नई दिल्ली। देश में वर्ष 2018 को एक ऐतिहासिक वर्ष के रूप में देखा जाएगा, जहां संसद, सड़क, सोशल मीडिया और सर्वोच्च न्यायालय सबने ही अपनी नई इबारत लिखी।
संसद में जहां सरोगेसी व तीन तलाक विधेयक (लोकसभा में पारित) का मुद्दा गर्माया रहा, वहीं इस साल की शुरुआत में आठ साल की मासूम कठुआ पीड़िता को इंसाफ दिलाने के लिए लोग सड़कों पर उतरे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सोशल मीडिया पर अफवाहों की वजह से बुलंदशहर दहल उठा। वहीं, अलग अलग हिस्सों में हिंसा पर उतरी भीड़ ने लोगों को पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिए। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी सर्वोच्चता कायम रखते हुए आधार को सशर्त हरी झंडी, समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर, सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को हटाने और व्यभिचार कानून को खत्म करते हुए लोगों को राहत दी।
देश के नीति निर्माताओं ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए पहल की, जिसमें सबसे पहले तीन तलाक और सरोगेसी से संबंधित विधेयकों को पारित कर गरीब व असहाय महिलाओं को कानून के सहारे मजबूत बनाने की कोशिश की गई। लोकसभा में सरोगेसी (नियामक) विधेयक, 2016 ध्वनिमत से पारित हो गया। यह विधेयक सरोगेसी (किराए की कोख) के प्रभावी नियमन को सुनिश्चित करेगा, व्यावसायिक सरोगेसी को प्रतिबंधित करेगा और बांझपन से जूझ रहे भारतीय दंपतियों की जरूरतों के लिए सरोगेसी की इजाजत देगा।
अमृतपाल अब भी फरार, उसके चार साथियों पर लगा एनएसए
भारत में खालिस्तान समर्थकों के ट्विटर अकाउंट ब्लॉक
पेपर खराब होने पर दिल्ली की दसवीं कक्षा की छात्रा ने गढ़ी छेड़ाछड़ की कहानी
Daily Horoscope