नई दिल्ली। भारतीय खाद्य निगम के बोर्ड के गठन में नियमों का पालन नहीं करने को लेकर संसदीय समिति ने उपभोक्ता मामले , खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के रवैये को लेकर गहरी नाराजगी जताई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा सांसद संतोष गंगवार की अध्यक्षता वाली संसद की सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति ने भारतीय खाद्य निगम को लेकर लोक सभा में पेश की गई रिपोर्ट में मंत्रालय के जवाब को लेकर अपनी नाखुशी भी जाहिर की है।
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समिति के मुताबिक , भारतीय खाद्य निगम अधिनियम की धारा 7(1) में तीन अलग-अलग मंत्रालयों - खाद्य, वित्त और सहकारिता के अनिवार्य प्रतिनिधित्व का प्रावधान है लेकिन निगम के बोर्ड के गठन में एक ही मंत्रालय अर्थात प्रशासनिक मंत्रालय के 2 अधिकारी थे और इसमें वित्त मंत्रालय से कोई नहीं था।
संसदीय समिति ने इसे नियमों का उल्लंघन करार देते हुए इसके बारे में मंत्रालय द्वारा दिए गए जवाब को लेकर भी अपनी नाखुशी जाहिर की।
दरअसल , समिति द्वारा उठाए गए सवाल के जवाब में मंत्रालय ने कहा था कि एएस एंड एफए को वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधि के तौर पर भारतीय खाद्य निगम के बीओडी में नियुक्त किया गया है । समिति ने यह कहते हुए मंत्रालय के तर्क को खारिज कर दिया कि उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के एएस एंड एफए के एक मंत्रालय में पूर्णकालिक नौकरी के कारण उन्हें दूसरे मंत्रालय का अधिकारी नहीं माना जा सकता।
समिति ने मंत्रालय द्वारा दिए गए जवाब की निंदा करते हुए कहा कि मंत्रालय निगम में बोर्ड स्तर पर नियुक्तियों के महत्व को कम समझने और काल्पनिक और अनुपयुक्त तर्कों द्वारा इसे उचित ठहराए जाने के संबंध में आत्मनिरीक्षण करे।
संसदीय समिति ने सरकार के उत्तर को अस्वीकार करते हुए सिफारिश की है कि मंत्रालय खाद्य निगम अधिनियम , 1964 का पालन करते हुए भारतीय खाद्य निगम के बोर्ड में तीनों मंत्रालयों के प्रतिनिधित्व को सही करने के लिए तत्काल कदम उठाए।। समिति ने 3 महीने के भीतर सिफारिश पर की गई कार्रवाई से अवगत कराने को भी कहा है।
समिति ने भारतीय खाद्य निगम के निदेशक मंडल के नियमों के मुताबिक पुनर्गठन करने की भी सिफारिश की है।
--आईएएनएस
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