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आईएफएस अफसर ने बनाई रामायण वाटिका, जहां मिलेंगे वाल्मीकि के बताए पेड़.पौधे

IFS officer built Ramayana garden, where to meet Valmiki trees. - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली। वाल्मीकि रामायण में जिन पेड़-पौधों और औषधियों का जिक्र है, उन सभी को लेकर उत्तराखंड के हल्द्वानी में देश की पहली रामायण वाटिका तैयार हुई है। 14 वर्षो के वनवास के दौरान भगवान राम जिन जंगलों से गुजरे, वहां तब के समय मौजूद रहीं वनस्पतियों को यहां संरक्षित किया गया है। इस अनूठी रामायण वाटिका को उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान समिति ने तैयार किया है। इस आइडिया के पीछे हैं आईएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी। चतुर्वेदी की पहल पर एक एकड़ में यह वाटिका रामपुर रोड स्थित बायो डायवर्सिटी पार्क में तैयार हुई है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के कारण रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित हो चुके संजीव चतुर्वेदी इससे पहले भी देश को वनस्पतियों के संरक्षण से जुड़ी कई सौगात दे चुके हैं।

दरअसलए 2002 बैच के भारतीय वन सेवा(आईएफएस) के अफसर संजीव चतुर्वेदी ने वाल्मीकि रामायण का अध्ययन किया तो उसमें वनस्पतियों की जानकारी का खजाना देखकर दंग रह गए। संजीव चतुर्वेदी आईएएनएस को बताते हैं कि रामायण के 'अरण्य कांड' में भगवान राम के 14 वर्षो के वनवास का जिक्र है। अयोध्या से लंका की अशोक वाटिका तक वह भारतीय उपमहाद्वीप के छह प्रकार के वनों से होकर गुजरे थे। ये छह प्रकार के वन थे- ऊष्ण कटिबंधीय, उष्णकटिबंधीय पर्णपाती उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती, शुष्क एवं नम पर्णपाती, सदाबहार व एल्पाइन।

चतुर्वेदी के मुताबिक, रामायण में वनों के बारे में दी गई जानकारी आज भी वानस्पतिक और भौगोलिक रूप से सही है। चतुर्वेदी ने बताया कि वर्तमान में इन वनों में घनत्व, वन्यजीव व कुछ वनस्पतियों को छोड़करए बहुत कम परिवर्तन हुआ है। चित्रकूट, दंडकारण्य, पंचवटी, किष्किंधा, द्रोणागिरी आदि जंगलों में तब के समय मौजूद पेड़.पौधों की प्रजातियां आज भी संबंधित क्षेत्र में मिलतीं हैं। संजीव चतुवेर्दी की यह रिसर्च रामायण को मिथ कहने वालों को झटका देती है।

मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वनवास के प्रथम भाग में ऋषि भारद्वाज के कहने पर भगवान श्री राम ने मंदाकिनी नदी के दक्षिण में स्थित चित्रकूट के वनों में निवास किया था। वर्तमान में चित्रकूट के वन, उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले और मध्य प्रदेश के सतना जिले की सीमाओं पर स्थिति है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, चित्रकूट के वनों में आम, नीम, बांस, कंटकारी, असन, श्योनक व ब्राह्मी की प्रजातियां थीं। इसी तरह भगवान राम का अगला पड़ाव दंडकारण्य वन रहा। यह क्षेत्र वर्तमान में छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में स्थित होने के साथ ओडिशा व तेलंगाना तक फैला हुआ है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यहां पर महुआ, अर्जुन, टीक, पाडल, गौब व बाकली की प्रजातियां थीं। आज भी यही पेड़-पौधे इस एरिया में मिलते हैं।

भगवान राम, लक्ष्मण और सीता पंचवटी में भी रहे। इसी स्थान से रावण ने सीता का अपहरण किया था। नासिक में गोदावरी के तट पर स्थित पांच वृक्षों- अशोक, पीपल, बरगद, बेल और आंवला को पंचवटी कहा गया। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, इनके अलावा सेमल, सफेद तिल और तुलसी इस क्षेत्र की मुख्य प्रजातियां थीं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार किष्किंधा में तब चंदन, रक्त चंदन, ढाक, कटहल, चिरौंजी, मंदारा जैसे वृक्षों की प्रजातियां थीं। वर्तमान में यह स्थान कर्नाटक राज्य के बेल्लारी जिले में स्थित हैं। यहीं पर पम्पा सरोवर भी है। आज भी इस एरिया में उन्हीं प्रजातियों के पौधे भी मिलते हैं।

इसी तरह आईएफएस अफसर ने श्रीलंका स्थित अशोक वाटिका क्षेत्र में उपलब्ध नाग केसर, चंपा, सप्तवर्णी, कोविदारा, मौलश्री जैसी प्रजातियों के पौधे को भी रामायण वाटिका में संरक्षित किया है। इन प्रजातियों का जिक्र महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में किया है। संजीव चतुवेर्दी ने कहा कि वाल्मीकि रामायण में मौजूद 139 तरह की वनस्पतियों में से कुछ की नर्सरी वाटिका मे तैयार की गई है तो कुछ को संबंधित क्षेत्रों से मंगाया गया है। मकसद है कि लोगों को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से पेड़-पौधों से जोड़कर पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने का।

--आईएएनएस

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