नई दिल्ली । जब तालिबान ने पिछले साल
अगस्त में अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया, पड़ोसी पाकिस्तान में सरकारी
अधिकारियों, सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों और कट्टर मौलवियों ने आतंकवादी
समूहों की सत्ता में वापसी का जश्न मनाया। यह बात आरएफई/आरएल की खबर में
कही गई।
पर्यवेक्षकों ने चेतावनी दी थी कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर जबरन
कब्जा करना पाकिस्तान को हिंसक विद्रोह के लिए प्रेरित कर सकता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
रिपोर्ट
में कहा गया है कि उन आशंकाओं को अब महसूस किया गया है, क्योंकि तहरीक-ए
तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), जिसे पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है, ने
हाल के महीनों में अपने हमले तेज कर दिए हैं।
इस्लामाबाद को एक और
झटका देते हुए अफगान तालिबान एक करीबी वैचारिक और संगठनात्मक सहयोगी टीटीपी
पर नकेल कसने को तैयार नहीं है। 2014 में एक बड़े पाकिस्तानी सैन्य हमले
ने देश की कबायली पट्टी से कई आतंकवादियों को सीमा पार से अफगानिस्तान की
ओर खदेड़ दिया।
विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान पर तालिबान के
कब्जे ने टीटीपी को और मजबूत किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले
साल अगस्त में अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी ने इस क्षेत्र में
अमेरिकी हवाई हमलों को काफी कम कर दिया, जिससे कि टीटीपी अधिक स्वतंत्र रूप
से संचालित हो सके।
टीटीपी लड़ाकों ने अमेरिका निर्मित
आग्नेयास्त्रों सहित परिष्कृत हथियार भी प्राप्त किए हैं, जिन्हें उनके
अफगान सहयोगियों ने अफगानिस्तान की पराजित सशस्त्र बलों से जब्त कर लिया
था।
वार्ता विफल होने के बाद से टीटीपी ने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों
के खिलाफ घातक हमलों को अंजाम दिया है। आतंकवादी समूह ने 30 दिसंबर, 2021
को उत्तरी वजीरिस्तान कबायली जिले में चार पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या की
जिम्मेदारी ली थी। एक दिन पहले, उसी जिले में एक पुलिस अधिकारी को
मोटरसाइकिल सवार सशस्त्र आतंकवादियों द्वारा मार दिया गया था।
पाकिस्तान के सुरक्षा विशेषज्ञ अब्दुल बासित का कहना है कि टीटीपी इस्लामाबाद को संकेत दे रहा है कि वह मजबूत स्थिति में है।
बासित
का कहना है कि टीटीपी ज्यादातर पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को निशाना बनाता
है और वैश्विक से स्थानीय जिहादी घटनाओं की तरफ बढ़ गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "समूह का फोकस और बयानबाजी में बदलाव टीटीपी को पाकिस्तान के लिए एक दीर्घकालिक खतरा बनाता है।"
क्षेत्र
में आतंकवादी समूहों पर नजर रखने वाले स्वीडन के एक शोधकर्ता अब्दुल सईद
का कहना है कि अफगान तालिबान इस्लामाबाद की इस मांग के आगे झुकेगा, इसकी
संभावना नहीं है। वह टीटीपी को निष्कासित कर सकता है या उसे पाकिस्तान में
हमले करने के लिए अफगान क्षेत्र का उपयोग करने से रोक सकता है।
पर्यवेक्षकों
का कहना है कि टीटीपी को पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान से विदेशी
सैनिकों की वापसी और क्षेत्र में अमेरिकी ड्रोन हमलों की कम संख्या से भी
बढ़ावा मिला है। वर्षो से अमेरिकी हवाई हमले लगातार टीटीपी नेताओं और
कमांडरों को नष्ट करने में सफल रहे हैं।
--आईएएनएस
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