नेताओं की बैठकें बिना सुरक्षा गार्ड के गोपनीय स्थानों पर होती रहीं।
ज्यादातर जगह सिंधिया खुद ड्राइव कर जाते रहे। यह भी तय किया गया सारा
ऑपरेशन खुद सिंधिया करें। पहला प्रयास गुरुग्राम में किया गया, लेकिन यहां
विधायकों को लाने की भनक कांग्रेस नेताओं को लग गई। इसके बाद भाजपा नेताओं
ने सबकुछ बारीकी से तय करना शुरू किया। असल में गुरुग्राम होटल मामले को
सिर्फ सिंधिया देख रहे थे।
उन विधायकों के पहुंचने के अगले दिन शेष विधायक
आने थे, लेकिन बात लीक हो गई और सक्रिय दिग्विजय ने खेल खराब कर दिया। इसके
चलते एक सप्ताह का और वक्त लगा और गोपनीयता पर फोकस किया गया। एक-एक
विधायक को विश्वास में लिया गया। भाजपा नेताओं के बाद खुद सिंधिया ने एक
साथ सभी विधायकों का दो घंटे का सेशन लिया। उसके बाद सभी बेंगलुरू रवाना
हुए। विधायकों को बताया गया कि अगर कमलनाथ सरकार काम नहीं कर रही है तो वे
अगला चुनाव हारेंगे ही।
बेहतर है ऐसी सरकार लाएं, जिसमें उनकी सुनी जाए।
इस्तीफे के बाद टिकट और जीत का भरोसा दिया गया। ऑपरेशन में चर्चित नामों के
बजाय सामान्य कार्यकर्ताओं और नेताओं के सहारे विधायकों को जोड़ा गया,
जिससे शक न हो। दिग्विजय, कमलनाथ के इस भ्रम का फायदा उठाया गया, जिसमें वे
सोचने लगे थे कि गुरुग्राम लीकेज और असफलता के बाद अब कुछ माह सब शांत
रहेगा।
(IANS)
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