तरह से ठप है। लॉकडाउन खत्म किये बिना वहां सामान्य स्थिति बहाल नहीं की जा सकती। यदि लॉकडाउन खत्म कर भी दें तो भी विमानन, रेस्तरां, होटल, और अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूरों पर निर्भर उद्योगों में गतिविधि सामान्य से कम ही रहेगी, और जो प्रवासी मजदूर अपने गांव चले गये थे, उन्हें लौटने में वक्त भी लगेगा।

खैर, इस साल नेगेटिव ग्रोथ के बाद अगले साल 2021-22 में जीडीपी बढ़ेगी। लेकिन 5 से 6 फीसदी बढ़ भी गई तो यह सिर्फ वापसी भर ही कहा जाएगा, क्योंकि इस साल 4 से 5 फीसदी की गिरावट होगी, और यह वृद्धि हमें फिर वहीं पहुंचायेगी जहां साल 2019-20 में थे। यदि भारत साल 2022-23 में 6 से 7 फीसदी की वृद्धि कर पाता है, तब हम कह सकेंगे कि भारत मौजूदा संकट से उबर चुका है।

उसके लिए भारत को आश्वस्त करने वाली वित्तीय स्थिति निर्मित करने, सुचारू ढंग से काम करने वाला बुनियादी ढांचा बनाने, जल्दी ही बैंक की सकल गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) दशार्ने वाले गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) सहित बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने और निवेशकों व खासतौर पर विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए खास प्रयास करने होंगे। तब जाकर इस कोरोना संकट में चरमराई भारतीय अर्थव्यवस्था उभर सकेगी।

(लेखक : , चाइना मीडिया ग्रुप में पत्रकार हैं। साभार-चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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Web Title-The peaking economy in the Corona era, how to recover
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