नई दिल्ली। दिल्ली की बेबस हुई पुलिस यानी खामोश-खाकी तकरीबन डेढ़ महीने से शाहीनबाग में चल रहे कथित धरना-प्रदर्शन के तंबू हटवा भी नहीं पाई थी, तब तक रविवार को निजामुद्दीन इलाके के एक पार्क में लोगों ने 'तंबू' गाड़ दिए। धरने का धंधा यानी फार्मूला और बहाना वही शाहीनबाग वाला। यहां जुटे लोगों का कहना है, "हम शांतिपूर्ण तरीके से सीएए का विरोध प्रकट कर रहे हैं। किसी का कुछ बिगाड़ थोड़े ही न रहे हैं।" ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
निजामुद्दीन इलाके की बस्ती वालों ने धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया है। आईएएनएस से इसकी पुष्टि सोमवार देर रात खुद दक्षिण-पूर्वी जिला डीसीपी चिन्मय बिस्वाल ने की।
अब इन कथित शांतिपूर्ण धरनों पर बिराजी या बिरजवायी (बैठाई गई) भीड़ को कौन समझाए कि दिल्ली-यूपी के बीच (नोएडा, कालिंदी कुंज, सरिता विहार, डीएनडी) के रास्ते डेढ़ महीने से या तो जाम से जूझ रहे हैं या फिर नोएडा से वाया कालिंदी कुंज सरिता विहार जाने वाले रास्ते को दिल्ली पुलिस बेहद दिमागी-सफाई के साथ बैरीकेड लगाकर डेढ़ महीने से बंद कर रखा है।
अब निजामुद्दीन में धरना शुरू होने से दूसरी नई मुसीबत खड़ी हो गई है। दिल्ली पुलिस स्पेशल ब्रांच (खुफिया शाखा) ने इस धरने की विस्तृत रिपोर्ट पुलिस मुखिया अमूल्य पटनायक को भी बंद लिफाफे में पहुंचा दी है। मामला चूंकि बेहद संवेदनशील है, इसलिए इस मुद्दे पर खुलकर कोई पुलिस अफसर बोलने को राजी नहीं है।
हां, निजामुद्दीन में शुरू हुए इस कथित धरना-प्रदर्शन के बाबत पूछे जाने पर सोमवार रात जिला डीसीपी ने आईएएनएस को बताया, "धरना शांतिपूर्ण है। एक छोटे से पार्क में करीब 300-400 महिलाएं-बच्चे बैठे हैं। सड़क खुली हुई है। किसी आमजन को कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी। न ही इस धरने से किसी को कोई परेशानी हो रही है।"
डीसीपी ने आगे कहा, "धरने में शामिल अधिकांश महिलाएं-बच्चे निजामुद्दीन बस्ती इलाके से ताल्लुक रखते हैं।" दूसरी ओर दिल्ली पुलिस खुफिया शाखा की रिपोर्ट के मुताबिक, इस धरना के भी धीरे-धीरे शाहीनबाग से भी बड़ा होने का अंदेशा है। खुफियातंत्र हालांकि दिन-रात नजर रखे हुए है। धरने की भीड़ को अभी दो ही दिन बीते हैं, पार्क पर कब्जा जमाए हुए आज नहीं तो कल धीरे-धीरे पार्क से भीड़ सड़क पर भी पहुंच जाएगी। इससे सबसे ज्यादा बाधा पहुंचेगी बारापूला वाले रास्ते की।
निजामुद्दीन थाना पुलिस के ही एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, "अफसरों का कहना है कि इन्हें छेड़ो मत। बैठे रहने दो, अगर किसी के रास्ते में ये बाधा बनेंगे, तब की तब निपटेंगे। फिलहाल इन पर (धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों पर) बस नजर गड़ाए रहो, ताकि इन्हें अशांति फैलाने का मौका न मिले।"
दिल्ली पुलिस खुफिया विभाग को भी 24 घंटे इस नई, मगर कथित शांतिपूर्ण मुसीबत पर नजर रखने की ड्यूटी में जबरिया झोंक दिया गया है। निजामुद्दीन थाना पुलिस भी हाल-फिलहाल तो थाने से इस नए धरना-स्थल की ही ड्यूटी में मशरूफ है। दिल्ली पुलिस खुफिया विभाग के सूत्रों के मुताबिक, "जिले के आला-पुलिस अफसरान डीसीपी आदि भी इधर चहलकदमी करने पहुंचे तो थे, मगर चुपचाप निकल गए।"
निजामुद्दीन थाना पुलिस और दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच के सूत्रों के मुताबिक, "पहले दिन यानी रविवार को जब धरने पर बैठने का जुगाड़ किया जा रहा था, तो मौके पर 10-15 महिलाएं बच्चे पहुंचे। पार्क में एक जगह पर बैठ गए। बाद में देखते-देखते भीड़ की तादाद शाम तक 400 से ऊपर पहुंच गई। इतना ही धरने की शुरुआत में सिर्फ दरियां बिछाई गई थीं। कुछ औरतें घरों से चादरें ले आईं, उन्हें बिछाकर जम गईं। रविवार को दोपहर बाद पांच-छह लड़के मौके पर पहुंचे वे तंबू (छत) गाड़ने लगे। तब स्थानीय थाना पुलिस ने उन्हें दौड़ाया। वे सब भाग गए।"
तंबू लगाने से पुलिस ने रोका तो मौजूद महिलाएं सामने आकर अड़ने लगीं। महिलाओं की दलील थी, "हम कोई नुकसान थोड़े ही न कर रहे हैं। चुपचाप बैठेंगे ही तो..। तंबू नहीं लगेगा तो हम रात में छोटे-छोटे बच्चों के साथ खुले आसमान तले इस ठंडक में कैसे रहेंगे?" पुलिस ने मगर उनकी एक बात नहीं मानी और रविवार को तंबू नहीं गड़ने दिए। यह अलग बात है कि निजामुद्दीन थाना पुलिस के लाख विरोध के बाद भी सोमवार को पार्क में तंबू गाड़ दिए गए।
--आईएएनएस
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