गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने 21 मई 2015 को नोटिफिकेशन जारी किया
था। नोटिफिकेशन के तहत एलजी के जूरिडिक्शन के तहत सर्विस मैटर, पब्लिक
ऑर्डर, पुलिस और लैंड से संबंधित मामले को रखा गया था। इसमें ब्यूरोक्रेट्स
के सर्विस से संबंधित मामले भी शामिल हैं। केंद्र सरकार ने 23 जुलाई 2014
को नोटिफिकेशन के तहत दिल्ली सरकार की एग्जिक्यूटिव पावर को सीमित किया था।
साथ ही दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच का अधिकार क्षेत्र दिल्ली
सरकार के अधिकारियों तक सीमित किया था। इस जांच के दायरे से केंद्र सरकार
के अधिकारियों को बाहर कर दिया गया था। हाई कोर्ट में दिल्ली सरकार ने उक्त
नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था, जिसके
बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।
सुप्रीम कोर्ट की दलील
एलजी
की ओर से दलील दी गई थी कि एलजी को केंद्र ने अधिकार प्रदान कर रखे हैं।
सिविल सर्विसेज का मामला एलजी के हाथ में है क्योंकि ये अधिकार राष्ट्रपति
ने एलजी को दिया है। चीफ सेक्रटरी की नियुक्ति आदि का मामला एलजी ही तय
करेंगे। दिल्ली के एलजी की पावर अन्य राज्यों के राज्यपाल के अधिकार से अलग
है। संविधान के तहत गवर्नर को विशेषाधिकार मिला हुआ है।
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