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-गोपेंद्र नाथ भट्ट-
नई दिल्ली। बात उन दिनों की है जब कोविड की विभीषिका के कारण भारत सहित पूरी दुनिया में त्राहिमाम मचा हुआ था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह नगर गुजरात के वड़नगर के निकट स्थित विशनगर कस्बे के एक अस्पताल में गरीब परिवार की एक माँ और बेटी का संवाद चल रहा था।आखों में आँसु भर कर माँ डॉक्टर से कह रही थी कि साहेब हमने पिछलें जन्म में कोई जघन्य पाप किए होंगे कि आज हमें डायबिटीज़ (मधुमेह) पीड़ित अपनी चार वर्ष की नाज़ुक सी बेटी को दिन में पाँच बार इन्सुलिन की दर्द भरी सुई देनी पड़ती है। भावुक माँ को बीच में ही रोकते हुए नन्ही बच्ची ने तुतलाते हुए कहा कि ‘माँ तू रो मत...मुझे सुई नही चुभती,तुम्हारे यह आँसू चुभते हैं....।’ माँ बेटी के यें संवाद सुन डॉक्टर का कलेजा फट गया और उनकी आँखे भर आई।
अस्पताल की डॉक्टर स्मिता जोशी ने यह बात भारी मन से अपनी बहन डॉ.शुक्ला रावल को सुनाई और दोनों बहनों ने दृढ़ संकल्प लिया कि वे बच्चों की डायबिटीज़ के इलाज एवं जन जागरूकता पैदा करने के लिए अपने साधनों एवं सामर्थ्य से दिन रात काम करेंगी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अपने परिवार के चार पीढ़ियों के रिश्ते का फ़ायदा उठाते हुए अपने लक्ष्य को मंज़िल पर पहुँचाने का हर संभव प्रयास करेंगी।
डॉ. स्मिता जोशी का पूरा परिवार चार पीढ़ियों से डॉक्टर्स का परिवार हैं । उनके दादा डॉ वासुदेव जे रावल (उंझा) और उनके सहयोगी डॉ वसंत भाई पारीख और डॉ द्वारका दास जोशी (दोनों वडनगर) पिछले कई दशकों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के परिवार से जुड़े रहे और गुजरात के मेहसाणा जिले के दूर दराज आदिवासी क्षेत्रों में मेडिकल केम्प लगा कर पीड़ित मानवता की सेवा का काम करते थे। नरेन्द्र मोदी भी उन्हें अपना गुरु मानते थे ।इन केम्पस में डॉ. स्मिता जोशी के पिता डॉ अनिल भाई वी.रावल और मेडिकल स्टूडेंट के रूप में डॉ. स्मिता जोशी और उनके परिवार के अन्य सदस्य भी भाग लेते रहें। इस तरह बचपन से ही उन्हें अपने परिवार से समाज सेवा के संस्कार और प्रेरणा मिली एवं इस परम्परा (लेगेसी) को वे आज दिन तक निभा रहीं हैं ।साथ ही उनके परिवारजन अपने दादा डॉ वासुदेव जे रावल के नाम से एक चैरेटिबल ट्रस्ट भी चला कर समाज सेवा का पवित्र कार्य कर रहें हैं । इस कार्य में डॉ स्मिता जोशी के पति डॉक्टर केतन जोशी भी उन्हें सक्रिय सहयोग दें रहें हैं।
अमरीका और भारत में 7500 किमी सेल्फ ड्राइव का कीर्तिमान बनाया
डॉ. स्मिता जोशी और डॉ शुक्ला रावल ने बच्चों की डायबिटीज़ के लिए जन जागरूकता पैदा करने के अपने मानवतावादी मिशन पर तेजी से काम शुरू किया और बीस फरवरी 2019 से 14 मार्च 2019 तक कश्मीर से कन्या कुमारी तक अपनी स्वयं की कार चला और सभी प्रकार के अन्य खर्चे वहन कर 3500 किमी की ड्राइव में जगह-जगह विभिन्न डॉक्टर्स,स्वयंसेवी और सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों से संपर्क और मुलाकातें कर बच्चों की डायबिटीज़ के लिए जन जागरण पैदा किया और इसके प्रिवेंशन और निराकरण के उपायों पर सघन वार्ताएं भी आयोजित की।उनके इस अभियान की शुरुआत जयपुर में आयोजित ऑल इंडिया डायबिटीज कॉन्फ्रेंस के दौरान देश भर के मधुमेह चिकित्सा विशेषज्ञ डॉक्टर्स की मौजूदगी में राजस्थान के तत्कालीन चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री द्वारा फ्लेग ऑफ के साथ हुई थी। उसके बाद उनका यह कारवां रुका नहीं और उन्होंने इसे सात समंदर पार अमरीका तक पंहुचा दिया।