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राजनाथ ने कहा कि असम कई दशकों से अवैध प्रवासियों की समस्या
से जूझ रहा है। असम 1979-1985 के दौरान इस मुद्दे को लेकर आंदोलन का भी
साक्षी रहा है।
इसी आंदोलन की वजह से असम समझौते पर 15 अगस्त, 1985 को हस्ताक्षर किया गया।
विधेयक के बारे में गलतफहमी को दूर करते हुए राजनाथ ने उन देशों में
अल्पसंख्यक समुदायों के साथ हो रहे भेदभाव व धार्मिक अत्याचार को उजागर
किया।
उन्होंने कहा कि उनके पास भारत के अलावा जाने के लिए कोई जगह नहीं है। यह
विधेयक सताए गए प्रवासियों को राहत प्रदान करेगा, जो देश की पश्चिमी सीमाओं
से गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश व दूसरे राज्यों में आए हैं।
यह
विधेयक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को, जो पाकिस्तान,
अफगानिस्तान, बांग्लादेश से बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के भारत पलायन कर
आए हैं, या जिनके वैध दस्तावेजों की समय सीमा हाल के सालों में खत्म हो गई
है, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाता है।
मंत्री ने कहा कि विधेयक से तीन देशों में धार्मिक उत्पीड़न सह रहे
प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
राजनाथ
ने कहा कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक लगातार भेदभाव का सामना कर
रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान व बांग्लादेश की मौजूदा सरकार अल्पसंख्यकों के
कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध है, जिन्होंने अतीत में दिक्कतों का सामना किया
है।
राजनाथ ने कहा कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने असम समझौते
के प्रवाधानों व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के उचित व प्रभावी क्रियान्वयन
के लिए कदम उठाए हैं।
उन्होंने कहा कि बीते 35 सालों में असम समझौते के अनुच्छेद 6 के
क्रियान्वयन के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया गया है।
-आईएएनएस
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