नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति एम.वेंकैया नायडू ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों के महाभियोग के नोटिस को सोमवार को खारिज कर दिया। यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय की दिन की कार्यवाही शुरू होने से पहले लिया गया। नायडू के फैसले से कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका लगा है। माना जा रहा है कि अब कांग्रेस कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। सूत्रों के मुताबिक, राज्यसभा अधिकारियों ने नोटिस की समीक्षा करने के दौरान उल्लेख किया कि किसी भी नोटिस को सभापति के समक्ष पेश करने से पहले उसे सार्वजनिक करना संसदीय नियमों का उल्लंघन है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राज्यसभा सदस्यों के लिए विवरण पुस्तिका के प्रावधानों के अनुसार, किसी भी नोटिस को जब तक सभापति द्वारा स्वीकृत नहीं किया जाता, उसका प्रचार नहीं किया जाना चाहिए। सभापति ने सुबह कांग्रेस और छह अन्य विपक्षी दलों द्वारा पेश किए गए महाभियोग के नोटिस पर कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों से विस्तार में चर्चा की। वह अपना हैदराबाद दौरा बीच में ही छोडक़र रविवार को दिल्ली लौट आए क्योंकि वह जिन विशेषज्ञों से चर्चा करना चाहते थे, उनमें से कुछ रविवार को ही चर्चा के लिए उपलब्ध थे।
जानें, महाभियोग नोटिस खारिज होने के कारण
-महाभियोग नोटिस पर संवैधानिक जानकारों और मीडिया की राय के बाद वेंकैया नायडू ने 10 पेज के नोट में अपने फौरन लिए गए कदम के बारे में बताया और लगाए गए आरोपों को ‘अनावश्यक कयास’ करार दिया। उन्होंने कहा- प्रस्ताव में जिन तथ्यों के बारे में कहा गया है उससे इसका कोई वास्तविक कारण नहीं बनता है कि प्रधान न्यायाधीश को दुव्र्यवहार के लिए गलत ठहराया जाए।
-जिन सांसदों ने महाभियोग का नोटिस दिया वह खुद ही आरोपों के बारे में निश्चित नहीं थे क्योंकि उन्होंने ऐसे शब्द लिखे थे- ऐसा हो सकता है, शायद, ऐसा लगता है और यह प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ संवैधानिक सबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता है।
- इस आरोप का तात्पर्य है न्यायपालिका की आज़ादी को कमजोर करना।
- प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ कोई सत्यापन योग्य आरोप नहीं है।
- प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए आरोपों में दुव्र्यवहार या अक्षमता को लेकर कोई भी विश्वसनीय और सत्यापन योग्य चीजें नहीं बताई गई हैं।
-जो सांसद यह प्रस्ताव लेकर आए, उन्होंने प्रेस में बताकर संसदीय रिवाज और परंपरा का अनादर किया है।
-खबरों के मुताबिक, जिन 63 सांसदों ने महाभियोग नोटिस पर दस्तखत किए है वे खारिज होने के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं।
-काग्रेस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि महाभियोग नोटिस पर सात दलों के 71 नेताओं ने दस्तखत किए गए थे। इनमें से सात सांसद पहले ही राज्यसभा सदस्य से रिटायर हो चुके थे। लेकिन, जरूरी आंकड़े 50 से से ज्यादा सांसदों के दस्तखत किए गए थे।
-संविधान यह कहता है कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ महाभियोग उनके दुव्यवहार या फिर अक्षमता साबित होने के आधार पर ही चलाया जा सकता है।
-महाभियोग प्रक्रिया आज तक कभी भी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ नहीं लाया गया। राज्यसभा के चेयरमैन की तरफ से ऐसे महाभियोग नोटिस को राज्यसभा सचिवालय भेजा जाता है ताकि वह उन दो चीजों की सत्यता का पता लगाए- याचिका पर हस्तखत करनेवाले सदस्य और महाभियोग के लिए नियम और प्रक्रिया का पालन।
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