दोनों डॉक्टर्स बहनें जून 2019 में अपने खर्चे पर अमरीका के सेन फ्रांसिस्कों शहर पहुंची और वहां अमेरिकन डायबिटीज़ एसोसिएशन (एडीए) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया । एडीए में विश्व भर के बीस हज़ार और भारतीय मूल के एक हजार डॉक्टर्स हैं। इस कार्यक्रम में भाग ले रहे एडीए, डायबिटीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) नई दिल्ली के प्रतिनिधियों विशेष कर एडीए के प्रेसिडेंट ने डॉ स्मिता जोशी और डॉ शुक्ला रावल को 'ग्लोबल डायबिटीज़ अवेयरनेस' के लिए प्रेरित किया और वे निकल पड़ी एक लम्बी कार यात्रा पर... उन्होंने सेन फ्रांसिस्कों से अटलांटा की 4000 किमी लम्बी यात्रा ड्राइव की और कई कठिनाइयों के बावजूद अपने दृढ निश्यय और लक्ष्य को नहीं छोड़ा तथा कई बार लंच डीनर स्कीप कर और इंटरनेट सेवाएँ बंद होने से संवाद शून्यता के बाद भी अपने सफर को जारी रख अंजाम पर पहुँचाया I अमरिका की लम्बी और थकान भरी यात्रा के दौरान डॉ स्मिता जोशी और शुक्ला रावल के डॉक्टर पुत्र डॉ राजा जोशी और डॉ मन पंचोली भी उनके सारथी बन कंधे से कन्धा मिला कर साथ चलें । इस लम्बे सफर में उन्होंने अमेरिकन एसोसिएशियन ऑफ़ फिजिशियन ऑफ़ इंडिया (आपी ) के डाक्टरों हुए अन्य लोगों, एनजीओ से जुड़े प्रतिनिधियों आदि से भी मुलाक़ात की I आपी के सदस्य के रुप में अकेले अमरीका में भारतीय मूल के एक लाख डाक्टर सदस्य हैं,जबकि पूरी दुनियाँ में 12 लाख भारतीय डॉक्टर्स इस संस्था के सदस्य हैं I
इन दोनों डॉक्टर्स बहनों ने अटलांटा में आपी के अध्यक्ष को भारत आकर और डायबिटीज पीड़ित बच्चों के लिए भारत सरकार के साथ मिल कर एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम करने की अपील की ताकि डायबिटीज पीड़ित बच्चों की मदद के रुप में यह प्रोजेक्ट पूरी दुनियाँ के सामने एक टॉर्च दिखाने जैसा प्रोजेक्ट बन सकें। अमरीका प्रवास में सभी लोगों ने समझा कि इन दोनों बहनों का ऐजेंडा फण्ड रेजिंग होगा जैसा प्रायः भारत से आने वालों का होता हैं लेकिन उन सभी के आश्चर्य की सीमा उस वक्त सीमा पार कर गई जब दोनों बहनों ने सभी को बताया कि हमें कोई फण्ड नहीं चाहिये बल्कि इस अभियान की सफलता में मात्र सक्रिय भागीदारी का सहयोग चाहिए।डाक्टर्स बहनों की इस बात से हर कोई हैरान था लेकिन उनकी भावना से अत्यंत प्रभावित होकर सभी उनके मुरीद हो गए ।
अमरिका यात्रा के दौरान डॉ स्मिता जोशी और टीम को अपने मित्र अशोक भट्ट की मदद से अमरीका की उप राष्ट्रपति कमला हेरिस से भी मुलाकात का सौभाग्य मिला।
भारत में सर्वाधिक 2.50 लाख डायबिटीज पीड़ित बच्चे
उल्लेखनीय हैं कि दुनियाँ में सबसे अधिक 2.50 लाख डायबिटीज पीड़ित बच्चे भारत में हैं और इसमें दूसरा नम्बर अमरीका का आता हैं। भारत में बच्चों की डायबिटीज को लेकर अभी भी वह जागरुक्ता नहीं हैं जोकि अमरीका में हैं I प्रायः लोग यह मानते हैं कि यह बड़े उम्र और लोगों की बीमारी हैं तथा इसी अज्ञानता और जागरूकता की कमी के कारण युवा अवस्था में ही यह पीढ़ी मौत की भेंट चढ़ जाती हैं। अमरीका के मुकाबले भारत में साधन सुविधाओं का भी भारी अभाव हैं, वहां इन्सुलिन पम्प और अन्य हाई टेक सुविधाएँ मौजूद होने के कारण बच्चों को न तो इन्सुलिन सुई के दर्द को भोगना पड़ता हैं और नहीं उनकी असामयिक मृत्यु ही होती हैं। हालाँकि एक इन्सुलिन पम्प की कीमत दो से ढाई लाख रु हैं ।भारत में करीब ढाई लाख बच्चों सहित मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या 7.40 करोड़ हैं I मधुमेह के कारण आँखों की रौशनी चले जाना, किडनी फ़ैल होना और अपंगता सहित जान पर जोखिम बना रहना जैसे भयंकर दुष्परिणाम होते हैं I
