नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आदेश दे दिया है कि बैंकों ने यदि मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज-पर-ब्याज लिया है तो वह या तो पैसा लौटाए या फिर उसे समायोजित करे। कोर्ट ने कर्जधारियों के हक में फैसला सुनाते हुए लिए गए ब्याज पर ब्याज को अगली ईएमआई में ही समायोजित करने का फैसला सुनाया है। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, एम.आर. शाह और संजीव खन्ना की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि यह 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज पर ब्याज माफ करने के तर्क को नहीं समझ पा रही है। साथ ही सरकार ने यह सीमा भी क्यों तय की है, इसका कारण भी नहीं बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि वह व्यापार और वाणिज्य के मामलों में बीच में नहीं आएगा और इस बात पर जोर दिया कि जज वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ नहीं होते हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं द्वारा कोविड महामारी को देखते हुए 6 महीने के लिए और मोरेटोरियम पीरियड देने के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया। साथ ही कहा कि सरकार बैंकों को यह निर्देश नहीं दे सकती है कि वे लॉकडाउन की अवधि के दौरान ऋण पर ब्याज माफ कर दे।
पीठ ने लघु उद्योग औद्योगिक संघ बनाम भारत संघ के मामले में यह फैसला सुनाया है। सरकार ने इस मामले में 17 दिसंबर 2020 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा, "आर्थिक और राजकोषीय नीतियों की के वल इसलिए न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती कि कोई एक क्षेत्र इन नीतिगत निर्णयों से संतुष्ट नहीं है।"
--आईएएनएस
मुख्तार अंसारी की मौत : पूर्वांचल के चार जिलों में अलर्ट, बांदा में भी बढ़ी सुरक्षा, जेल में अचानक बिगड़ी थी तबीयत
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक कश्मीर में नजरबंद
शराब घोटाला मामला: एक अप्रैल तक ईडी की हिरासत में केजरीवाल
Daily Horoscope