नई दिल्ली। कार्यान्वयन ढांचे में गड़बडिय़ों और परेशानियों के बीच एकीकृत
कर व्यवस्था के रूप में सामने आए देश के सबसे बड़े और ऐतिहासिक कर सुधार,
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने रियल एस्टेट की सेहत सुधारने की गति तेज की
है और व्यापारिक लेनदेन आसान बनाने में मदद की है। लेकिन लागू होने के एक
साल बाद भी यह उपभोक्ताओं को कीमतों में पर्याप्त राहत प्रदान करने का अपना
वादा पूरा करने में नाकाम रहा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जो घर खरीदार संपत्ति की कीमतों
में गिरावट के लिए जीएसटी से उम्मीदें लगाए थे, उन्हें निराशा हाथ लगी है,
क्योंकि संपत्ति की खरीद की कुल लागत में कमी नहीं आई है, जबकि कुछ मामलों
में तो कीमत और बढ़ गई है।
जीएसटी को एक जुलाई, 2017 को लागू किया
गया था, और इसके आने के बाद वैट, सेवा कर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, ऑक्ट्रॉय
सहित कई कराधान समाप्त हो गए हैं। जीएसटी से पहले घर खरीदारों पर औसत कर
का बोझ लगभग छह फीसदी था, हालांकि कुछ राज्यों में उच्च कराधान के कारण इस
आंकड़े से लगभग दो गुना पड़ता था, लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद
निर्माणाधीन आवासीय संपत्ति की बिक्री पर 12 प्रतिशत का कर देना पड़ रहा
है।
हालांकि रियल एस्टेट डेवलपर्स निर्माण सामग्री की खरीद में
इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के हकदार हैं, फिर भी इसका प्रभाव कर राहत के
मामले में मामूली कहा जाता है।
यहां तक कि प्रधानमंत्री आवास
योजना (पीएमएई) के तहत किफायती आवास खंड में भी, जहां जीएसटी के तहत
प्रभावी कर आठ प्रतिशत है, वहां भी कोई महत्वपूर्ण लागत लाभ नहीं मिला है।
वहीं,
जिन राज्यों में जीएसटी से पहले कर उच्चस्तर पर था, वहां घर खरीदारों को
भले ही लागत लाभ न मिल रही हो, लेकिन उन्हें कोई अतिरिक्त कर नहीं देना पड़
रहा है।
वास्तविक समस्या यह है कि आईटीसी का लाभ लागत में कमी के
मामले में घर खरीदारों को नहीं मिल रहा है, क्योंकि यह अपनी जटिल प्रकृति
और स्पष्टता की कमी के कारण खरीदारों को प्रभावी रूप से आकर्षित नहीं कर पा
रहा है।
एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के चेयरमैन अनुज पुरी के अनुसार, आईटीसी की जटिलताओं के कारण यहां भ्रम की स्थिति है।
वहीं,
जेएलएल इंडिया के कंट्री हेड, रमेश नायर कहते हैं, ‘‘एक ही परियोजना के
विभिन्न चरणों के लिए भिन्न-भिन्न कर गणना विधियां हैं। इसके अलावा
डेवलपर्स को धनवापसी में अक्षमता, इनपुट्स की खरीद उच्च दर पर होती है।’’
इस
प्रकार बिल्डर्स रिटर्न दाखिल करने के लिए कठिन प्रक्रिया को सरल बनाने और
डिफॉल्ट से कानूनी सुरक्षा के लिए एक और संरचित तंत्र की मांग कर रहे हैं।
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