- गोपेंद्र नाथ भट्ट-
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नई दिल्ली /मुंबई, । फ़िल्म हेरिटेज फ़ाउण्डेशन के प्रयासों से मणिपुरी फिल्म निर्माता और निर्देशक अरिबम श्याम शर्मा की राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता फिल्म "ईशानौ" (1990) को विश्व विख्यात कान्स फिल्म फ़ेस्टिवल की क्लासिक श्रेणी में रेड-कार्पेट वर्ल्ड प्रीमियर में प्रदर्शन के लिए चुना गया है।
फ़िल्म हेरिटेज फ़ाउण्डेशन मुंबई के संस्थापक निदेशक शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने बताया कि ईशानौ का 1991 के बाद एक बार फिर से कान्स फिल्म फ़ेस्टिवल में पुनरागमन होना भारतीय सिनेमा के लिए गर्व का विषय है।
उन्होंने बताया कि पिछलें वर्ष कान्स फिल्म फ़ेस्टिवल में थम्प फिल्म का प्रदर्शन हुआ था उसके बाद ईशानौ तीसरी ऐसी भारतीय फ़िल्म है जिसे रेस्टोरेशन के बाद क्लासिक श्रेणी में रेड-कार्पेट वर्ल्ड प्रीमियर शो का सम्मान मिलेगा।
उन्होंने बताया कि महिलाओं के जीवन पर आधारित यह मणिपुरी फिल्म 1990 में भी कांस में प्रदर्शित हुई थी लेकिन कालान्तर में इसका प्रिंट स्क्रीन लायक़ नही रहा। फिल्म हेरिटेज़ फ़ाउण्डेशन ने इस फिल्म के पुनरुद्धार में अहम भूमिका निभाई जिसकी वजह से इस फिल्म को कांस फिल्म फ़ेस्टिवल के चुना जा सका है।
शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने बताया कि फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन पिछलें कई वर्षों से भारत की फिल्म विरासत के भूले बिसरे रत्नों को पुनर्स्थापित करने और उन्हें नया जीवन देने के प्रयासों में जुटा हुआ है ।
उन्होंने कहा कि "यह शानदार अहसास है कि 1991 में कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित होने के 32 साल बाद इशानौ फिल्म कान्स में फिर से लौट रही है।”
फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन को गर्व है कि कान्स फिल्म फ़ेस्टिवल में पिछले साल प्रीमियर हुई अरविंदन गोविंदन की फिल्म "थम्प" की सफलता के बाद लगातार दूसरे साल कांस फेस्टिवल-2023 में "ईशानौ " को इस साल पूरी दुनिया के सामने प्रीमियर का मौका मिलेगा।साथ ही पूरी दुनिया को अरिबम श्याम शर्मा जैसे महान कलाकार के काम को देखने एवं समझने का अवसर भी मिलेगा ।सबसे बड़ी बात यह है कि भारत की फिल्म विरासत की मणिपुर से सम्बद्ध एक भूली बिसरी फिल्म को एक नया जीवन मिलेगा।
शिवेंद्र सिंह ने बताया कि पहली बार मैंने "ईशानौ" को अप्रैल 2021 में देखा था जब मैं मणिपुर की राजधानी इम्फाल में फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन टीम के साथ मणिपुर सरकार को वहां एक फिल्म संग्रह स्थापित करने की महत्वाकांक्षी परियोजना में मदद के लिए गया था। इंफाल में एक शाम, मैंने "ईशानौ" की स्क्रीनिंग में भाग लिया। मैं उत्साहित था क्योंकि वे फिल्म के 35 मिमी प्रिंट की स्क्रीनिंग कर रहे थे, जोकि इन दिनों बहुत दुर्लभ हो गया है। मुझे वहाँ मणिपुरी सिनेमा की जानी-मानी हस्ती फिल्म के निर्माता और निर्देशक अरिबम श्याम शर्मा से मिलने का भी सौभाग्य मिला ।
