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तिब्बती पहचान के परिचायक दलाई लामा की खोज में पूर्व धर्मगुरुओं के संकेत रखते हैं खास मायने

In the search for the Dalai Lama, the symbol of Tibetan identity, the indications of former religious leaders hold special significance - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली । तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का 90वां जन्मदिन 6 जुलाई को है। दलाई लामा कोई नाम नहीं बल्कि एक उपाधि है। वर्तमान दलाई लामा का वास्तविक नाम तेनजिन ग्यात्सो उर्फ लामो धोंडुप है। चीन के तिब्बत पर कब्जा करने और तिब्बती बौद्धों पर बर्बरता करने के बाद 1959 में दलाई लामा अपने हजारों अनुयायियों के साथ भारत आ गए थे। तब से अब तक काफी कुछ बदल चुका है, लेकिन आज भी चीनी कब्जे के खिलाफ तिब्बत की आजादी की प्रासंगिकता बनी हुई है, जिसमें भारत की भी अहम भूमिका है। जन्मदिन से कुछ दिन पहले ही वर्तमान दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो एक बार फिर चर्चा में आए गए, जब उन्होंने अपने आगामी उत्तराधिकारी के चयन का संकेत दिया। उन्होंने साफ कहा कि उनके उत्तराधिकारी का फैसला उनका ट्रस्ट गादेन फोडरंग करेगा। इससे स्पष्ट हो गया है कि सैकड़ों वर्षों से चली आ रही परंपरा आगे भी जारी रहेगी।
दलाई लामा को तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग सम्प्रदाय का सर्वोच्च नेता, तिब्बती बौद्धों के बीच सर्वोच्च आध्यात्मिक शक्ति और तिब्बती पहचान का परिचायक माना जाता है। पहली बार यह उपाधि 1578 में मंगोल शासक अल्तान खान की तरफ से सोनम ग्यात्सो को प्रदान की गई थी, हालांकि उन्हें तीसरे दलाई लामा के तौर पर जाना गया। उनसे पहले दो धर्मगुरु और हुए, जिनमें गेंदुन द्रब को पहले और गेदुन ग्यात्सो को दूसरे दलाई लामा के रूप में स्वीकार किया गया था।
अगर दलाई लामा के चयन की बात करें तो तिब्बती बौद्धों के सर्वोच्च धर्मगुरु के चुनने की परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। यह वर्तमान दलाई लामा की मृत्यु के बाद पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है। तिब्बती बौद्धों की आस्था है कि प्रत्येक दलाई लामा में अपने पूर्ववर्ती दलाई लामा की आत्मा होती है। वे अपने पूर्वजों का पुनर्जन्म होते हैं। कहा जाता है कि वर्तमान दलाई लामा के देहांत के बाद उनकी आत्मा एक नवजात के रूप में पुनर्जन्म लेती है।
पिछले दलाई लामा के निधन के बाद शोक का समय होता है, और फिर वरिष्ठ लामाओं द्वारा संकेतों, सपनों और भविष्यवाणियों के आधार पर अगले दलाई लामा की खोज की जाती है। इस खोज में दलाई लामा के अंतिम संस्कार के दौरान उनकी चिता से निकलने वाले धुएं की दिशा, मृत्यु के समय वह किस दिशा में देख रहे थे, इस तरह के अन्य संकेत मददगार साबित होते हैं। कई बार इस प्रक्रिया में कई साल लग जाते हैं।
एक से ज्यादा बच्चों में दलाई लामा के झलक दिखने की स्थिति में बच्चों की परीक्षा ली जाती है और इसमें पूर्व दलाई लामा की वस्तुओं की पहचान कराई जाती है। खोज पूरी होने के बाद बच्चे को बौद्ध धर्म, तिब्बती संस्कृति, और दर्शन की गहन शिक्षा प्रदान की जाती है। अब तक जितने भी दलाई लामा हुए, उसमें एक का जन्म मंगोलिया, एक का पूर्वोत्तर भारत और अन्य का जन्म तिब्बत में हुआ।
दलाई लामा की वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 में किंघई प्रांत के एक किसान परिवार में लामो धोंडुप के रूप में हुआ था, जिनकी पहचान पुनर्जन्म के संकेत के आधार पर हुई थी। बताया जाता है कि तत्कालीन दलाई लामा के निधन के बाद करीब चार साल की खोज के बाद तिब्बती सरकार को लामो धोंडुप मिले। धोंडुप ने पूर्व दलाई लामा की वस्तुओं को देखकर अपना बताया था, जिसके बाद 1940 में ल्हासा के पोटाला पैलेस में उन्हें 14वें दलाई लामा के रूप में मान्यता दी गई।
--आईएएनएस

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