नई दिल्ली। महाराष्ट्र पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय में माक्र्सवादी चिंतकों गिरफ्तारी के मामले में हलफनामा दाखिल किया है। महाराष्ट्र पुलिस ने अदालत में बताया कि उसने सरकार से असहमति होने पर नहीं बल्कि बैन संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य होने के सबूत मिलने के बाद आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने आरोपियों के पूछताछ करने के लिए न्यायालय से हिरासत में लेने की मांग रखते हुए इसमें अपना तर्क दिया है कि आरोपी सबूत नष्ट कर सकते हैं। पुलिस ने न्यायालय में लिफाफे में सबूत भी पेश किए हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मिली जानकारी के अनुसार, महाराष्ट्र पुलिस ने बुधवार को एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय से आरोपियों की हिरासत में लेने की वापस मांग की है। पुलिस ने कहा कि हाउस अरेस्ट से केवल उनके शारीरिक मूवमेंट पर रोक लगी है।
पुलिस ने आशंका जताई कि आरोपी घर बैठे सबूतों को नष्ट करने से लेकर दूसरे संभावित आरोपियों को चेतावनी करने का काम कर सकते हैं। महाराष्ट्र पुलिस ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया कि पांचों आन्दोलनकारी सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की साजिश रच रहे थे। समाज में अराजकता फैलाने की यह योजना प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) की थी, जिस पर 2009 से ही बैन लगा हुआ है। पुलिस ने कहा है कि हाउस अरेस्ट के दौरान ये आरोपी अच्छा नुकसान पहुंचा चुके हैं।
पुलिस ने इन तर्कों को आधार पर कहा है कि आरोपियों को सिर्फ हाउस अरेस्ट में रखना ठीक नहीं। पुलिस ने कोर्ट में बताया कि आरोपियों के पास से लैपटॉप, कंप्यूटर, पेन ड्राइव्स और मेमोरी काड्र्स बरामद हुए हैं। इनसे पक् का यकीन बन जाता है कि ये सीपीआई (माओवादी) के ससदस्य हैं और गतिविधियां भी ठीक नहीं है। पुलिस ने न्यायालय में बंद लिफाफे में पेश किए गए सबूतों को देखने का आग्रह किया। पुलिस के अनुसार ये सबूत यह बता रहे हैं कि पांचों आरोपियों ने अपने कैडर्स को संघर्ष क्षेत्रों में भूमिगत रहने को कहा है।
कैडर्स को हथियार खरीदने के लिए पैसे जुटाने और भारत में स्मगलिंग के जरिए हथियार लाने के लिए भी प्रोत्साहन किया जा रहा है। उल्लेख है कि गत मंगलवार को महाराष्ट्र पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा, तेलुगू कवि वरवरा राव और वेरनॉन गोन्साल्वेज को गिरफ्तार किया था। एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को आदेश दिया था कि उन्हें गिरफ्तार करने की बजाय उनके घर में रखा जाए। उच्चतम न्यायालय ने 6 सितंबर तक उन्हें जेल नहीं भेजने का निर्देश दिए थे।
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