नई दिल्ली । एक महत्वपूर्ण
घटनाक्रम में, जो पश्चिम बंगाल में राजनीतिक पारा बढ़ा सकता है और जहां
अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, शारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई ने
सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने
कहा है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी के
कर्मचारियों को नियमित रूप से 23 महीने तक भुगतान किया गया।
तारा टीवी शारदा समूह के हस्से के रूप में जांच के दायरे में था। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सीबीआई
ने कहा कि सीएम राहत कोष से नियमित रूप से राशि का भुगतान किया गया -
प्रति माह 27 लाख रुपये - मई 2013 से अप्रैल 2015 के बीच।
आवेदन में
कहा गया, "ये राशि कथित तौर पर मीडिया कंपनी के कर्मचारियों के वेतन
भुगतान के लिए दी गई, जो जांच के तहत शारदा ग्रुप ऑफ कंपनीज का हिस्सा थी।"
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी कर्मचारी कल्याण संघ को कुल 6.21 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।
सीबीआई
ने कहा कि एक निजी मीडिया कंपनी को भुगतान किए जाने की जांच के लिए 16
अक्टूबर, 2018 को एक पत्र मुख्य सचिव, पश्चिम बंगाल को लिखा गया, लेकिन कई
प्रयासों के बावजूद राज्य सरकार ने अधूरे उत्तर दिए।
सीबीआई ने हाई
कोर्ट के आदेश का हवाला दिया जिसमें आदेश दिया गया था कि "कर्मचारियों के
वेतन का भुगतान उपलब्ध धनराशि से किया जाना चाहिए" और यह कहीं नहीं कहा गया
कि एक निजी टीवी चैनल के कर्मचारियों को मुख्यमंत्री राहत से भुगतान किया
जाय।
याचिका में कहा गया, "अदालत के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा
गया है कि कर्मचारियों को कंपनी के फंड से भुगतान किया जाना है। सीएम रिलीफ
फंड से भुगतान एक बड़ी साजिश और सांठगांठ की ओर इशारा करती है।"
घोटाले
में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर शक की सुई की ओर इशारा करते हुए, सीबीआई
ने कहा, "सीबीआई और राज्य प्राधिकरणों के बीच हुए पत्राचार से पता चलेगा कि
कानून की प्रक्रिया से बचने के लिए एक ठोस प्रयास किया गया।"
सीबीआई
ने 2013 में पूर्व राज्यसभा सांसद कुणाल कुमार घोष से पूछताछ का हवाला
देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और शारदा समूह के प्रमोटर-
सुदीप्त सेन के बीच अच्छे संबंध थे।
जांच एजेंसी ने कहा कि सेन और
घोष के दो नंबरों के कॉल डिटेल रिकॉर्ड से पता चलता है कि उनके बीच एक नंबर
पर 298 बार और दूसरे नंबर पर 9 बार बातचीत हुई थी।
पूर्व कोलकाता
कमिश्नर राजीव कुमार से हिरासत में पूछताछ की मांग करते हुए सीबीआई ने कहा
कि जांच से यह भी पता चला है कि पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ त्रिणमूल और
शारदा समूह के साथ मिलकर बिधाननगर पुलिस ने राजीव कुमार के कहने पर सबूत
छुपाए।
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गवाह के रूप में घोष से पूछताछ
अक्टूबर 2013 में हुई थी, जिसमें पता चला कि राजीव कुमार गिरफ्तार
अभियुक्तों, सुदीप्त सेन, देबयानी मुखर्जी और अन्य गवाहों की पूछताछ के
दौरान ईडी अधिकारियों के संपर्क में थे। ये पूछताछ सितंबर से नवंबर 2013 के
दौरान हुई थी।
"अधिकारियों द्वारा यह सुनिश्चित किया गया था कि इन
आरोपी व्यक्तियों या गवाहों द्वारा दिए गए सबूत रिकॉर्ड में नहीं लिए जाने
चाहिए, क्योंकि जांच का एक हिस्सा प्रभावशाली व्यक्तियों को बचाने के
उद्देश्य से था।"
सीबीआई ने कहा कि मामले में काफी सारे सबूत उभर कर
सामने आए हैं, जिसके बाद पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर की भूमिका की पुष्टि
हुई है, जो प्रभावशाली सह-अभियुक्तों को बचाने में सफल रहे। इन्होंने पोंजी
कंपनियों की अवैध व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया और इससे लाभान्वित
हुए।
सीबीआई ने शारदा समूह के कर्मचारी सफीकुर रहमान से पूछताछ का
भी हवाला दिया। "यह कहा जाता है कि उक्त कथन (रहमान द्वारा) के अनुसार, जब
मुख्यमंत्री ने विधायक सीट के लिए चुनाव लड़ा, तो सुदीप्त सेन को
भवानीपुर, कोलकाता में सभी पूजाओं के लिए पैसे देने के लिए मजबूर होना
पड़ा। रहमान ने आगे कहा कि 'जंगलमहल' परियोजना को मुख्यमंत्री ने राइटर्स
बिल्डिंग, कोलकाता में आयोजित एक समारोह में हरी झंडी दिखाकर रवाना किया
था।
2013 में, बिधाननगर पुलिस आयुक्त के रूप में कुमार के कार्यकाल
के दौरान, घोटाले का खुलासा किया गया था। कुमार इस घोटाले की जांच के लिए
राज्य सरकार द्वारा गठित एसआईटी का हिस्सा थे। इससे पहले शीर्ष अदालत ने
2014 में सीबीआई को जांच सौंपी थी।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल नवंबर
में कलकत्ता कोर्ट द्वारा मामले में कुमार को दी गई अग्रिम जमानत के खिलाफ
सीबीआई की अपील पर आईपीएस अधिकारी की प्रतिक्रिया मांगी थी।
--आईएएनएस
कोर्ट को आप ने राजनीतिक अखाड़ा बना दिया है, भारतीय न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश : शहजाद पूनावाला
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक कश्मीर में नजरबंद
शराब घोटाला मामला: एक अप्रैल तक ईडी की हिरासत में केजरीवाल
Daily Horoscope