नई दिल्ली । कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कोरोनावायरस महामारी पर हावर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशीष झा से बात की, जिन्होंने कहा कि, 'लॉकडाउन एक मकसद नहीं है ' लेकिन यह संक्रमित व्यक्तियों को गैर-संक्रमित से अलग रखने का समय है, जब आप व्यापक रूप से आक्रमक तरीके से जांच नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन का लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ा है। झा ने कहा, "लॉकडाउन आपका समय लेता है, लेकिन लॉकडाउन स्वयं के लिए लक्ष्य नहीं है। आप उस समय का उपयोग वास्तव में बेहतर जांच, ट्रेसिंग, संगरोध में रखने के बुनियादी ढांचे को तैयार करने के लिए कर सकते हैं। आप उस समय का उपयोग लोगों से संवाद करने के लिए करना चाहते हैं।" ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
हार्वर्ड प्रोफेसर का कहना है कि जबरदस्त तरीके से परीक्षण, ट्रेसिंग और संगरोध सहायक है। उन्होंने कहा, "लेकिन अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो आपको सब कुछ लॉकडाउन करना होगा। क्या आप लॉकडाउन से वायरस को धीमा कर सकते हैं? बेशक आप कर सकते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण हानिकर आर्थिक नतीजे होंगे।"
आशीष झा ने कहा कि लॉकडाउन करने का कारण यह है कि आप वायरस के प्रसार को धीमा करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि यह एक नया वायरस है। मानवता ने इस वायरस को पहले नहीं देखा था। इसका मतलब है कि हम सभी संदिग्ध हैं। हम सभी अतिसंवेदनशील आबादी हैं। जांच के बगैर छोड़ देने पर यह तेजी से फैलेगा।
उन्होंने कहा, "और इसे रोकने का तरीका संक्रमित लोगों को गैर-संक्रमितों से दूर रखना है।"
हावर्ड के प्रोफेसर ने कहा कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद जिंदगी बहुत अलग होगी।
उन्होंने कहा कि यह पिछले मई या जून की तरह जीवन में वापस जाने के बारे में नहीं है। अगले 6-12-18 महीनों में यह जीवन बहुत अलग दिखने वाला है। और यह वास्तव में यह योजना बनाने के बारे में है। तो यह सिर्फ संचार के बारे में नहीं है बल्कि यह सोच के बारे में भी है कि सार्वजनिक परिवहन कैसा होगा? कौन काम पर वापस जाएगा? स्कूल क्या करेंगे।
--आईएएनएस
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