जब फिल्म शुरू हुई, तो मैंने देखा कि प्रिंट अच्छी स्थिति में नहीं थी और उसमें खरोंच और झिलमिलाहट तथा असमान रंग थे जो आंख को परेशान कर रहें थे। फिर भी फिल्म की सुंदरता और मणिपुर की अनूठी संस्कृति में निहित सरल लेकिन शक्तिशाली कथा ने उन विकृतियों को दूर करते हुए बड़े पर्दे पर चल रही कल्पना की कलात्मकता को साकार किया और मैं एक युवा मां की कहानी की मार्मिकता से मंत्रमुग्ध हो गया। फिल्म में एक माँ अपने परिवार और परमात्मा की पुकार के बीच बंटी हुई थी।
मैंरा दृढ़ मत था कि "ईशानौ" को उसके पूर्व गौरव का सम्मान और रेस्टोरेशन का अवसर मिलना चाहिए और दुनिया को उस फिल्म निर्माता की याद भी दिलानी चाहिए जिसने मणिपुरी सिनेमा को दुनिया के नक्शे पर उम्दा ढंग से रखा था।
अरिबम श्याम शर्मा का अहसास
ईशानौ फिल्म के निर्माता और निर्देशक अरिबम श्याम शर्मा बताते है कि मुझे बहुत खुशी है कि फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने "ईशानौ" को पुनर्स्थापित करने के लिए चुना। इस फिल्म को कला के काम की तरह पुनः बहाल करने की सावधानीपूर्वक प्रक्रिया को समझना मेरे लिए सीखने का एक उपक्रम और सुखद अनुभव रहा, एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें लगभग एक साल लग गया।
मैंने फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के निदेशक शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर द्वारा मेरे साथ मिलकर काम करने के समय उनके श्रम साध्य प्रयासों को देखा है उन्होंने मेरी मूल दृष्टि को ध्यान में रखते हुए फिल्म को रिस्टोर किया। उनके साथ काम करना और मेरी फिल्म को इतनी खूबसूरती से और सम्मान के साथ प्रदर्शित होते देखना तथा तीस साल से अधिक समय के बाद फिल्म को एक नया जीवन मिलना मेरे लिए किसी यात्रा की खोज से कम अहसास नहीं रहा ।
"ईशानौ" व्यवस्थित रूप से और घटनाओं की प्राकृतिक प्रगति के माध्यम से अस्तित्व में आया। जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ,तो मुझे लगता है कि ईशानौ का पुनरुद्धार सही समय पर हुआ है , भले ही यह मेरी आखिरी फीचर फिल्म "इमागी निंगथेम" के दस साल के अंतराल के बाद ही हुआ हो।
एम. के. बिनोदिनी देवी मैबियों के जीवन पर आधारित एक पटकथा लिखने की इच्छुक थीं और मैंने लाई-हरोबा पर एक विशाल प्रलेखन परियोजना पहले ही तैयार कर ली थी जिसने मुझे "ईशानौ" फिल्म करने का आत्मविश्वास दिया।
किसी व्यक्ति का घर को छोड़कर माईबी संस्कृति में खुद को विसर्जित करने के लिए यह असाधारण खिंचाव या शांत आंतरिक आग्रह विचित्र लग सकता है, लेकिन यह बहुत वास्तविक है और इस दुखद बलिदान में प्रदर्शन की उदात्त कला निहित है।
इस फिल्म के गीत और नृत्य आत्माओं को सांसारिकता से ऊपर उठाने के लिए मदद करते हैं। एक चुना हुआ व्यक्ति असाधारण अनुभवों से गुजरता है और फिल्म में दिखाए गए अनुभव मैबिस से एम.के. बिनोदिनी देवी से लिए गए हैं।ईशानौ में मैंने जिस संगीत का प्रयोग किया है, वह मणिपुर का पारंपरिक संगीत है, जिसके रचयिता समय बीतने के साथ-साथ भुला दिए गए, लेकिन यह मणिपुर का एक खजाना बन गया है।
शायद, मणिपुरी संस्कृति ही एकमात्र ऐसी संस्कृति है जहां उत्पत्ति के पूरे दर्शन को लाई हरोबा की प्रदर्शन कलाओं के माध्यम से विशुद्ध रूप से प्रचारित किया जाता है। मणिपुरी संस्कृति का यह अनूठा पहलू रहस्यमय कैनवास है जिसके खिलाफ उस चुने हुए व्यक्ति की मानवीय त्रासदी सामने आती है।
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