नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने
महाराष्ट के पालघर में साधुओं की हत्या की भीड़ द्वारा पीटकर की गई हत्या
मामले में सीबीआई जांच की मांग पर गुरुवार को सुनवाई करने पर सहमति जताई और
इस मांग पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा।
न्यायाधीशों अशोक भूषण, एम.आर. शाह और वी. रामासुब्रमण्यन की पीठ ने एक अलग
याचिका पर भी नोटिस जारी किया, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए कि
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जांच कराने की मांग की गई है कि सबूत
नष्ट न हों। शीर्ष अदालत इस मामले में आगे की सुनवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह
में करेगी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
याचिकाकर्ताओं के एक समूह, जूना अखाड़ा के सभी
पुजारियों और पीड़ितों के कुछ रिश्तेदारों ने शीर्ष अदालत को बताया कि
उन्हें महाराष्ट्र सरकार या पुलिस पर कोई भरोसा नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने
यह भी कहा कि वे मामले में निष्पक्ष और न्यायपूर्ण जांच की उम्मीद नहीं
करते हैं, क्योंकि उन्हें इसमें सरकार और पुलिस की संलिप्तता का संदेह है।
याचिकाकर्ताओं
ने दलील दी, "पूर्वाग्रह रखने को लेकर आशंका है उचित। अगर प्रतिवादी नंबर
2 (महाराष्ट्र पुलिस) जांच के साथ आगे बढ़ता है, न्यायिक रूप से यह
स्वीकार किया जाता है कि निष्पक्ष और न्यायोचित जांच का अधिकार संविधान के
अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी है। इसलिए, याचिकाकर्ताओं ने मामले की जांच
केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपने की मांग करते हुए इस कोर्ट का रुख किया
है।"
महाराष्ट्र सरकार के वकील ने याचिकाओं का विरोध किया और शीर्ष
अदालत के सामने कहा कि इसी तरह के मामले बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष भी लंबित
हैं।
वहीं, एनआईए जांच की मांग करने वाले याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया, "हमारी आशंका यह है कि सबूत गायब हो जाएंगे।"
दलील
में कहा गया कि पुलिस अधिकारियों के सामने भीड़ ने साधुओं, चिकने महाराज
कल्पवृक्ष गिरि (70) और सुशील गिरि महाराज (35) को पीटना शुरू किया था।
दलील में कहा गया है कि महाराष्ट्र पुलिस और राज्य सरकार की मौजूदगी और
संभावित मिलीभगत के चलते साधुओं को बेरहमी से पीटा गया और उनकी मौत हो गई।
--आईएीनएस
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