नई दिल्ली, । सर्वोच्च न्यायालय ने
बुधवार को बाघ अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के अंदर चिड़ियाघरों और
सफारी की स्थापना पर असंतोष व्यक्त किया।
कोर्ट ने कहा कि, प्रथम ²ष्टया यह बाघ अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के
अंदर चिड़ियाघरों की आवश्यकता की सराहना नहीं करता है और अधिकारियों को
बाघ अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों में अधिसूचित
मुख्य क्षेत्रों के भीतर कोई भी निर्माण करने से रोकता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जस्टिस
बीआर गवई और विक्रम नाथ की पीठ ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण
(एनटीसीए) से राष्ट्रीय उद्यानों में सफारी की आवश्यकता का विवरण देने के
लिए जवाब मांगा। पीठ ने कहा कि अगले आदेश तक हम अधिकारियों को बाघ
अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों में अधिसूचित मुख्य
क्षेत्रों के भीतर कोई भी निर्माण करने से रोकते हैं।
शीर्ष अदालत
द्वारा गठित एक पैनल, केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की रिपोर्ट भी
पीठ के संज्ञान में लाई गई थी। सीईसी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से
टाइगर रिजर्व और वन्यजीव अभ्यारण्य के भीतर चिड़ियाघर और सफारी स्थापित
करने से संबंधित दिशा-निर्देशों में संशोधन करने या वापस लेने को कहा। इसने
पर्यटन गतिविधियों के लिए वन्यजीव आवासों के उपयोग को बंद करने की मांग की
जो गैर-स्थल विशिष्ट हैं। साथ ही कहा, टाइगर रिजर्व और संरक्षित क्षेत्रों
के भीतर चिड़ियाघर और सफारी स्थापित करने के लिए दी गई मंजूरी को तुरंत
वापस लिया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत उत्तराखंड में कॉर्बेट टाइगर
रिजर्व के बफर क्षेत्र में टाइगर रिजर्व में कथित अवैध निर्माण और टाइगर
सफारी की स्थापना से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी। अधिवक्ता गौरव
कुमार बंसल ने एक आवेदन में सनेह वन विश्राम गृह में पखराव वन विश्राम गृह
आदि की ओर अवैध रूप से पेड़ों को काटकर भवनों और जल निकायों के कथित अवैध
निर्माण का मुद्दा उठाया।
--आईएएनएस
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