नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या में विवादित ढांचे के मामले में लेकर आज सुनवाई है। एक मुस्लिम पक्षकार की तरफ से की गई है। पिछली सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले पर दोबारा विचार करने की मांग की थी।
धवन ने अपनी दलील पेश करते हुए कहा था कि 1994 का संविधान पीठ का फैसला अनुच्छेद 25 के तहत दिए आस्था के अधिकार को कम करता है। धवन ने कहा था, इस्लाम के तहत मस्जिद का बहुत महत्व होता है। एक बार मस्जिद बन जाए तो वो अल्लाह की संपत्ति मानी जाती है। उसे तोड़ा नहीं जा सकता।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान धवन ने कहा कि खुद पैगंबर मोहम्मद ने मदीना से 30 किमी दूर मस्जिद बनाई थी। इस्लाम में इसके अनुयायियों के लिए मस्जिद जाना अनिवार्य माना गया है।
उन्होंने कहा था कि अयोध्या में विवादित ढांचे पर यह कह देना कि कोई जगह मस्जिद नहीं थी, उससे कुछ नहीं होता। किसने आदेश दिया कि वहां नमाज नहीं पढ़ी जाएगी।
क्या है अयोध्या भूमि विवाद ---
हिन्दू पक्ष ये दावा करता रहा है कि अयोध्या में विवादित जगह भगवान राम का जन्म स्थान है। जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1530 में गिरा कर वहां मस्जिद बनाई। मस्जिद की जगह पर कब्जे को लेकर हिन्दू-मुस्लिम पक्षों में विवाद चलता रहा। दिसंबर 1949, मस्जिद के अंदर राम लला और सीता की मूर्तियां रखी गयीं।
जनवरी 1950 में फैजाबाद कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ। गोपाल सिंह विशारद ने पूजा की अनुमति मांगी। दिसंबर 1950 में दूसरा मुकदमा दाखिल हुआ। राम जन्मभूमि न्यास की तरफ से महंत परमहंस रामचंद्र दास ने भी पूजा की अनुमति मांगी।
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