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जस्टिन ट्रूडो: भारत विरोधी रुख अपनाकर डगमगाता राजनीतिक करियर संभालने की कोशिश

Justin Trudeau: Trying to revive his faltering political career by taking an anti-India stance - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली । भारत-कनाडा के संबंध सोमवार को एक बार फिर तनावपूर्ण हो गए हैं। नई दिल्ली ने खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की जांच से इंडियन डिप्लोमेट्स को जोड़ने के ओटावा के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।


भारत ने सोमवार को कनाडा के उस डिप्लोमेटिक कम्युनिकेशन को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया कि इंडियन हाई कमिशनर और अन्य डिप्लोमेट जांज से जुड़े एक मामले में 'पर्सन ऑफ इंटरेस्ट' हैं। भारत ने आरोपों को 'बेतुका' करार दिया और इन्हें ट्रूडो के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बताया।

विदेश मंत्रालय (एमईए) ने सोमवार दोपहर जारी एक बयान में कहा, "हमें कल कनाडा से एक डिप्लोमेटिक कम्युनिकेशन प्राप्त हुआ, जिसमें कहा गया कि भारतीय उच्चायुक्त और अन्य राजनयिक उस देश में जांच से संबंधित मामले में 'पर्सन ऑफ इंटरेस्ट' हैं। भारत सरकार इन बेतुके आरोपों को दृढ़ता से खारिज करती है और इन्हें ट्रूडो सरकार के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा मानती है, जो वोट बैंक की राजनीति पर केंद्रित है।"

बयान में कहा गया, "चूंकि प्रधानमंत्री ट्रूडो ने सितंबर 2023 में कुछ आरोप लगाए थे लेकिन हमारी ओर से कई अनुरोधों के बावजूद, कनाडा सरकार ने भारत सरकार के साथ सबूतों को साझा नहीं किया। एक बार फिर से बिना किसी तथ्य के दावे किए गए हैं। इससे कोई संदेह नहीं रह जाता है कि यह जांच के बहाने राजनीतिक फायदे के लिए भारत को बदनाम करने की एक जानबूझकर अपनाई रणनीति है।" इसके बाद नई दिल्ली ने कनाडा के छह डिप्लोमेट्स को निष्कासित कर दिया और कनाडा से अपने उच्चायुक्त व अन्य राजनयिकों को बुलाने का फैसला किया।

आखिर ट्रूडो का राजनीतिक एजेंडा क्या है जिसकी वजह से वह बार-बार भारत विरोधी रुख अपनाकर आधारहीन आरोप लगा रहे हैं।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लोकप्रियता में तेज गिरावट, अपनी ही पार्टी के भीतर बढ़ते असंतोष और खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की मौत की जांच को लेकर भारत के साथ कूटनीतिक संकट ने उनके नेतृत्व पर सवालिया निशाना लगा दिए हैं।

कई आलोचकों की दलील है कि निज्जर मर्डर जांच पर ट्रूडो का जोर देना, दरअसल इंसाफ की मांग से ज्यादा अपने राजनीतिक करियर को सुरक्षित बनाने की कोशिश है।

बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों की वजह से ट्रूडो की लोकप्रियता पिछले एक साल में तेजी से गिरी है।

मीडिया रिपोट्स के मुताबिक एंगस रीड इंस्टीट्यूट के एक सर्वे में यह खुलासा हुआ कि ट्रूडो की डिसअप्रूवल रेटिंग सितंबर 2023 में 39 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 65 प्रतिशत हो गई। इस बीच, उनकी अप्रूवल रेटिंग 51 प्रतिशत से गिरकर 30 प्रतिशत हो गई, जिससे उनकी सरकार के अस्तित्व को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।

ट्रूडो सिर्फ बाहरी मोर्च पर ही नहीं बल्कि अपनी लिबरल पार्टी के भीतर बढ़ती अशांति से भी जूझ रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम 20 लिबरल सांसदों ने उनके इस्तीफे की मांग करने वाले दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं। इन सांसदों को डर है कि उनके नेतृत्व में चुनावी हार नहीं टाली जा सकती।

ट्रूडो के डगमगाते राजनीतिक करियर की झलक मॉन्ट्रियल और टोरंटो में हुए उपचुनावों में भी देखने को मिली। ये दोनों क्षेत्र परंपरागत रूप से लिबरल गढ़ रहे हैं लेकिन यहां पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। कई विश्लेषक मानते हैं कि चुनाव से पहले कनाडा में कुछ सांसद नेतृत्व परिवर्तन तक की मांग कर सकते हैं।

मीडिया रिपोट्स के मुताबिक कनाडा में 7,70,000 से ज़्यादा सिख रहते हैं, जो देश का चौथा सबसे बड़ा जातीय समुदाय है। संख्या में कम होने के बावजूद सिख समुदाय ने कनाडा की राजनीतिक में एक प्रमुख ताकत बनकर उभरा है।

कनाडा में बसे सिखों में कुछ तत्व खालिस्तान आंदोलन के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। ऐसे में भारत विरोधी भाषा बोलकर, लोगों को भड़काऊ मुद्दों पर केंद्रित कर ट्रूडो अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं।

ट्रूडो पहले भी सिख कट्टरपंथी अलगाववादी विचारधारा की तरफ अपना झुकाव दिखा चुके हैं। 2018 में, उनकी भारत यात्रा खासी विवादास्पद रही थी। इस दौरान एक दोषी सिख चरमपंथी को राजकीय डिनर में आमंत्रित किए जाने के बाद ट्रूडो को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा ।

ट्रूडो सरकार कनाडा में खालिस्तानियों की भारत विरोधी गतिविधियों पर लगाम लगाने की कोई कोशिश करती नजर नहीं आती है। वहां अक्सर खालिस्तानी भारत विरोधी प्रदर्शन करते हैं जिनमें भारतीय वाणिज्य दूतावास के सामने किए प्रदर्शन भी शामिल हैं।

कनाडा में संघीय चुनाव अगले वर्ष अक्टूबर में होने वाले हैं। मुश्किल राजनीतिक परिस्थितियों में फंसे ट्रूडो के रुख में कोई बदलाव आएगा इसकी संभावना कम ही लगती है। ऐसे में भारत-कनाडा संबंध आने वाले दिनों और मुश्किल पढ़ाव देख सकते हैं।

--आईएएनएस

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