कमलनाथ दिल्ली को यह समझाने में सफल रहे कि या तो उनकी पसंद का अध्यक्ष
बनाया जाए या फिर किसी आदिवासी चेहरे को आगे किया जाए। इस पर सिंधिया आग
बबूला हो उठे। सिंधिया समर्थकों ने इस्तीफा देकर संगठन पर दबाव बनाने की
कोशिश की, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। कमलनाथ पर दिग्विजय दबाव बनाकर अपना
काम करा लेते थे। लेकिन मामला सिंधिया का होने पर दोनों एकजुट होकर सिंधिया
को दरकिनार कर देते थे।
सिंधिया इस बात से परेशान होते कि आम चर्चा है कि
सरकार कमलनाथ की है और चलती सिर्फ दिग्विजय की है। किसान कर्ज माफी, अतिथि
शिक्षक जैसे मुद्दों को उठाकर सिंधिया ने सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की,
लेकिन कमलनाथ और आलाकमान बेपरवाह रहे। कमलनाथ आलाकमान को यह समझाने में
सफल रहे कि राज्य में दो पावर सेंटर बनाना ठीक नहीं होगा।
आखिरकार राज्यसभा
सीट को लेकर भी सिंधिया की मांग पूरी नहीं हुई। आलाकमान से शिकायत करने पर
मध्यप्रदेश की दूसरी सीट या किसी और राज्य से सीट देने की पेशकश की गई।
सिंधिया को पता था कि दूसरी सीट पर कमलनाथ और दिग्विजय कोई गेम कर सकते हैं
और दूसरे राज्य से राज्यसभा भेजे जाने का मतलब था कि मध्यप्रदेश की
राजनीति से बाहर हो जाना।
एक बार तो सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल के
लिए बनी समन्वय समिति की बैठक में सिंधिया की कमलनाथ से इतनी तनातनी हुई
कि वह बैठक छोडक़र चले गए। इन्हीं वजहों से सिंधिया के मन में गुस्सा भरता
रहा और उन्होंने कांग्रेस से अलग होने की राह चुन ली।
(IANS)
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