नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि कोई भी देश या समाज लैंगिक न्याय के बिना संपूर्ण विकास हासिल करने का दावा नहीं कर सकता है या न्यायपूर्ण समाज नहीं बन सकता है। अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने कई बदलाव लाए हैं, चाहे वह सैन्य सेवा में महिलाओं की नियुक्ति हो या लड़ाकू पायलटों की चयन प्रक्रिया में हो या रात में खानों में काम करने की उनकी स्वतंत्रता के बारे में हो। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संविधान समानता के अधिकार के प्रावधानों के तहत लैंगिक न्याय की गारंटी देता है, और भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से है, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद से महिलाओं को वोट देने का अधिकार सुनिश्चित किया है। उन्होंने कहा कि आजादी के 70 साल बाद चुनावों में महिलाओं की भागीदारी अपने उच्चतम स्तर पर है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, आज, भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से है जो मातृत्व अवकाश में वेतन देने को मंजूरी देता है।
उन्होंने कहा कि भारत में पहली बार शैक्षणिक संस्थानों में लड़कियों का नामांकन लडक़ों की तुलना में अधिक है। पीएम ने कहा कि ये कॉन्फ्रेंस 21वीं सदी के तीसरे दशक के शुरुआत में हो रही है। ये दशक भारत सहित पूरी दुनिया में होने वाले बड़े बदलावों का है। ये बदलाव सामाजिक, आर्थिक, और तकनीकी हर क्षेत्र में होंगे। ये बदलाव तर्क संगत और न्याय संगत होने चाहिए।
ये बदलाव सभी के हित में होने चाहिए। पूज्य बापू का जीवन सत्य और सेवा को समर्पित था, जो किसी भी न्यायतंत्र की नींव माने जाते हैं और हमारे बापू खुद भी तो वकील थे। अपने जीवन का जो पहला मुकदमा उन्होंने लड़ा, उसके बारे में गांधी जी ने बहुत विस्तार से अपनी आत्मकथा में लिखा है। हर भारतीय की न्याय पालिका पर बहुत आस्था है। हाल में कुछ ऐसे बड़े फैसले आए हैं, जिनको लेकर पूरी दुनिया में चर्चा थी।
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