नई दिल्ली | भारत की पहली मिक्स्ड डिसेबिलिटी पुरुष क्रिकेट टीम अपने पहले अंतरराष्ट्रीय दौरे पर इंग्लैंड के लिए रवाना हो गई है। यह ऐतिहासिक टीम 21 जून से 3 जुलाई तक इंग्लैंड में होने वाली मिक्स्ड डिसेबिलिटी इंटरनेशनल टी-20 सीरीज़ में भाग लेगी। इस दौरे की सबसे खास बात यह है कि भारतीय टीम को विश्वविख्यात लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में खेलने का मौका मिलेगा।
डिफरेंटली एबल्ड क्रिकेट काउंसिल ऑफ इंडिया (DCCI) और 'स्वयं' संस्था द्वारा इस अवसर पर नई दिल्ली में एक विशेष समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की गई। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पहली बार भारत की मिश्रित विकलांगता क्रिकेट टीम बनी
इस टीम की कप्तानी मुंबई के रविंद्र गोपीनाथ संते कर रहे हैं, जो पिछले 12 वर्षों से क्रिकेट से जुड़े हैं। रविंद्र ने मीडिया से बातचीत में कहा : “इंग्लैंड जाने की खुशी है और चैलेंज भी हैं। पहली बार भारत में ऐसी टीम बनी है जिसमें तीन तरह की विकलांगताएं शामिल हैं — फिजिकल, इंटेलेक्चुअल और मूक-बधिर। हम सब एक-दूसरे की क्षमताओं का सम्मान करते हैं और टीमवर्क से हर चुनौती पार करने को तैयार हैं।”
रविंद्र ने बताया कि टीम के लिए जयपुर में आठ दिन का विशेष ट्रेनिंग कैंप आयोजित किया गया था, जहां साइन लैंग्वेज और टीम समन्वय पर विशेष ध्यान दिया गया। इसका उद्देश्य था कि मूक-बधिर खिलाड़ी भी विकेट के बीच दौड़ या फील्डिंग पोजिशन जैसे संकेतों को समझ सकें।
खिलाड़ियों की कहानियां: संघर्ष से सफलता तक
उमर अशरफ़, जो बोलने में असमर्थ हैं, जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले से हैं। वह इस टीम में शामिल होने वाले राज्य के पहले खिलाड़ी हैं। साइन लैंग्वेज के ज़रिए उमर ने बताया : “बचपन में टीवी पर मैच देखकर क्रिकेट से लगाव हुआ। मुझे इस टीम का हिस्सा बनकर गर्व हो रहा है। मैं 15 साल से क्रिकेट खेल रहा हूं और यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा मौका है।”
वहीं तमिलनाडु के मदुरै से आए विकास गणेशकुमार, जो इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी से पीड़ित हैं, ने कहा “मैं 11 साल की उम्र से क्रिकेट खेल रहा हूं। यह मेरे लिए बहुत खास मौका है कि मैं भारत का प्रतिनिधित्व करने इंग्लैंड जा रहा हूं।”
मिक्स्ड डिसेबिलिटी क्रिकेट क्या है?
मिक्स्ड डिसेबिलिटी क्रिकेट में विभिन्न प्रकार की अक्षमताओं वाले खिलाड़ी एक साथ खेलते हैं, जैसे: फिजिकल डिसेबिलिटी (हाथ या पैर में कमी), इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी (मानसिक विकास में बाधा), मूक-बधिर (सुनने या बोलने में अक्षम)।
इस तरह की टीम सामाजिक समावेशन और खेल के ज़रिए समानता की भावना को बढ़ावा देती है।
भविष्य की राह : एक प्रेरणाइस दौरे के ज़रिए भारत ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि खेल सबके लिए हैं। यह पहल न सिर्फ खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को बढ़ाती है, बल्कि देश के लाखों दिव्यांग युवाओं को भी प्रेरित करती है कि असंभव कुछ नहीं।
इस टीम की सफलता खेल मंत्रालय, बीसीसीआई और अन्य संस्थाओं के लिए एक उदाहरण हो सकती है कि अगर सुविधाएं और समर्थन मिले, तो कोई भी खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकता है — चाहे उसकी शारीरिक स्थिति कुछ भी क्यों न हो।
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