लेख में कहा गया है कि दिल्ली में 2015 के बाद भाजपा की जमीनी स्तर
ढांचे को पुनर्जीवित करने और चुनाव के आखिरी चरण में प्रचार-प्रसार को चरम
पर ले जाने में नाकामी हार का बड़ा कारण बनी। नरेंद्र मोदी और अमित शाह
हमेशा विधानसभा स्तर के चुनावों में मदद नहीं कर सकते। दिल्ली में संगठन का
पुनर्गठन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
'ऑर्गनाइजर' के संपादक
प्रफुल्ल केतकर ने लिखा है, "दिल्ली जैसे बड़े शहर में मतदाताओं के
व्यवहार को समझने की जरूरत है। भाजपा द्वारा उठाया गया शाहीन बाग का मुद्दा
फेल हो गया, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने इस पर स्पष्ट रुख साफ कर दिया।
इसके साथ ही केतकर ने भाजपा को केजरीवाल के नए 'भगवा अवतार' के लिए चेताया
और कहा कि इस पर नजर रखने की जरूरत है।"
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