नई दिल्ली। इसे चाहे अवसरवादिता कहें या राजनीतिक चालबाजी, भारत की राजनीतिक परिधि में कुछ पार्टियां और नेता ऐसे हैं, जो विचारधारा के स्तर पर उदार रहे हैं और उन्होंने तीसरा मोर्चा, भाजपा और कांग्रेस की अगुवाई वाली गठबंधन सरकारों का हिस्सा बनने से परहेज नहीं किया है। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेता रामविलास पासवान और द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (डीएमके) पिछले दो दशकों के दौरान अधिकांश सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा रहे हैं, लेकिन दोनों आगामी लोकसभा चुनाव में अपने गठबंधन में बने हुए हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पासवान, वी.पी. सिंह की सरकार, संयुक्त मोर्चा सरकार, भाजपा नीत पहली राजग सरकार, पहली संप्रग सरकार और अब मौजूदा मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं। वरिष्ठ नेता का यह लोकसभा सदस्य के रूप में नौवां कार्यकाल है और वे बिहार विधानसभा के लिए पहली बार 1969 में चुने गए थे। पासवान विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के छह प्रधानमंत्रियों के अधीन केंद्र में मंत्री रह चुके हैं।
वे वी.पी. सिह सरकार का हिस्सा थे और एच.डी. देवेगौड़ा, आई.के.गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। पासवान ने भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पहले कार्यकाल में 2002 गुजरात दंगों के विरोध में इससे नाता तोड़ लिया था। उन्होंने उसके बाद कांग्रेस से हाथ मिला लिया और संप्रग सरकार में शामिल हो गए।
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