नई दिल्ली। एकबार में तीन तलाक को अपराध बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के एक हफ्ते के भीतर ही केरल का एक मुस्लिम संगठन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुन्नी मुस्लिम बुद्धिजीवियों के संगठन ने इस अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। याचिकाकर्ता समस्त केरल जमीयतुल उलमा ने सुप्रीम कोर्ट से अध्यादेश पर स्टे लगाने की मांग की है। संगठन का कहना है कि सरकार ने बिना कोई स्टडी या इस प्रथा के प्रसार का आकलन कराए यह कदम जल्दबाजी में उठाया है। आपको बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध घोषित कर दिया था। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मुस्लिम संगठन का आरोप है कि यह कानून असंवैधानिक और मनमाना है। दलील दी गई है कि एक बार में तीन तलाक को अब तक कानूनी मान्यता नहीं मिली थी और ऐसे में दंडित करने का प्रावधान रखने की कोई जरूरत नहीं थी। आगे कहा गया है, 'अगर इसका मकसद किसी नाखुश शादी में मुस्लिम पत्नी की सुरक्षा करना है तो कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं करेगा कि यह सुनिश्चित करने के लिए पति को 3 साल के लिए जेल में डाल दिया जाए और इसे गैरजमानती अपराध बना दिया जाए।'
आपको बता दें कि तीन तलाक पर मोदी सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को राष्ट्रपति की भी मंजूरी मिल गई है। पिछले बुधवार को इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हस्ताक्षर किए। केंद्र सरकार को अब इस बिल को 6 महीने में पास कराना होगा। बुधवार को कैबिनेट की बैठक में इस अध्यादेश को मंजूरी दी गई थी। यह अध्यादेश अब 6 महीने तक लागू रहेगा। इससे पहले लोकसभा से पारित होने के बाद यह बिल राज्यसभा में अटक गया था। कांग्रेस ने संसद में कहा था कि इस बिल के कुछ प्रावधानों में बदलाव किया जाना चाहिए।
उधर, सोमवार को मुंबई के एक पूर्व पार्षद, एक एनजीओ और एक वकील ने संयुक्त रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट में भी तीन तलाक मामले पर अध्यादेश के खिलाफ याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं ने एकबार में तीन तलाक को संज्ञेय अपराध बनानेवाले अध्यादेश के प्रावधानों को चुनौती दी है।
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