नई दिल्ली। वरिष्ठ अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी के उत्तराधिकारी के तौर पर मसरत आलम को चुना गया है। आलम ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया है। कश्मीर में 'पत्थरबाजों के राजा' के रूप में जाने जाने वाले, मसरत आलम जाहिर तौर पर मुस्लिम लीग नामक अलगाववादी नेताओं के अपने गुट का प्रमुख है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उसके तथाकथित राजनीतिक संगठन के नाम के अलावा मसरत आलम के बारे में कुछ भी राजनीतिक नहीं है।
वह एक कट्टर अलगाववादी विचारक है, जो कश्मीर के पाकिस्तान के साथ विलय के लिए खड़ा है।
यह आलम का राजनीतिक विश्वास है, लेकिन उसका मानना है कि किसी भी संदेह से परे, उनका राजनीतिक उद्देश्य केवल सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर में कठोर जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत आलम की तरह किसी अन्य अलगाववादी नेता पर कई बार मामला दर्ज नहीं किया गया है।
उसके पास 40 से अधिक बार अधिकारियों द्वारा पीएसए के तहत कार्रवाई करने का अविश्वसनीय रिकॉर्ड है।
उसे 2015 में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह नजरबंद है।
उसने 2008 की अमरनाथ तीर्थ भूमि विवाद को एक खूनी आंदोलन में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उसका काम आगजनी, डराना, शारीरिक हिंसा और उन लोगों की हत्या करना है, जो उसके विश्वास से सहमत नहीं हैं। आलम का मानना है कि 'काफिरों' से लड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले यही कुछ विकल्प हैं।
कोई भी, चाहे वह मुस्लिम हो या किसी अन्य धर्म का अनुयायी, जो 'आजादी' की खोज और उसके बीच खड़ा है, एक 'काफिर' है जिसे रास्ते से हटाना ही उसके द्वारा शुरू किए गए संघर्ष का हिस्सा है।
आलम को हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष और गिलानी के उत्तराधिकारी के रूप में सीमा पार से नामित किया गया है और इसका एक और दिलचस्प पहलू है।
मीरवाइज उमर फारूक, शब्बीर शाह, नईम खान या यहां तक कि गिलानी के दामाद अल्ताफ शाह सहित एक दर्जन से अधिक वरिष्ठ अलगाववादी नेताओं में से किसी की भी अक्षमता साबित करती है कि इन अलगाववादी नेताओं ने उन लोगों की नजरों में वर्षों से अविश्वास ही अर्जित किया है, जो उन्हें कंट्रोल कर रहे हैं। उनके हैंडलर पाकिस्तान में हैं।
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े ने नजरबंद नेता आलम को अपना अध्यक्ष चुना है, जो कि सैयद अली शाह गिलानी की जगह लेगा, जिसका पिछले सप्ताह निधन हो गया था। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े ने मंगलवार को मीडिया को जारी एक बयान में यह जानकारी दी।
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की ओर से कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को संगठन के नेतृत्व से बड़ी उम्मीदें हैं।
गिलानी अपने जीवनकाल में अपने स्वयं के मूल संगठन, जमात-ए-इस्लामी सहित अन्य सभी नेताओं के प्रति सार्वजनिक अविश्वास व्यक्त करता रहा।
2002 के विधानसभा चुनावों में डमी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए इसके कुछ घटकों पर आरोप लगाने के बाद 2003 में उसने यूनाइटेड हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से नाता तोड़ लिया।
उसने 2008 में जमात से अलग होकर 'तहरीक-ए-हुर्रियत' नाम की अपनी पार्टी बनाई।
उसके करीबी लोगों का तर्क है कि उसे लगभग सभी वरिष्ठ अलगाववादी नेताओं ने धोखा दिया है।
गिलानी को उसके निर्विवाद नेता के रूप में स्वीकार नहीं करने के लिए या उसकी विभाजित वफादारी के कारणों के लिए गिलानी ने अपने अलगाववादी सहयोगियों को नापसंद किया या नहीं, इस बारे में सच्चाई अब उनके साथ ही बनी रहेगी।
इसका शुद्ध परिणाम यह हुआ कि कश्मीर में अलगाववाद का राजनीतिक चेहरा आखिरकार गिलानी की मौत में खो गया।
हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष के रूप में मसरत आलम हमेशा एक ऐसे व्यक्ति के रूप में रहेगा, जिसके लिए संवाद और जुड़ाव आज भी उतने ही अर्थहीन हैं, जितने कल थे।
--आईएएनएस
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