नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक की जांच के लिए बुधवार को शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली जांच समिति की घोषणा की और उसके लिए संदर्भ की शर्तो की रूपरेखा तैयार की। न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने जांच समिति के लिए संदर्भ की पांच शर्तों की रूपरेखा तैयार की।
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पीठ ने रेखांकित किया, "5 जनवरी 2022 की घटना के लिए सुरक्षा नियमों के उल्लंघन के कारण क्या थे? इस तरह के उल्लंघन के लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं और किस हद तक? प्रधानमंत्री या अन्य सुरक्षा प्राप्त लोगों की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपचारात्मक उपाय या सुरक्षा उपाय क्या होने चाहिए?"
पीठ ने कहा, "अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों की सुरक्षा और सुरक्षा में सुधार के लिए कोई सुझाव या सिफारिशें पेश की जाएं। कोई अन्य आकस्मिक मुद्दा, जो समिति उचित समझी है, वह भी उठा सकती है।"
शीर्ष अदालत ने जांच समिति को जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा और प्रधानमंत्री के दौरे के संबंध में जब्त किए गए सभी रिकॉर्ड को तीन दिनों के भीतर समिति के अध्यक्ष को सौंपने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, "भारत संघ और राज्य सरकार को सौंपे गए कार्य को पूरा करने के लिए जांच समिति को पूर्ण सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है।"
शीर्ष अदालत ने जांच समिति का निष्कर्ष आने तक राज्य सरकार और केंद्र द्वारा पीएम की सुरक्षा में चूक की जांच के लिए दिए गए आदेश पर भी रोक लगा दी।
समिति के अन्य सदस्य पुलिस महानिदेशक या उनके नामित व्यक्ति हैं, जो राष्ट्रीय जांच एजेंसी के पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस महानिदेशक, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, सुरक्षा (पंजाब) के रैंक से नीचे के नहीं हैं। समिति में रजिस्ट्रार जनरल, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट-सदस्य-सह-समन्वयक हैं।
शीर्ष अदालत का यह आदेश एनजीओ लॉयर्स वॉयस की याचिका पर आया है, जिसका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने किया। याचिकाकर्ता ने देश के पीएम की सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया और अदालत से मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने का आग्रह किया था।
सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट जनरल डीएस पटवालिया ने इसके मुख्य सचिव और डीजीपी को कारण बताओ नोटिस दिए जाने के खिलाफ शिकायत की। उन्होंने शीर्ष अदालत से मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने का अनुरोध किया।
पटवालिया ने कहा, "अगर मैं दोषी हूं तो मुझे फांसी दे दो.. लेकिन मेरा पक्ष सुने बिना मेरी निंदा मत करो।"
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस का बचाव किया। हालांकि, शीर्ष अदालत ने केंद्र के रुख पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए सवाल किया कि अगर केंद्र खुद आगे बढ़ना चाहता है, तो अदालत से इस मामले की जांच करने के लिए कहने का क्या मतलब है।
--आईएएनएस
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