विदेशों में
अपनी कुछ लंबी यात्राओं के चलते गांधी को एक अनिच्छुक राजनेता के रूप में
माना जाता था। साथ ही पार्टी प्रमुख की भूमिका में देरी, संप्रग सरकार के
दोनों कार्यकाल में मंत्री पद की जिम्मेदारी नहीं संभालने और कुछ मुद्दों
पर उचित तरीके से प्रतिक्रिया न करने से उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है। ये भी पढ़ें - यहां नागमणि से होता है सर्प दंश का इलाज!
हालांकि
बाद में मोदी और भाजपा पर उनके तेज और आक्रामक हमलों ने इस धारणा को बदला
और यह दिखाया कि वे उनका सामना करने में सक्षम हैं। अपनी एक अमेरिका यात्रा
के दौरान उन्होंने थिंक टैंकों के साथ बातचीत की थी, जिससे उनकी छवि में
आमूलचूल बदलाव आया।
गुजरात में सफलता कांग्रेस के लिए एक बड़ा मनोबल
बढ़ाने वाली घटना हो सकती है। गांधी एक व्यापक सामाजिक गठबंधन बनाने में
सफल रहे और उन्होंने मोदी को प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर कर दिया।
राहुल
के सामने अन्य बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश में पार्टी की खिसके जनाधार को
दोबारा हासिल करने की होगी। राज्य में सबसे अधिक लोकसभा सीट (80) हैं।
गांधी ने विधानसभा चुनाव में दो बार पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व
किया, लेकिन दोनों बार असफलता ही हाथ लगी।
हाल ही में हुए स्थानीय
निकाय चुनाव में अमेठी और रायबरेली में पार्टी अपनी छवि के अनुरूप प्रदर्शन
नहीं कर सकी थी। अमेठी और रायबरेली राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी
के लोकससभा क्षेत्र हैं।
कांग्रेस चुनावी रूप से सिकुड़ रही है,
पार्टी अब बिहार जैसे राज्य में चौथे पायदान पर है, वहीं पश्चिम बंगाल,
महाराष्ट्र और तमिलनाडु समेत दिल्ली में वह तीसरे स्थान पर है। 2014 के बाद
से विभिन्न विधानसभा चुनावों में, पार्टी तीसरे या चौथे स्थान पर रही है।
पार्टी के मुख्य पक्षों में से एक दलित और अन्य पक्ष पार्टी से दूर चले गए
हैं।
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