जेल में पहली सुबह उन्हें उम्मीद रही थी कि नाश्ते में इडली,
वड़ा-डोसा मिलेगा, मगर परोसा गया तिहाड़ के रसोई (लंगर) में बना
दलिया-चाय-बिस्किट, जिसे देखकर उनका मन खिन्न हो गया। ना-पसंद
'ब्रेक-फास्ट' से उपजी झुंझलाहट, जेल की सलाखों के अंदर की मजबूरी के अहसास
ने मगर कुचल डाली।
जेल के बाहर तमाम उम्र नाश्ते में इडली, डोसा,
सांभर-वड़ा खाया था। सो अब अपने वकीलों के माध्यम से इडली-डोसा जेल में दिए
जाने या फिर घर से बना खाना मंगाने की इच्छा को अदालत तक ले गए। अदालत ने
कह दिया कि जेल के अंदर मैनुअल के हिसाब से ही सब कुछ होता है। जेल मैनुअल
में सुबह के नाश्ते में किसी भी कैदी को इडली, डोसा, वड़ा दिये जाने का कोई
प्रावधान नहीं है। आपको वही खाना होगा जो जेल की रसोई में बनेगा।
ऐसे
में एक ही रास्ता बचा, दाल-चावल-रोटी और एक सब्जी, दलिया-चाय-ब्रेड पकोड़ा
(जेल मैनुअल के हिसाब से डाइट) में से ही खाना होगा। सूत्रों के मुताबिक,
'उन्हें जेल की रोटी-सब्जी रोज-रोज खाने का ज्यादा शौक नहीं। ऐसे में
ज्यादातर दाल-चावल खाकर जेल का बुरा वक्त काटना हाल-फिलहाल तो मजबूरी ही
है।'
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