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बहिष्कार का विपक्ष का फैसला निंदनीय, लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मान्यताओं पर हमला - एनडीए

Opposition decision to boycott is condemnable, attack on democratic values and constitutional beliefs - NDA - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली, । संसद के नए भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार को लेकर विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए में शामिल घटक दलों ने एक साझा बयान जारी कर विपक्षी दलों के बहिष्कार के फैसले की निंदा करते हुए कहा है कि यह महज अपमानजनक फैसला नहीं है, बल्कि इस महान देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मान्यताओं पर हमला है। एनडीए के घटक दलों ने विपक्षी दलों से बहिष्कार के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का भी अनुरोध किया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता एवं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, नेशनल पीपल्स पार्टी के नेता एवं मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के नेता एवं नागालैंड सीएम नेफियू रियो, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के नेता एवं सिक्किम के सीएम प्रेम सिंह तमांग, मिजो नेशनल फ्रंट के नेता एवं मिजोरम के सीएम जोरामथंगा, जननायक जनता पार्टी के नेता एवं हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेता एवं केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस, अपना दल की नेता एवं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के नेता एवं केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले, तमिल मनीला कांग्रेस के जी.के. वासन, एआईएडीएमके के पलानीस्वामी, इंडिया मक्कल कलवी मुनेत्र कातची के देवनाथन, आजसू पार्टी (झारखंड) के सुदेश महतो ने एनडीए की तरफ से साझा बयान जारी करते हुए कहा, "हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से जुड़े दल 19 विपक्षी दलों द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन के विरोध के फैसले की घोर निंदा करते हैं। सर्वविदित है कि 28 मई 2023 (रविवार) को नए संसद भवन का उद्घाटन होना तय हुआ है। विपक्ष का यह महज अपमानजनक फैसला नहीं है, बल्कि इस महान देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मान्यताओं पर हमला है।"

बयान में आगे कहा गया है कि लोकतंत्र में संसद, एक पवित्र संस्था है, लोकतंत्र के दिल की जीवंत धड़कन है। यहीं देश की उन नीतियों पर फैसले होते हैं, जिनसे लोगों के जीवन में बदलाव आता है। मुल्क की नियति बदलती है। ऐसी महान संस्था के प्रति विपक्षी दलों द्वारा यह अनादर और अपमान, महज बौद्धिक दिवालियापन नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की मूल आत्मा और मर्यादा पर कुठाराघात है।

एनडीए ने इस फैसले पर अफसोस जताते हुए कहा कि तिरस्कार और बहिष्कार की यह पहली घटना नहीं है। पिछले नौ सालों में देखें, तो इन विपक्षी दलों ने बार-बार संसदीय प्रक्रियाओं नियमों की अवमानना की है। सत्रों को बाधित किया है। महत्वपूर्ण विधायी कामों के दौरान सदन का बहिष्कार किया है और अब बहिष्कार का यह फैसला लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की खुलेआम धज्जी उड़ाने की इसी कड़ी में आत्मघाती फैसला है।

एनडीए ने आरोप लगाया कि विपक्ष का संसदीय व्यवस्था, मर्यादा और लोकतांत्रिक शुचिता के प्रति यह तिरस्कार पूर्ण रवैया लगातार बढ़ रहा है। नकारात्मक फैसला और कदमों की इस स्थिति में विपक्ष की संसदीय मर्यादा और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उपदेशात्मक भूमिका, हास्यास्पद और पाखंड है। यह लोक स्मृति में दर्ज है कि इन विपक्षी दलों ने जीएसटी के विशेष सत्र का बहिष्कार किया था, जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने की थी। उन्हें भारत रत्न दिए जाने के समारोह का भी बहिष्कार इन्हीं तत्वों ने किया। यहां तक कि रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर सामान्य शिष्टाचार और औपचारिकता निभाने में भी इन दलों को विलंब हुआ। इसके अलावा, हमारे देश की वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के प्रति इनका दिखाया गया अनादर राजनीतिक मर्यादा के निम्नस्तर पर पहुंच गया। उनकी उम्मीदवारी का घोर विरोध न केवल उनका अपमान था, बल्कि हमारे देश की अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का सीधा अपमान था।

आपातकाल को याद करते हुए बयान में कहा गया है, "हम यह नहीं भूल सकते कि संसदीय लोकतंत्र के प्रति विपक्ष के इस व्यवहार तिरस्कार की जड़ें इतिहास में गहरी हैं। इन्हीं पार्टियों ने आपातकाल लागू किया। भारत के इतिहास की वह भयावह अवधि, जब नागरिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को निलंबित कर दिया गया। अनुच्छेद 356 का लगातार आदतन दुरुपयोग, संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति विपक्ष की घोर अवहेलना व अवमानना को उजागर व प्रमाणित करता है।"

विपक्ष पर संसद से भागने का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि विपक्ष का अर्ध राजशाही सरकार के प्रति झुकाव और परिवारों द्वारा संचालित दलों के लिए प्राथमिकता, जीवंत लोकतंत्र और देश के लोकाचार के खिलाफ है और जीवंत लोकतंत्र के प्रति इनके घृणा के भाव को दर्शाता है।

विपक्षी दलों की एकता पर सवाल उठाते हुए एनडीए ने कहा है कि इनकी एकता, राष्ट्रीय विकास के लिए एक साझा दृष्टि नहीं, बल्कि वोट बैंक की राजनीति के लिए साझा अभ्यास है और भ्रष्टाचार के प्रति स्पष्ट रुझान व झुकाव है। ऐसी पार्टियां कभी भी भारतीय लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकती हैं। ये विपक्षी पार्टियां जो कर रही हैं, वह महात्मा गांधी, डॉ. बाबा साहब आंबेडकर, सरदार पटेल और देश की ईमानदारी से सेवा करनेवाले ऐसे अनगिनत अन्य लोगों के आदर्शो का अपमान है, जिन्होंने समर्पण - प्रतिबद्धता से देश निर्माण में जीवन लगा दिया। विपक्षी दलों के ये काम उन महान नेताओं के मूल्यों-योगदान को कलंकित करते हैं, जिन्होंने हमारे लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए अथक परिश्रम किया।

एनडीए के बयान में आगे कहा गया है, "हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। यह वक्त हमें बांटने का नहीं, बल्कि एकता और हमारे लोगों के कल्याण के लिए एक साझा प्रतिबद्धता दिखाने का अवसर है। हम विपक्षी दलों से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हैं। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो भारत के 140 करोड़ लोग, भारतीय लोकतंत्र और उनके चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति विपक्ष के इस घोर अपमान को नहीं भूलेंगे। विपक्ष का यह फैसला और कदम, इतिहास के पन्नों में गूंजेंगे। उनकी विरासत पर लंबी काली छाया रहेगी। हम उनसे देश के बारे में सोचने का आग्रह करते हैं, न कि निजी राजनीतिक लाभ के बारे में।"

--आईएएनएस

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