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सिंधु जल संधि पर अमित शाह के बयान से पाकिस्तान भड़का, कहा – अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन

Pakistan got angry with Amit Shah statement on Indus Water Treaty, said - violation of international laws - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली/इस्लामाबाद। भारत के गृह मंत्री अमित शाह द्वारा सिंधु जल संधि को "कभी बहाल न किए जाने" और पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी को राजस्थान की ओर मोड़ने की घोषणा पर पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। इस मुद्दे ने एक बार फिर भारत-पाक संबंधों में तनाव की लहर पैदा कर दी है। क्या कहा अमित शाह ने?
अमित शाह ने हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक विशेष इंटरव्यू में स्पष्ट शब्दों में कहा : “सिंधु जल संधि को कभी बहाल नहीं किया जाएगा। जो पानी पाकिस्तान की ओर बहता था, उसे अब नहर बनाकर राजस्थान के गंगानगर तक लाया जाएगा।”
उन्होंने यह भी बताया कि आने वाले तीन वर्षों में यह योजना ज़मीन पर दिखाई देगी और भारत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए सिंधु नदी के पानी का अधिकतम उपयोग करेगा।
पाकिस्तान का तीखा प्रतिवाद
भारत के इस बयान पर पाकिस्तान की सरकार ने कड़ा विरोध जताया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार रात एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा:
"यह बयान अंतरराष्ट्रीय समझौतों की अहमियत को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करने वाला है। सिंधु जल संधि कोई राजनीतिक व्यवस्था नहीं, बल्कि एक वैध अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसमें किसी भी एकतरफा कार्रवाई का प्रावधान नहीं है।"
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने भारत पर अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कहा कि, “भारत की यह एकतरफा और अवैध घोषणा सिंधु जल संधि के प्रावधानों और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन है। भारत को अपनी यह गैर-क़ानूनी स्थिति तुरंत वापस लेनी चाहिए और इस संधि का पूर्ण व बाधारहित क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।”
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी, जिसकी मध्यस्थता विश्व बैंक ने कराई थी। इस समझौते के तहत भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) का उपयोग करने का अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) का प्रमुख उपयोगकर्ता माना गया।हालांकि, भारत को भी कुछ हद तक पश्चिमी नदियों का 'गैर-उपभोग' उपयोग करने की छूट दी गई — जैसे सिंचाई, पनबिजली परियोजनाएं और घरेलू उपयोग।
भारत का तर्क: बदले हालात, नई रणनीति
पुलवामा हमले (2019) के बाद से भारत में सिंधु जल संधि को लेकर सख्त रुख अपनाने की मांगें तेज़ हुई थीं। भारत का तर्क रहा है कि पाकिस्तान द्वारा बार-बार आतंकी घटनाओं को समर्थन देने के बावजूद पानी जैसी जीवनरेखा तक समान अधिकार अनुचित है। अमित शाह के बयान को इसी रणनीति का अगला कदम माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सिंधु जल संधि को रद्द करना आसान नहीं है, लेकिन भारत ने इसके तकनीकी प्रावधानों का अधिकतम उपयोग शुरू कर दिया है। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने किशनगंगा और रटले जैसी पनबिजली परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाया है।
कूटनीतिक प्रभाव और भविष्य की दिशा
भारत की ओर से संधि को “कभी बहाल न करने” जैसे कठोर शब्दों का उपयोग एक सख्त कूटनीतिक संकेत है। यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत-पाक के संबंध पहले ही ठंडे पड़े हैं और कश्मीर से लेकर सीमा पार आतंकवाद तक कई मसलों पर दोनों देशों में संवाद लगभग शून्य है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान भारत की बदलती भू-राजनीतिक सोच को भी दर्शाता है — जिसमें अब पानी, पर्यावरण और संसाधनों को सुरक्षा नीति का हिस्सा बनाया जा रहा है।
हालांकि पाकिस्तान का यह कहना कि भारत की हरकत "अवैध और एकतरफा" है, यह दिखाता है कि आने वाले महीनों में यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठ सकता है।

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Web Title-Pakistan got angry with Amit Shah statement on Indus Water Treaty, said - violation of international laws
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