नई दिल्ली। एक तरफ कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। राहुल गांधी 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' लेकर देश में कांग्रेस की जमीन मजबूत करने निकल पड़े हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के नाव की सवारी छोड़कर उनके ही वरिष्ठ नेता या तो भाजपा का दामन थाम ले रहे हैं या फिर अन्य पार्टी में चले जा रहे हैं।
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मतलब साफ है कि कांग्रेस को झटके पर झटका उनकी पार्टी के नेता ही दे रहे हैं। चुनाव से ठीक पहले ही कांग्रेस के नेता पार्टी को छोड़ना शुरू कर देते हैं। कांग्रेस के कई पूर्व सीएम जैसे कि कैप्टन अमरिंदर सिंह, गुलाम नबी आजाद, एन. बिरेन सिंह, नारायण राणे, एसएम कृष्णा, शंकर सिंह वाघेला, पेमा खांडू और अशोक चव्हाण जैसे नेताओं का भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से भरोसा समाप्त होता नजर आया।
कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता एक तरफ तो पार्टी छोड़ चुके हैं। वहीं, दूसरी तरफ कई बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने की अटकलें लगाई जा रही है। महाराष्ट्र में तो कांग्रेस को एक के बाद एक प्रदेश के तीन दिग्गज नेताओं ने झटका दिया है। सबसे पहले पार्टी से एक महीने पहले मिलिंद देवड़ा ने इस्तीफा दिया। इसके बाद 8 फरवरी को बाबा सिद्दीकी ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया और अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी कांग्रेस की नाव से उतर चुके हैं।
कांग्रेस के अंदर की अंतर्कलह आज से जारी नहीं है। राहुल गांधी के सबसे नजदीकी नेताओं में से जाने-जाने वाले नेता अब भाजपा के साथ हैं तो वहीं कांग्रेस में सोनिया गांधी के करीबी माने जाने वाले नेताओं में से रीता बहुगुणा जोशी, कैप्टन अमरिंदर सिंह और गुलाम नबी आजाद भी पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं।
कांग्रेस से युवा नेताओं का भी मोह भंग होता जा रहा है। इसका उदाहरण मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी, आरपीएन सिंह, अशोक तंवर जैसे नेता हैं, जो कांग्रेस से अलग हो चुके हैं। वहीं, बिहार में अशोक चौधरी, असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा, सुनील जाखड़ के साथ अश्वनी कुमार जैसे भी नेता हैं जो पार्टी के काम करने के तरीके से नाखुश होकर पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं।
कांग्रेस ने पूरे देश में विपक्ष को एनडीए के खिलाफ इकट्ठा करने के लिए 'इंडी' गठबंधन तैयार की, तब उसे लगा था कि देश की सत्ता तक पहुंचने के लिए यह रास्ता आसान होगा। लेकिन, एक-एक कर इंडी गठबंधन से पार्टियां अलग होती चली गईं। सबसे पहले नीतीश कुमार जिन्होंने इस गठबंधन के लिए सबको इकट्ठा किया था भाजपा के साथ हो लिए। फिर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को भी कांग्रेस का साथ रास नहीं आ रहा।
ममता कांग्रेस पर निशाना साध रही हैं तो अरविंद केजरीवाल जिस तरह से लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का दावा कर रहे हैं उससे साफ हो गया है कि वह एकला चलो रे की राह पर बढ़ रहे हैं। एनसीपी और शिवसेना टूटी और उनका नेतृत्व जिनके हाथ में है, वह कांग्रेस का विरोध करते रहे हैं।
अब कांग्रेस के 10 साल के समय को देखें तो आपको पता चल जाएगा कि एक तरफ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से पार्टी की जमीन देश में मजबूत करने की कोशिश हो रही है, दूसरी तरफ पार्टी के दिग्गज और युवा नेताओं ने एक-एक कर पार्टी का साथ छोड़ दिया है।
इसमें जयवीर शेरगिल, हिमंता बिस्वा शर्मा, हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अनिल एंटनी, आरपीएन सिंह, सुनील जाखड़, अश्विनी कुमार, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, बाबा सिद्दीकी, अशोक चव्हाण, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी, कैप्टन अमरिंदर सिंह, कुलदीप बिश्नोई, रिपुन बोरा, सुप्रिया एरोन, अदिति सिंह, इमरान मसूद, पीसी चाको, अशोक चौधरी, नारायण राणे, शंकर सिंह वाघेला, एन बिरेन सिंह, पेमा खांडू, जयंती नटराजन और अशोक तंवर जैसे नाम शामिल हैं। इसमें से बड़ी संख्या में नेताओं ने कांग्रेस को झटका देते हुए भाजपा का दामन थाम लिया।
कांग्रेस को छोड़ते समय इनमें से ज्यादातर नेताओं ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और खासकर राहुल गांधी पर उनकी अनदेखी के आरोप लगाए। इनमें से जिन्होंने भी भाजपा का दामन थामा, उन्हें भाजपा ने अपनी पार्टी में जगह भी दी। कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को बाहर का रास्ता दिखाया तो अब उनके भी भाजपा में शामिल होने की बात कही जा रही है। पार्टी के नेताओं के असंतोष पर ध्यान दें तो पता चलेगा कि बड़े-छोटे देशभर के हर प्रदेश से कुल मिलाकर 400 से ज्यादा की संख्या में अलग-अलग स्तर के नेता कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं।
--आईएएनएस
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