कोराना काल में भी बच्चों की मदद
अमरीका से लौटने के बाद डॉ स्मिता जोशी और उनकी टीम ने दुनियाँ में आई कोरोना की आपदा कोविड-19 ( 1920 -21 ) की भीषण विभीषिका और लॉक डाउन के मुश्किल समय के दौरान दो वर्षों तक मेहसाणा जिले के दूर दराज के 146 डायबिटीज पीड़ित गरीब बच्चों को उनके घरों तक पहुंच कर गूल्को मीटर और एक वर्ष तक चलने वाली ब्लड शुगर टेस्ट की स्टिप्स मुहैया कराई और इन्सुलिन के इंजेक्शन और एच बी ए 1 सी की टेस्ट सुविधाएँ आदि भी उपलब्ध कराई तथा पीड़ित बच्चों को मौत के मुँह में जाने से बचाने का काम किया। कोरोना की मार कुछ शिथिल पड़ने पर उन्होंने दूर दराज क्षेत्रों विशेष कर गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों की सेवा के अभियान को और अधिक गति से आगे बढ़ाया ।
जीवन का लक्षय मधुमेह रोग पीड़ित भारतीय बच्चों की सेवा
डॉ स्मिता जोशी बताती हैं कि हम दोनों बहनों के जीवन का लक्षय भारतीय बच्चों में मधुमेह रोग ( टाइप वन जूवेनल डायबिटीज़) की रोकथाम और उपचार के लिए भारत सरकार से एक नीति निर्धारित कराना हैं ताकि इस जानलेवा रोग के प्रति आम लोगों में जागरूकता बढे और रोग से पूर्व की सावधानियां और इसके निदान की उपयुक्त आदर्श पॉलिसी बन सकें। अभी विडम्बना यह हैं कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके ) में टाइप वन जूवेनल डायबिटीज़ फॉर चिल्डर्न्स शामिल नहीं होने से इस राष्ट्रीय कार्यक्रम का लाभ भारतीय बच्चों को नहीं मिल पा रहा हैं । इस कार्यक्रम में 30 अन्य रोगों को शामिल किया हुआ हैं । इसी प्रकार गैर संचारी रोगों (एन सी डी ) के लिए बनी योजनाओं में भी तीस वर्ष से ऊपर की आयु वाले लोगों को ही शामिल किया गया हैं। इस तरह इस योजना का लाभ उठाने से भी भारतीय बच्चे वंचित हैं I
डॉ जोशी बताती हैं कि उनके अनवरत प्रयासों के फलस्वरूप आईसीएमआर ने टाइप वन जूवेनल डायबिटीज़ फॉर चिल्डर्न्स के लिए हाल ही एक गाइड लाइन जारी की हैं I साथ ही भारत यात्रा पर आये गापी के अध्यक्ष अमरीका निवासी डॉ सुधीर पारीख की केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री मनसुख लक्ष्मण भाई मंडाविया और केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री डॉ. मुंजापारा महेंद्रभाई से 21 जून को हुई मुलाकात में भी सकारात्मक सहयोग का भरोसा मिला हैं I साथ ही नीति आयोग के सदस्य डॉ वी के पॉल और उत्तरप्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन और गुजरात सरकार से भी पूरा सहयोग और प्रोत्साहन मिल रहा हैं I
इन्सुलिन डिस्कवरी के शताब्दी वर्ष में हो पॉलिसी की घोषणा
उन्हें उम्मीद हैं कि इन्सुलिन डिस्कवरी के शताब्दी वर्ष में (सौ वर्ष पूर्व कनाडा में चौदह वर्ष के एक बच्चे पर शोध के बाद इन्सुलिन इंजेक्शन का ईजाद हुआ था) प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी के जन्म दिवस 17 सितम्बर को भारतीय बच्चों में मधुमेह रोग ( टाइप वन जूवेनल डायबिटीज़) के सम्बन्ध में कोई नीति गत घोषणा होंगी जिससे लाखों करोड़ों भारतीय बच्चों और भावी पीढ़ी को मधुमेह जैसी घातक और जानलेवा बीमारी से मुक्ति मिल सकेंगी।डॉ स्मिता जोशी और डॉ शुक्ला रावल ने पिछलें तीन चार वर्षों से मिढ़ाई खाना भी छोड़ रखा है । अब वे नई पॉलिसी आने पर ही किसी मिष्ठान का स्वाद चखेंगी।
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