नई दिल्ली। तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की केंद्र की घोषणा को आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए एक राजनीतिक निर्णय के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, भाजपा में कई लोगों का मानना है कि इससे चुनावी राज्यों में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में बहुत अधिक लाभ नहीं होने वाला है। शुक्रवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के निर्णय की घोषणा की और कहा कि इस महीने के अंत में शुरू होने वाले संसद सत्र के दौरान निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी की जाएगी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उत्तर प्रदेश में भाजपा नेताओं को लगता है कि निर्णय देर से हुआ है, और राज्य के पश्चिमी हिस्से में पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश में भगवा खेमे का मानना है कि अगर चार-पांच महीने पहले भी यही फैसला लिया जाता तो राजनीतिक हालात कुछ और होते।
उत्तर प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह निर्णय किसी भी समय लिया जा सकता है क्योंकि किसान का विरोध एक साल पहले शुरू हुआ था। इस विलंबित निर्णय से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हमें कोई फायदा नहीं होने वाला है और इससे पहले ही बहुत राजनीतिक नुकसान हो चुका है।
राज्य भाजपा में एक वर्ग ने उल्लेख किया कि यदि निर्णय पहले लिया जाता तो राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के प्रमुख जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी (सपा) से हाथ नहीं मिलाते।
पार्टी के एक नेता ने कहा कि रालोद-सपा गठबंधन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हमारे लिए एक चुनौती पेश करेगा और इससे बचा जा सकता था अगर कानूनों को निरस्त करने का फैसला पहले लिया जाता। उस स्थिति में, रालोद ने हमारे साथ हाथ मिलाया होता।
राज्य के एक अन्य नेता ने कहा कि इस फैसले ने जनता के बीच दो संदेश भेजे हैं, पहला भाजपा 'जमीन खो रही है' और दूसरा इसने प्रधानमंत्री की 'मजबूत छवि को नुकसान पहुंचाया' है।
उन्होंने कहा कि लोग कह रहे हैं कि जमीन खोने का एहसास होने के बाद केंद्र ने कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। इसने प्रधानमंत्री की 'कड़क' (मजबूत) छवि को भी चोट पहुंचाई है, जो चुनाव में हमारे खिलाफ भी जाएगी क्योंकि लोग जानते हैं कि वह (मोदी) कभी किसी दबाव के आगे नहीं झुके, लेकिन अब छवि बदल गई है।
--आईएएनएस
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