नई दिल्ली। हेमबर्ग में जी-20 सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात में डोकलाम विवाद का हल निकालने की आधारशिला रखी गई थी। एक नए किताब में यह खुलासा हुआ है। रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ नितिन ए. गोखले ने सिक्योरिंग इंडिया द मोदी वे नामक किताब में खुलासा करते हैं कि यह बैठक जी-20 नेताओं के प्रतीक्षालय में बैगैर घोषणा के मोदी के शी के पास चले जाने के बाद हुई थी। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को इस किताब का विमोचन किया था। किताब के मुताबिक, तात्कालिक बैठक के गवाह रहे भारतीय राजनयिकों के अनुसार, प्रधानमंत्री के शी से अघोषित मुलाकात के बाद चीनी दल चकित रह गया था। किताब के अनुसार, संक्षिप्त मुलाकात के दौरान, मोदी ने शी को सलाह दी कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और स्टेट काउंसलर यांग जीची को डोकलाम विवाद सुलझाने की अगुवाई करनी चाहिए।
मोदी ने कथित रूप से शी से कहा, हमारे रणनीतिक संबंध डोकलाम जैसे इन छोटे सामरिक मुद्दों से बडे हैं। एक पखवाडे बाद, डोभाल प्रस्तावित ब्रिक्स एनएसए बैठक के लिए बीजिंग गए। इसबीच डोकलाम विवाद के दौरान भारतीय दल ने राजदूत विजय गोखले की अगुवाई में चीन में 38 बैठकें की। भारतीय दल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, एनएसए डोभाल और विदेश सचिव एस. जयशंकर से स्पष्ट निर्देश मिल रहे थे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
किताब के अनुसार, दल को ये निर्देश दिए गए थे कि भारत जमीन पर पर दृढ़ और कूटनीति में तर्कसंगत रहेगा। किताब के अनुसार, ब्रिक्स स्तर पर जोरदार तैयारी करने के बाद चीन शिखर सम्मेलन में भारत की अनुपस्थिति का खतरा मोल नहीं ले सकता था। अंत में, समझ यहां तक पहुंची कि चीन इस क्षेत्र में सडक़ निर्माण के कार्य को रोकेगा, जिस वजह से यह विवाद पैदा हुआ था।
भारत और चीन दोनों ने विवाद सुलझाने के बाद अपने बयानों में इन मुद्दों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। किताब में यह भी खुलासा किया गया है कि यह विवाद मई के अंतिम दिनों में शुरू हुआ और इसे तीन चरणों में बांटा जा सकता है -मई के अंत से 25 जून तक गतिरोध, 26 जून से 14 अगस्त के बीच दोनों तरफ की सेनाएं आमने-सामने और 15 अगस्त से 28 अगस्त के बीच विवाद अपने चरम पर। किताब के अनुसार, 16 जून को एक हल्का वाहन और उपकरण सहित नौ भारी वाहन क्षेत्र में पहुंचे और उस दिन सुबह भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच कुछ नोकझोक हुई। इसके कुछ ही देर बाद रॉयल भूटान आर्मी का एक गश्ती दल वहां पहुंचा और चीनी सेना के साथ विवाद हुआ।
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