नई दिल्ली । सुप्रीम
कोर्ट ने बुधवार को कहा कि अगर अभी जरूरी कदम नहीं उठाए गए, तो किसानों का
चल रहा विरोध राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बन जाएगा और यह मामला फिर सरकार के
हाथ से निकल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आठ किसान यूनियनों को पक्ष (पार्टी)
बनाने का भी आदेश दिया।
तीन किसान अधिनियमों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे
किसानों को हटाने की मांग वाली जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम
कोर्ट ने यह आदेश दिया और मामले की आगे की सुनवाई गुरुवार तक के लिए स्थगित
कर दी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
न्यायाधीश ए. एस. बोपन्ना और वी. रामसुब्रमण्यम के साथ
प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने कुछ स्वीकार्य समाधान पर पहुंचने के लिए
केंद्र, किसान यूनियनों और अन्य संबंधित हितधारकों के प्रतिनिधियों सहित एक
समिति बनाने का प्रस्ताव रखा।
प्रधान न्यायाधीश ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार की बातचीत काम नहीं आ रही है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "आपको बातचीत करने के लिए तैयार होना चाहिए और हमारे सामने किसान यूनियन होनी चाहिए।"
देश
से किसान यूनियनों को मिलाकर एक समिति बनाने पर जोर देते हुए, प्रधान
न्यायाधीश ने कहा, "यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा। ऐसा लगता है
कि सरकार इसे सुलझा नहीं पा रही है।"
उन्होंने सुझाव दिया कि वार्ता
तभी सफल होगी, जब दोनों पक्ष ऐसे लोगों का प्रतिनिधित्व करेंगे, जो वास्तव
में बातचीत के लिए तैयार हैं। सीजेआई ने इसलिए सॉलिसिटर जनरल को ऐसे संगठन
के नाम के साथ आने के लिए कहा जो बातचीत के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी
सुनिश्चित करने के लिए कहा कि अधिकारी बातचीत के लिए तैयार हों।
याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली-एनसीआर के सीमावर्ती क्षेत्रों के किसानों को इस
आधार पर तत्काल हटाने की मांग की कि वे दिल्ली में कोविड-19 के फैलने का
खतरा बढ़ा रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने मेहता से कहा कि सरकार की
वार्ता विफल हो सकती है, इसलिए, मामले को समझाने के लिए कुछ किसान यूनियनों
का अदालत के सामने आना आवश्यक है।
मेहता ने शीर्ष अदालत को सूचित
किया कि सरकार किसानों के हित के खिलाफ कुछ भी नहीं करेगी और वह कानूनों
में खंडों पर चर्चा करके चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिए तैयार है।
हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि खुले विचारों वाली चर्चा होनी चाहिए, और
किसान यूनियन को कृषि कानूनों को रद्द करने पर जोर नहीं देना चाहिए।
शीर्ष
अदालत ने उन जनहित याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया, जिनमें दिल्ली
की विभिन्न सीमाओं को अवरुद्ध करने वाले किसानों को हटाने की मांग की गई
है। याचिकाकर्ता ने सुनवाई के दौरान शाहीन बाग मामले में शीर्ष अदालत के
आदेश का हवाला दिया, जहां उसने कहा था कि प्रदर्शनकारी सार्वजनिक सड़कों को
अवरुद्ध नहीं कर सकते।
--आईएएनएस
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